कच्चा चिट्ठा हमारी पत्रकारिता का : राजू चारण

कच्चा चिट्ठा हमारी पत्रकारिता का : राजू चारण

बाड़मेर/राजस्थान- मौजूदा कोराना भड़भड़ी के हालातों को देखते हुए सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही हमारी पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्थाओं की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह करना ही सार्थक पत्रकारिता है।

हमारे देश में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तंभ) भी कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप नहीं हासिल किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए जागरूक समाज ने ही इसे चौथे स्तंभ का दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह शासन प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी में अपनी भूमिकाएं अपनाये।

पत्रकारिता के इतिहास पर यदि नजर डाले तो स्वतंत्रता के पूर्व पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति का मुख्य लक्ष्य था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई। उस दौर में पत्रकारिता ने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने के साथ-साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से हमेशा जोड़े रखा। किंतु आज हाईटेक प्रणाली से लैस इंटरनेट और सूचना के आधिकार कानून (आर.टी.आई.) ने पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी साधारण व्यक्ति सरकारी विभागों की जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और समय-समय पर अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराई जा सकती है। हाईटेक प्रणाली के साधनों से लैस होकर आज-कल का मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है।

पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और आमजनों की भलाई से ही जुड़ा है, किंतु कभी कभार इसका दुरुपयोग भी होने लगा है। संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। समाचार पत्रों और चैनल वालों को विज्ञापनों से होनेवाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद्द तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोण का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट पर व्हाट्सएप युनिवर्सिटी के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और अतंर्गत तथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का आज-कल गलत इस्तेमाल करने लगे हैं।

यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी संसाधनों पर सरकार द्वारा अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत तो यह है कि बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आ पाती है। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता को स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए, और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्वों के ईमानदारी से निवर्हन के लिए करती रहे!

पत्रकारिता का क्षेत्र एवं परिधि बहुत व्यापक है। उसे किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हो रही हलचलों, संभावनाओं पर विचार कर एक नई दिशा देने का काम पत्रकारिता के क्षेत्र में आती है।

पत्रकारिता जीवन के प्रत्येक पहलू पर नजर रखती है । इन अर्थों में उसका क्षेत्र व्यापक है । बी बी सी के पूर्व रिपोर्टर ओर वर्तमान में राज्य सूचना आयोग के आयुक्त नारायण बारेठ के शब्दों में “समाचार पत्र जनता की संसद है, जिसका अधिवेशन सदैव चलता रहता है ।” इस समाचार पत्र रूपी संसद का कभी भी सत्रवासान नहीं होता । जिस प्रकार संसद में विभिन्न प्रकार की समस्याओ पर चर्चा की जाती है, विचार-विमर्श किया जाता है, उसी प्रकार से समाचार-पत्रों का क्षेत्र भी व्यापक एवं बहुआयाम है। पत्रकारिता तमाम जनसमस्याओं एवं सवालों से जुड़ी होती है, समस्याओं को जिला प्रशासन के सम्मुख प्रस्तुत कर उस पर बहस को प्रोत्साहित करती है। समाज जीवन के हर क्षेत्र में आज पत्रकारिता की महत्ता स्वीकारी जा रही है । आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, विज्ञान, कला सब क्षेत्र पत्रकारिता के दायरे में हैं । इसके अलावा मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु प्रवित्त का होता है। उसे वह सब जानना अच्छा लगता है जो सार्वजनिक नहीं हो अथवा जिसे अधिकारियों द्वारा छिपाने की कोशिश की जा रही हो। मनुष्य यदि बेहतर पत्रकार हो तो उसकी यही कोशिश रहती है कि वह ऐसी गूढ़ बातें या सच उजागर करे जो रहस्यमय की गहराइयों में कैद हो।

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