राजस्थान/अजमेर- जिस राम मंदिर के विवाद को अदालत और हिंदू मुस्लिम दोनों पक्ष मिलकर सालों से नहीं सुलझा पा रहे हैं ,उसे चैनलों पर महान और महाज्ञानी एंकर चंद ऐसे लोगों को बिठाकर उनके सीधे सवाल के जरिए तुरंत हल कराना चाहते हैं जिनका इस मामले से कोई सीधा लेना देना नहीं है ।
अयोध्या में मंदिर तो श्रीराम का बनना ही चाहिए। आखिर राम जन्मभूमि पर ही उनका मंदिर बनेगा और इससे किस देशवासी को इनकार होगा । लेकिन सवाल यही है कि जो भाजपा पिछले 30 साल से अपने चुनाव घोषणापत्र में मंदिर निर्माण का वादा करती आ रही है। वह आखिर हर बार चुनाव आने के साथ ही क्यों वापस मंदिर मुद्दे पर सक्रिय होती है। इस बार तो वह लोकसभा में पूर्ण बहुमत में आई थी और जिस तरह एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए अध्यादेश लाए थे । वैसे ही राम मंदिर का निर्माण पर भी अध्यादेश ला सकती है । भाजपा के पैत्रक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो इसके लिए उन्हें आदेश भी कर दिया है । अगर सुप्रीम कोर्ट का जनवरी में सुनवाई करने का आदेश भाजपा और संघ को पसंद नहीं है तो क्यों नहीं वह अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण शुरू करते है। महज दिवाली पर खुशखबरी मिलेगी या श्रीराम की मूर्ति बनेगी या मंदिर तो वहीं बनेगा, जैसे नारों और वादों से क्या वह सिर्फ 2019 की चुनावी नैया ही पार लगाना चाहती है ?
आखिर विकास के नाम पर चुनाव लड़ने की भाजपा की रणनीति अचानक अयोध्या और भगवान राम की ओर क्यों मुड़ गई ? साढे 4 साल तक मंदिर मुद्दे पर खामोश बैठी भाजपा अचानक इतनी सक्रिय क्या चुनाव के कारण ही नहीं हुई है ? अब देखना यह है कि क्या सालों से टेंट में रह रहे भगवान राम एक बार फिर भाजपा को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाते हैं या उसके पहले ही भाजपा उन्हें टेंट से भव्य मंदिर में स्थापित कर पाती है।
-ओम माथुर,राजस्थान