देहरादून (उत्तराखंड)- गैरसंवर्गीय एवं विवादित अधिकारी को आयुर्वेद निदेशक बनाने की अटकलों पर आयुर्वेद चिकित्सको ने अपना विरोध दर्ज कराया है।उनका कहना है कि उत्तराखंड की जीरो टॉलरेंस सरकार पूर्व निदेशक डॉक्टर प्रोफेसर अरुण कुमार त्रिपाठी जो चिकित्सा शिक्षा संवर्ग के अधिकारी हैं।जिनके खिलाफ शासन स्तर पर जांच लंबित है। गुपचुप तरीके से आयुष मंत्री को गुमराह कर उनकी ताजपोशी एक बड़े नौकरशाह करना चाहते हैं।
हम सभी 800 आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ उत्तराखंड के चिकित्सक आयुष मंत्री जी के आभारी हैं। कि जब उनको पता लगा कि वर्तमान निदेशक डॉक्टर एमपी सिंह जो चिकित्सा संवर्ग के हैं। उनको हटाकर एक विवादित अधिकारी पूर्व निदेशक जिनको आयुष मंत्री के द्वारा ही हटाया गया था उन्हें लाने की तैयारी की जा रही है इस पर आयुष मंत्री जी के द्वारा मुख्य सचिव के यहां से निदेशक आयुर्वेद की फाइल को वापस मंगा ली गई ।जिसमें प्रांतीय संगठन के अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारी गण के द्वारा न्याय की मांग रखी तथा उनके द्वारा साफ साफ शब्दों में बोला गया है कि कुछ शासन के अधिकारी उन को गुमराह कर रहे हैं।
विदित हो कि आयुष सचिव केंद्र में संयुक्त सचिव के पद पर चले गए हैं।वर्तमान समय में हैं यह पद मुख्य सचिव के पास है जो स्वाभाविक है।इनकी जो शासन स्तर पर जांच लंबित है उस को क्लीन चिट दिए जाने के लिए कुछ नौकर शाह प्रयास कर रहे हैं। चुनावी वर्ष में भारतीय जनता पार्टी या सरकार को कुछ लोग गुमराह कर रहे हैं। पूर्व निदेशक गैर संवर्गीय अधिकारी है यह राजकीय कर्मचारी नहीं है।2014 में विश्वविद्यालय बनने के बाद अब वर्तमान में यह विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं। विश्वविद्यालय एक्ट में साफ साफ शब्दों में लिखा है की मूल पदों के खिलाफ जिन प्रोफेसर एवं लेक्चरर की नियुक्ति हुई है वह कहीं पर भी विकल्प नहीं दे सकते।इनके द्वारा दिन भर शासन प्रशासन अधिकारी एवं कर्मचारियों को बार-बार गुमराह करने का प्रयास किया जाता है। इनकी नजर आयुष मंत्री जी के ड्रीम प्रोजेक्ट पर है कि उत्तराखंड के आयुर्वेद चिकित्सालयों का उच्चीकरण करना है जिनकी संख्या 300 के करीब है। उस हेतु लगभग 50 करोड़ का बजट आवंटित होना है। 300 चिकित्साधिकारी 300 फार्मासिस्ट 300 नर्श एवं 300 बहुउद्देशीय कर्मचारियों की भर्ती होनी है। इसके अलावा लगभग ढाई सौ चिकित्सा अधिकारियों की भर्ती चिकित्सा चयन बोर्ड से होनी है। माननीय मंत्री जी ने प्रांतीय संगठन की पीड़ा को समझा एवं साफ साफ शब्दों में कहा कि कुछ लोग वर्तमान निदेशक की कार्यशैली पर जानबूझकर शासन प्रशासन सहित हम को गुमराह कर रहे हैं। इसलिए उनके द्वारा पूर्व निदेशक की फाइल को वापस मंगा दिया गया है। पूर्व निदेशक द्वारा उत्तराखंड राज्य में अपने प्राइवेट सेक्टर की सर्विसेज को जुड़ाकर प्रोफ़ेसर बनी। इनकी कई फाइलें शासन स्तर पर लंबित है।पूर्व में इनके द्वारा अपनी जांच खुद की गई जो उत्तराखंड में ही संभव है। इनके द्वारा उत्तराखंड राज्य में जब दवाओं के सैंपल फेल हुए तब इनके द्वारा बिना शासन के अनुमति के बाहरी राज्य की लेबोरेटरी से सैंपल को पास कराया गया तब उस फर्म का पूरा का पूरा पेमेंट किया गया। शासन प्रशासन पर इनकी सांठगांठ के कारण चिकित्सकों के नियमावली जिसमें निदेशक की नियमावली मुख्यता है की फाइल को कई महीनों से रोका गया है। पूर्व में भी इन्हें इनके द्वारा चिकित्सकों के एनपीए की प्रकरण में भी शासन को उल्टा पत्र लिखा गया। जिस कारण 800 चिकित्सकों का एनपीए का प्रकरण 2 साल तक लटका रहा। यदि शासन प्रशासन के अधिकारी प्रांतीय संघ को अंधेरे में रखकर दूसरे संवर्ग का अधिकारी लाने का प्रयास करेंगे तब हम उस स्थिति में प्रदेश व्यापी कार्य बहिष्कार करेंगे। कोविड-19 के प्रोटोकाल के तहत धरना एवं प्रदर्शन एवं आमरण अनशन तक कर सकते है।
– डा0 हरदेव सिंह रावत