बरेली/फतेहगंज पश्चिमी -देश व प्रदेश की सरकारें भले ही बच्चों के विकास का दावा पेश कर रही हों, मगर हकीकत तो यह है कि आज भी बचपन सिसक रहा है।पेट की भूख मिटाने के लिए मासूम बच्चे जोखिम भरा कार्य करने को मजबूर हैं,इन बच्चों का बचपन जिम्मेदारी के बोझ तले कराह रहा है।सुबह होते ही नौनिहाल पीठ पर बड़ा सा बोरा लादकर आँख मलते हुए सड़को, गलियो से प्लास्टिक व कागजो को उठाते हुए फैले कचरे के ढेर से रोटी का जुगाड़ करने निकल पड़ते है, उनकी यह दिनचर्या बन गई है।ऐसे तमाम मासूम है, जिनका बचपन मजबूरी के हाथों गिरवी पड़ा हुआ है। अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल इंसान बनाने का सपना सभी देखते हैं, मगर आर्थिक तंगी के आगे सारे सपने टूट जाते हैं, इसके चलते पढने लिखने की उम्र में मासूमों को काम में लगा दिया जाता है।
फतेहगंज पश्चिमी में ऐसा ही एक 10 साल का बच्चा रामकुमार अपने छोटे भाई के साथ रोजाना लोगों के द्वारा फेंके गये कूड़ा में अपनी रोजी रोटी तलाश करता है ।उससे देखते देखते बहुत दिन बीत गए तो उससे रुककर ,पूंछा तुम रोजाना सुबह कुड़े में से क्या क्या बीनते हो और स्कूल क्यों नहीं जाते हो घर मे कौन कौन है तो उसने बताया पापा खत्म हो गये मां लोगों के घर चौका बर्तन करती है।जब पापा थे तब मैं स्कूल जाता था लेकिन अब नही जाता हुँ,हम पांच भाई बहन है। हम दोनों भाई रोजाना सुबह उठते ही कूड़े में लोहा औऱ प्लास्टिक बीनते है और उन्हें कबाड़े पर बेंच कर रूपये घर देते है। उसकी यह विथा सुनकर दिल टूट गया सोंचा सरकार यह सब कर रही है लेकिन फिर भी मजबूरी के कारण लोग बच्चों को नही पड़ा रहे है।
सरकार द्वारा ।
सब पढ़े सब बढ़े व शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे प्रयास भी गरीबी के आगे असफल हैं।शासन सर्व शिक्षा अभियान सहित नि:शुल्क भोजन, पुस्तक, यूनिफार्म, छात्रवृत्ति सहित अनेक योजना चला रही है, मगर ऐसे बच्चों को स्कूल की ओर खींच लाने में नाकाम है। क्षेत्र में सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें स्कूल से कोई सरोकार नहीं है। इनके जीवन का एक ही मकसद है, कचरा बीनकर गुजारा चलाना।
इनका न तो शासन द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं से कोई मतलब है और न ही विकास के दावों से कोई सरोकार। गरीब घरों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के सरकार की कोशिशों के बावजूद आज भी बच्चे कूड़े के ढेर पर अपना भविष्य तलाश रहे हैं।
– बरेली से सौरभ पाठक की रिपोर्ट