कुतुप और रोहिणी मुहूर्त मे श्राद्ध का मिलता है अनंत गुना फल

बरेली। पितृपक्ष मे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि-विधान विधि से अनुष्ठान किए जाते है। मान्यताएं है कि पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के अनुष्ठानों का विधि विधान से पालन किया जाना चाहिए। इस बार पितृ पक्ष बुधवार से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेंगे। पितृ पक्ष से जुड़ी कुछ पौराणिक मान्यताएं भी है। इधर, ऋषिकेश से लेकर हरिद्वार के साथ ही बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धामों मे भी यात्री अपने पित्रों के तर्पण के लिए पहुंच रहे है। हर वर्ष चार धामों में पितृ पक्ष पर तर्पण के लिए हजारों लोग पहुंचते है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा प्रकट करने का 16 दिवसीय महापर्व जिसे श्राद्ध पक्ष अथवा पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है। मंगलवार से पूर्णिमा के श्राद्ध संग प्रारंभ हो चुका है। प्रतिपदा श्राद्ध बुधवार को हुआ। सुबह से ही रामगंगा घाट पर श्राद्ध करने और तर्पण को भीड़ रही। लोगों ने रामगंगा स्नान के बाद पूर्वजों को जल देने के साथ विधि विधान से पूजन कर दान किया। आचार्य पंडित मुकेश मिश्रा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार विभिन्न योनियों में गए हमारे पूर्वज श्राद्ध से खुश होकर हर वह वरदान देते हैं जो श्राद्ध करने वाले के मन में होता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने पितरों को पितृपक्ष में याद करता है वह हमेशा निरोगी, स्वस्थ, योग्य, संपत्ति वाला, धनी होता है। जो लोग पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करते उन्हें पितृदोष लग जाता है। श्राद्ध करने से ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इसलिए हिंदू समाज में पितृपक्ष को बहुत सम्मान से याद किया जाता है। पितृपक्ष के दिनों में किसी भी दिन, किसी भी तिथि पर 12 बजे के बाद श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। आमतौर पर श्राद्ध कर्म के लिए कुतुप और रोहिणी मुहूर्त को सबसे अच्छा माना जाता है। इन दिनों सात्विक जीवन के साथ अपने पूर्वजों के लिए ब्राह्मणों द्वारा तर्पण का भी महत्त्व होता है, जिसके लिए काले तिल, जौ, कच्चा दूध, कुशा और गंगा जल आवश्यक होता है।।

बरेली से कपिल यादव

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