बरेली। कोरोना काल मे पहली, दूसरी के बाद अब तीसरी लहर सिर पर आ गई है। कभी भी ये सुहागनगरी में दस्तक दे सकती है। इन सबके बीच चाइना का माल नहीं आने से बाजार में इस बार रक्षाबंधन को लेकर चाइनीज की जगह स्वदेशी राखियों को सजाया गया है। व्यापारियों के साथ साथ खरीदार महिलाओं के चेहरे भी स्वदेशी राखियों से हर्षाए दिख रहे है। कोरोना काल में रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की लोगों द्वारा तैयारी की जा रही है। घरों में बहनों द्वारा जहां अभी से भाइयों के लिए मनपसंद राखियां खरीदी जा रही हैं तो वहीं अपने बाहर रहने वाले भाइयों को राखियों को समय से पहुंचाने के लिए खरीदकर भेज रही है। भाई-बहनों के अटूट प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन इस बार 22 अगस्त को है। पर्व के लिए बाजार में राखियों की दुकानें सज चुकी हैं। बहनें अपने भाइयों के लिए मनपसंद राखियां खरीदने बाजार पहुंचने लगी हैं। खास बात ये है कि इस बार चाइनीज राखियां बाजार से बिल्कुल गायब हैं। सिर्फ स्वदेशी राखियों से बाजार गुलजार है। राखी विक्रेताओं का कहना है कि पिछले साल भी चीन से नई राखियां बाजारों में नहीं आई थीं। जबकि, 2019 में चाइनीज राखियों की जमकर बिक्री हुई थी। उस साल की बची अधिकांश राखियां पिछले साल रक्षाबंधन पर बिक गई। इस बार बाजार में सिर्फ भारत में बनी राखियां ही बेची जा रही हैं। राखी के थोक व्यापारियों ने बताया कि बरेली में कच्चा माल गुजरात के राजकोट और मुंबई से मंगाया जाता है। बरेली में ही राखियों को बनाया जाता है। कुछ व्यापारी दिल्ली से कच्चा माल मंगाकर बरेली में तैयार करवाते है। राखियों की इस बार खरीदारी करने वाली बहनों को स्वदेशी राखियों का फायदा भी मिल रहा है। इस बार ज्यादा चमक धमक वाली राखियां बाजार में न होकर स्वदेशी बनी राखियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। इन राखियों की कीमत 20 रुपये से शुरू होती है जो 300 रुपये तक पहुंच जाती है। 60 रुपये से 100 रुपये तक की राखियों को बहनों द्वारा ज्यादा खरीदा जा रहा है।।
बरेली से कपिल यादव