उर्स-ए-रहमानी का कुल, दरगाह पहुंचे अकीदतमंदों ने की गुलपोशी, वफ्क संपत्तियां मुसलमानों की धरोहर

बरेली। इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी आला हजरत के पौत्र मुफ्ती रेहान रजा खान (रहमानी मियां) का 40वां एक रोजा उर्स दरगाह परिसर में मनाया गया। मुफ्ती जईम रजा व मुफ्ती कलीम उर रहमान कादरी ने बुधवार सुबह 9.58 बजे फातिहा पढ़ी। दिन भर गुलपोशी का सिलसिला चलता रहा। मुल्क-ए-हिन्दुस्तान में वक्फ संपत्तियों की हिफाजत के अलावा अमन-ओ-सुकून व खुशहाली के लिए खुसूसी दुआ की गई। मदरसा मंजर-ए-इस्लाम के सदर मुफ्ती आकिल रजवी ने कहा कि वफ्क संपत्तियां मुसलमानों की धरोहर हैं। मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें, खानकाह हमारे पूर्वजों की निशानी है। शाम को सामूहिक रोजा इफ्तार में दूर दराज के हजारों उलेमा, मशाइख, अकीदतमंदों ने दरगाह प्रमुख के साथ इफ्तार किया। उर्स ए रहमानी के सभी कार्यक्रम दरगाह प्रमुख हजरत मौलाना सुब्हान रजा खान सुब्हानी मियां की सरपरस्ती और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां की सदारत व सय्यद आसिफ मियां की देखरेख में संपन्न हुए। दरगाह के नासिर कुरैशी ने बताया कि दरगाह आला हजरत पर रेहान रजा के उर्स में उमड़े अकीदतमंद सोजन्य दरगाह उर्स की शुरुआत कुरानख्वानी से हुई। सुबह आठ बजे महफिल का आगाज तिलावत-ए-कुरान से हुआ। सुब्हानी मियां की सदारत में उलेमा की तकरीर का सिलसिला शुरू हुआ। मुफ्ती अय्यूब खान ने रेहाने मिल्लत की जिंदगी पर रोशनी डालते हुए कहा कि सुन्नियत व मसलक ए-आला हजरत की दुनिया भर मे पहचान कराने वाली शख्सियत का नाम रेहाने मिल्लत है। उस दौर में मुसलमानों को जब भी मजहबी, रूहानी, खानकाही, सियासी जरूरत पड़ी तो उन्होंने कयादत फरमाई। वह उर्दू जुबान के साथ अरबी, इंग्लिश भाषा के माहिर भी थे। उन्होंने एशिया के अलावा यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका आदि के मुल्कों का दौरा कर मजहब व मसलक को फरोग देने के लिए काम किया। वह तलबा (छात्रों) को बुखारी शरीफ का दर्स (शिक्षा) अरबी मे देते थे। वह बड़े आलिम, मुफ्ती और बेहतरीन शायर भी थे। इस दौरान मुफ्ती सय्यद शाकिर अली, मुफ्ती मोइनउद्दीन बरकाती, अफरोज आलम, मुफ्ती जमील नूरी, अबरार उल हक, मास्टर कमाल, राशिद अली खान, अजमल नूरी, परवेज नूरी, ताहिर अल्वी आदि मौजूद रहे।।

बरेली से कपिल यादव

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