उत्तराखंड : पिरूल से ऊर्जा उत्पादन पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने लिखा ब्लाॅग

उत्तराखंड/ देहरादून – उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिरूल से ऊर्जा उत्पादन नीति पर एक ब्लॉग लिखा है। अपने ब्लॉग में मुख्यमंत्री ने कहा कि इस नीति का मुख्य उद्देश्य पिरूल को स्थानीय लोगों विशेषरूप से महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का जरिया बनाना है। अपने ब्लॉग में मुख्यमंत्री ने लिखा कि अमूल्य वन संपदा से भरपूर उत्तराखंड के जंगल अब आय का जरिया बनने के साथ-साथ बिजली उत्पादन का साधन भी बनेंगे। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखें, तो कुछ समय से चीड़ के जंगल तेजी से बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में 4 लाख हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें से 16.36 प्रतिशत में चीड़ के वन हैं। चीड़ की पत्तियां जब तक हरी रहती हैं तब तक तो इन्हें पशुओं के बिछावन के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है, लेकिन बाद में इसका उपयोग नहीं हो पाता। गर्मियों से पहले चीड़ की शंक्वाकार पत्तियां गिर जाती हैं, सूखने पर यही पत्तियां पिरूल कहलाती हैं। लेकिन गर्मियों के दिनों में यही पिरूल वनाग्नि का कारण बन जाता है। किसी भी मिश्रित वन में इस पिरूल पर तेजी से आग फैलती है, जो पूरे जंगल को चपेट मे ले लेती है, इससे वन संपदा के साथ जनहानि, पशुहानि भी होती है।‘‘
मुख्यमंत्री ने अपने ब्लाॅग के माध्यम से कहा कि उत्तराखंड में ऐसी कई तरह की चुनौतियां हैं। और राज्य सरकार ने हमेशा इन चुनौतियों के बीच समाधान की तलाश की है। सरकार ने उत्तराखंड में पिरूल नीति लागू कर, चीड के वनों को राजस्व का जरिया बनाया है, पिरूल के उपयोग से बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

‘‘पिरूल नीति‘‘- बनेगी बिजली मिलेगा रोजगार
सरकार चीड़ की पत्तियों का सदुपयोग करेगी। पिरूल को व्यावसायिक उपयोग में लाकर इनसे विद्युत उत्पादन और बायोफ्यूल उत्पादन किया जाएगा। पिरूल से हर साल 150 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। बिजली उत्पादन के लिए राज्य में विक्रिटिंग और बायो ऑयल संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। इन संयंत्रों के स्थापित होने से पिरूल को प्रोसेस किया जाएगा व बिजली उत्पादन किया जा सकेगा। ये संयंत्र स्वयंसेवी संस्थाओं, औद्योगिक संस्थानों, ग्राम पंचायतों, वन पंचायतों, महिला मंगल दलों द्वारा संचालित किए जाएंगे। प्रदेश में ऐसी करीब 6000 ईकाइयां स्थापित करने की योजना है।
पिरूल से बायोफ्यूल और बिजली बनाने के लिए एक किलोवाट की इकाई स्थापित करने में करीब एक लाख रुपए तक का खर्च आता है। लेकिन 25 किलोवाट तक की इकाइयों को एमएसएमई के तहत अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा। 25 किलोवाट तक की एक इकाई से सालभर में 1 लाख 40 हजार यूनिट बिजली और करीब 21 हजार किलो चारकोल निकलेगा। इसे बेचने से 9.3 लाख रुपए तक की आय प्राप्त हो सकती है।

रोजगार और महिला सशक्तीकरण का जरिया बनेगा पिरूल
मुख्यमंत्री ने बताया कि पिरूल नीति से महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। पिरूल संयंत्र तक जंगलों से पिरूल कलेक्ट करने में स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा। वन पंचायत स्तर पर महिला मंगल दलों को इसकी जिम्मेदारी दी जाएगी। इस तरह महिलाएं घर बैठे रोजगार प्राप्त कर सकेंगी, और आर्थिक रूप से सशक्त बनेंगी। महिला समूहों और महिला वन पंचायतें की भूमिका और भी सशक्त हो सकेगी। चूंकि प्रदेश में ऐसे करीब 6 हजार पिरुल संयंत्र स्थापित करने की योजना है, अगर एक संयत्र से 10 लोगों को भी रोजगार मिले तो कुल 60 हजार लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिल सकेगा। इस तरह पलायन पर बहुत हद तक रोक लग सकेगी। इस तरह पिरूल नीति महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में उपयोगी साबित होगी। हमारी सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई कदम उठाए हैं। मंदिरों के प्रसाद से महिलाओं की आर्थिकी को संवारने की योजना, एलईडी उपकरणों के निर्माण की ट्रेनिंग देकर उनमें व्यावसायिकता को बढ़ावा देना और ग्रोथ सेंटर में महिलाओं को रोजगार देने के बाद अब राज्य सरकार ने पिरूल को स्थानीय लोगों की आमदनी से जोड़ा है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने उत्तराखंड की नारीशक्ति को विश्वास दिलाते हुए कहा कि वह मन वचन और कर्म से महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में दिन रात जुटे हैं। पिरूल नीति भी अलग अलग आयामों से उत्तराखंड के विकास में कारगर साबित होगी।
-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट

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