ओरण-गोचर भूमि संरक्षण को लेकर जैसलमेर में रणकौशल यौद्धाआ का गूंजा बिगुल : रविन्द्र सिंह भाटी

राजस्थान/बाड़मेर- पश्चिमी राजस्थान की धरोहर ओरण और गोचर भूमि के संरक्षण को लेकर शुक्रवार को जैसलमेर का ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना। रेगिस्तान की रेत से उठी यह पुकार केवल ज़मीन बचाने की नहीं थी, बल्कि अपने अस्तित्व और आने वाली पीढ़ियों की विरासत को बचाने की लड़ाई थी। इसी संघर्ष की महागूंज में शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी भी शामिल हुए। इस आंदोलन की तस्वीरें भावुक कर देने वाली थीं। महंत श्री गोरखनाथ जी महाराज समेत अनेक संत, स्वयं विधायक भाटी के सारथी बने और उन्हें गाड़ी में बैठाकर सभास्थल तक लेकर आए। यह दृश्य अपने आप में इस बात का प्रतीक था कि यह आंदोलन किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना का हिस्सा है।

सभा में अपने जोशीले संबोधन के दौरान भाटी ने भोपाल सिंह, सुमेर सिंह सावन्ता और उनकी पूरी टीम का आभार जताया, जिन्होंने इस महाआयोजन को सफल बनाने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने कहा, “यह आंदोलन इसलिए करना पड़ा क्योंकि पश्चिमी राजस्थान के वे लोग जिनका जीवन पशुधन पर निर्भर है, उनके साथ कुठाराघात किया जा रहा है। ओरण और गोचर की भूमि जो उनके जीवन की धुरी है, उसे नष्ट किया जा रहा है। ऐसे में आवाज़ उठाना हमारी ज़िम्मेदारी है।”

भाटी ने तीखे शब्दों में सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बड़े-बड़े सोलर प्लांट्स के लिए एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर हज़ारों हेक्टेयर ज़मीनें कंपनियों को सौंप दी जाती हैं, लेकिन स्थानीय लोग जिनकी पीढ़ियाँ इस ज़मीन पर पलती-बढ़ती रही हैं, उन्हें हाशिए पर धकेला जा रहा है। उनकी आवाज़ में स्पष्ट पीड़ा थी जब उन्होंने कहा, “मैं अपने लोगों के साथ कुठाराघात नहीं होने दूँगा, चाहे इसके लिए मुझे राजनीति से हाथ ही क्यों न धोना पड़े। अपनी फसल मैं खुद उगा लूँगा, लेकिन अपने लोगों के अधिकारों से समझौता कभी नहीं करूँगा।

विधायक भाटी ने अपनी भावनाओं को और गहराई देते हुए कहा कि आजकल हर जगह पौधारोपण के कार्यक्रम तो हो रहे हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश पौधे कुछ ही दिनों में सूख जाते हैं। इसके उलट, हमारे पूर्वजों ने इन ओरणों को इस तपते रेगिस्तान में अपने खून-पसीने से सींचा था। यही कारण है कि यह भूमि केवल मिट्टी का टुकड़ा नहीं है, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही हमारी विरासत है।उन्होंने जोड़ा कि, “ओरण और गोचर केवल ज़मीन नहीं हैं, यह हमारे गौवंश का आश्रय स्थल हैं। अगर ये खत्म हो जाएंगे तो गायें कहाँ जाएंगी? हमारे बैल, ऊँट और बकरियाँ कहाँ चरेंगी? जब चरागाह ही नहीं बचेंगे तो यह गोवंश भूख से मर जाएगा और हमारी पीढ़ियाँ उस पाप की साझीदार बनेंगी।” अपने भाषण में उन्होंने बइया आंदोलन की याद भी ताज़ा की, जहाँ प्रशासन ने आंदोलनकारियों को दबाने की कोशिश की थी। लेकिन 72 दिनों तक डटे रहने के बाद आखिरकार प्रशासन को झुकना पड़ा और आंदोलनकारियों की मांगे माननी पड़ीं। भाटी ने कहा कि यह उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि जब लोग एकजुट हो जाएं तो कोई भी ताकत उन्हें झुका नहीं सकती।

सभा स्थल तक आते समय की एक घटना साझा करते हुए विधायक भावुक हो उठे। उन्होंने बताया कि कुछ घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जाति के लोगों ने उनसे विनती की कि उन्हें बस इतना ज़मीन मिल जाए जहाँ वे शांति से जीवन बिता सकें। भाटी ने तीखे स्वर में कहा कि सरकार को इन बेघर लोगों को ज़मीन देकर संतुष्ट करना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय वह हज़ारों एकड़ भूमि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंप रही है।

सभा के दौरान बार-बार यह सवाल उठता रहा कि जब ओरण-गोचर ही समाप्त हो जाएंगे तो पशुधन आखिर कहाँ जाएगा? राजस्थान की पहचान ही उसके गोवंश और रेगिस्तानी पशुधन से है। गाय केवल दूध देने वाली पशु नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जब गोचर की घास खत्म होगी तो गाँव की गोशालाएँ खाली हो जाएंगी। हमारे पुरखों ने गोचर बचाकर हमें गाय पालने की आज़ादी दी थी, अगर ये जमीनें कंपनियों को दी जाती रहीं तो आने वाली पीढ़ियों को गाय सिर्फ तस्वीरों और किताबों में दिखेगी।

सभा के अंत में भाटी ने जनता से आह्वान करते हुए कहा, “हमारे गौवंश, हमारी ज़मीन और हमारे ओरण-गोचर को बचाने की लड़ाई हमें खुद ही लड़नी पड़ेगी। अगर हमने अब आवाज़ नहीं उठाई तो कल हमारे गाँवों से गौशालाएँ उजड़ जाएंगी और बच्चों को गाय की रंभाहट सुनने को भी तरसना पड़ेगा। सरकारें और कंपनियाँ हमारे हक़ को छीनने की कोशिश करेंगी, लेकिन हमें मिलकर अपनी धरोहर और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा करनी होगी।”

गड़ीसर तालाब पर उमड़े इस जनसैलाब ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह आंदोलन केवल एक मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे मरुधर की आत्मा से जुड़ा प्रश्न है। ओरण और गोचर को बचाने की यह पुकार अब केवल जैसलमेर तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह पूरे राजस्थान की आवाज़ बन चुकी है।

– राजस्थान से राजूचारण

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