बरेली। विंडरमेयर थिएटर में चल रहे राजकमल किताब उत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत सिविल लाइन्स स्थित कवि बेरिन डंगवाल स्मारक पर संवदफेरी और कविता पाठ के साथ हुई। साहित्यप्रेमियों ने स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। उसके बाद कवि-कथाकार उदयन वाजपेयी के निर्देशन में अभिनय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें उन्होंने युवा रंगकर्मियों को अभिनय की बारीकियों से परिचित कराव। दोपहर बाद कार्यक्रम के पहले सत्र में आलोचक चरिंद्र यादव ने शिवमूर्ति के चर्चित उपन्यास अगम बाहै दरियाव पर विचार रखा और कहा कि यह उपन्यास हाशिए के लोगों की निगाह से लिखा गया है। मैला आंचल के बाद ग्रामीण जीवन में बहुत बदलाव आया है, जो किसी एक कृति में नहीं आ पाया था। अगले सत्र में कुछ लखनऊ कुछ बरेली, कुछ किस्से कुछ शायरी विषय पर किस्सागो हिमांशु बाजपेयी से आशु मिश्रा ने बातचीत की। इस दौरान हिमांशु वाजपेयी ने कहा कि दूर से देखने में नहीं पर पास से देखने में अब हर शहर एक जैसा होता जा रहा है। अरुण देव की मृत्यु विषय पर लिखी गई सौ कविताओं के संग्रह मृत्यु कविताएं पर चर्चा हुई। अगले सत्र में बरिन की कविता, वोरिन का शहर विषय पर चातचीत हुई। इसी दौरान शिरीष कुमार मौर्य की किताब हिन्दी कविता के समकाल का सम का लोकार्पण किया गया। पुस्तक का विमोचन पत्रकार प्रभात सिंह, कथाकार योगेन्द्र आहुजा, शिरीष कुमार मौर्य और प्रो. पूर्णिमा अनिल ने किया। अंतिम सत्र में रंगकर्मी हृदयेश प्रताप सिंह ने कवि रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी कृति रश्मिरथी से दिलचस्प अंदाज मे पाठ-प्रस्तुति दी। उनके ओजपूर्ण स्वर और भावनाओं से ओत-प्रोत प्रस्तुति ने पूरे सभागार को मंत्रमुग्ध कर दिया। दिनकर की कविता ओमैं निहित राष्ट्रभक्ति, साहस और आत्मगौरव के स्वर को रंगकमों ने अपने जीवंत अभिनय से साकार कर दिया।।
बरेली से कपिल यादव
