जगन्नाथ धाम : मारवाड़ी में कहावत है सब तीर्थ बार बार गंगा सागर जीवन में एक बार

बाड़मेर /राजस्थान- मारवाड़ी में कहावत है की धर्म,धन दौलत,शोहरत और वैभव सब ईश्वर की ही देन है लेकिन हमारे मरूधरा के लोगों को अपने जीवन में सभी तीर्थों पर बार बार जरूर जाएं लेकिन गंगा सागर जीवन में एक बार जरूर देखना चाहिए कारण पश्चिमी राजस्थान से सात समुंदर दूरी होने के कारण ही आमजन में कहावत शायद चरितार्थ हुई होगी। जोधपुर के मूल निवासी अश्वनी वैष्णव पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने पर जगन्नाथ जी महाराज के चरणों में समर्पित सेवाओं से आज-कल रेल्वे मंत्री बनकर देश सेवा करने में जुटे हुए हैं। यह तो मारवाड़ री अपणायत है जो पिछड़े सरहदी इलाकों में लम्बी दूरी की रेलगाड़ियों नहीं होने के कारण आज भी पिछड़ा हुआ है, अगर जगन्नाथ महाराज का आशीर्वाद मिलेगा तो फिर बाड़मेर जिले में रेलगाड़ियों की झड़ी लगेगी और गंगा सागर जीवन में एक बार की जगह महिने में जब इच्छा हो तब गंगा सागर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने में आसानी होगी।

जगन्नाथ धाम, पुरी की रसोई अत्यंत अद्भुत है। 172 साल पुराने इस मंदिर के एक एकड़ में फैली 32 कमरों वाली इस विशाल रसोई (150 फ़ीट लंबी, 100 फ़ीट चौड़ी और 20 फ़ीट ऊँची) में भगवान् को चढ़ाये जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 752 चूल्हे इस्तेमाल में लाए जाते हैं और लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। ये सारा प्रसाद मिट्टी की जिन सात सौ हंडियों में पकाया जाता है, उन्हें ‘अटका’ कहते हैं। लगभग दो सौ सेवक सब्जियों, फलों, नारियल इत्यादि को काटते हैं, मसालों को पीसते हैं। मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है।

यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में विख्यात है :यह मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। मीठे व्यंजन तैयार करने के लिए यहाँ शक्कर के स्थान पर अच्छे किस्म का गुड़ प्रयोग में लाया जाता है। आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग मन्दिर में नहीं होता। जो भी व्यंजन यहाँ तैयार किये जाते हैं, उनके ‘जगन्नाथ वल्लभ लाडू’, ‘माथपुली’ जैसे कई अन्य नाम रखे जाते हैं। भोग में प्याज व लहसुन का प्रयोग निषिद्ध है।

यहाँ रसोई के पास ही दो कुएं हैं, जिन्हें ‘गंगा’ व ‘यमुना’ कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। इस रसोई में 56 प्रकार के भोगों का निर्माण किया जाता है। दाल, चावल, सब्जी, मीठी पूरी, खाजा, लड्डू, पेड़े, बूंदी, चिवड़ा, नारियल, घी, माखन, मिसरी आदि से महाप्रसाद बनता है। रसोई में पूरे वर्ष के लिए भोजन पकाने की सामग्री रहती है। रोज़ कम से कम 10 तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।

आठ लाख़ लड्डू एक साथ बनाने पर इस रसोई का नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज हो चुका है : रसोई में एक बार में 50 हज़ार लोगों के लिए महाप्रसाद बनता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने का स्थान है। रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रख दिए जाते हैं। सबसे ऊपर रखे बर्तन में रखा भोजन पहले पकता है फिर नीचे की तरफ़ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। प्रतिदिन नये बर्तन ही भोग बनाने के काम आते हैं।

सर्वप्रथम भगवान् को भोग लगाने के पश्चात् भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। भगवान् जगन्नाथ को महाप्रसाद, जिसे ‘अब्धा’ कहा जाता है, निवेदित करने के बाद माता बिमला को निवेदित किया जाता है तब वह प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है। भगवान् श्री जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है।

रथ यात्रा के दिन एक लाख़ चौदह हज़ार लोग रसोई कार्यक्रम में तथा अन्य व्यवस्था में लगे होते हैं। जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत होते हैं। ओडिशा में दस दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्साहपूर्वक उमड़ पड़ते हैं। यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों के लोग एकसाथ भोजन करते हैं, जात-पाँत का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता।

– राजस्थान से राजूचारण

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