छट पर्व के लिए शुरू हुईं तैयारियां:सजने लगे घाट

गोरखपुर- भक्तिभाव में डूबी महिलाओं ने इस दौरान छठ गीत भी गाए। सोमवार को महिलाएं खरना पूजा करेंगी। इसके बाद क्रमश: अस्ताचलगामी और फिर अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करेंगी। पूजा के लिए नदी-तालाब के तट भी सज गए हैं। श्रद्धालुओं ने पूजन के लिए वेदी की साजसज्जा कर उसे आकर्षक रूप दिया है।

वरिष्ठ समाजसेवी ने अनीश शुक्ला ने कहा कि
पुत्र प्राप्ति और परिवार की मंगल कामना के लिए छठ व्रत को पूरा करने के लिए कई दिनों से तैयारियां चल रहीं हैं। दीपावली और भैयादूज के बाद से ही आस्थावान पूजन सामग्री एकत्रित करने, वेदी बनाने में जुट गए थे। रविवार को भी यह क्रम बना रहा। छठ व्रतियों के परिजन राप्ती तट, रामगढ़ ताल, तकिया घाट, मानसरोवर, गोरखनाथ मंदिर स्थित भीम सरोवर पर पहुंचे और घाट की साफ सफाई की। सुबह से शाम तक छठ व्रतियों की आवाजाही से घाटों पर मेले जैसा नजारा रहा। सब्जियों, फलों के दाम चढ़े नहाय खाय के दिन सब्जियों की कीमत में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई। मंडियों में नए आलू, कद्दू, अगस्त का फूल की मांग ज्यादा रही। अगस्त का फूल सबसे महंगा बिका। वहीं मंडियों में फलों के भरमार के बावजूद इनकी कीमतों में जबरदस्त उछाल रहा। ट्रांसपोर्ट नगर स्थित सबसे बड़ी मंडी में बिहार, बंगाल, आंध्र प्रदेश, चेन्नई से भी केला मंगाया गया है।
छठ पूजा का महत्व छठ व्रत रोगों से मुक्ति, संतान के सुख और समृद्धि में वृद्धि के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत रखने से मनोकामना जरूर पूरी होती है। जिसकी मनोकामना पूरी होती है, वह कोसी भरते हैं। बहुत से लोग घाटों पर दंडवत पहुंचते हैं। रामायण काल से हुआ व्रत का शुभारंभ मान्यता है कि भगवान सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित छठ व्रत का शुभारंभ रामायण काल से हुआ। माता सीता ने इस व्रत को अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए किया था। द्रोपदी के छठ व्रत के परिणाम स्वरूप पांडवों को राजपाट वापस मिला था। व्रत तिथि 12 नवंबर (खरना) : व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत करेंगे। शाम को आठ बजे मिट्टी के बर्तन में पकाई गई गुड़ की खीर, शुद्ध गेहूं के आटे की रोटी और अन्य पूजन सामग्री के साथ छठी मैया की पूजा करेंगे। इसके बाद व्रती केले के पत्ते पर प्रसाद ग्रहण करेंगे।
13 नवंबर (प्रथम अर्घ्य) : व्रतधारी महिलाएं और पुरुष निर्जल व्रत रखते हैं और शाम को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। रात में जागरण किया जाता है।
14 नवंबर (द्वितीय अर्घ्य) : सुबह चार बजे व्रतधारी नदी, सरोवर पर उपस्थित होंगे और डलिया या सूप में पूजन सामग्री रखकर दीपक जलाकर जल में खड़े होकर सूर्य के उगने की प्रतीक्षा करेंगे और उगते हुए सूर्य को पीतल के लोटे से अर्घ्य देंगे। गाय के कच्चे दूध से भी अर्घ्य दिया जाता है। घाटोें पर लोग मंगल गीत गाते हुए पहुंचते हैं। पूजन के बाद घाट पर प्रसाद वितरण होता है।

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