इबादत तो है पर उखड़ती हुईं सांसो को भी इलाज चाहिए- नारायण बारेठ

बाड़मेर/राजस्थान- हमारे देश में पूजा स्थल और इबादतगाह तो खूब है परन्तु जीवन में पहली सीढ़ी पार करने के लिए ज्ञान देने वाले शिक्षण संस्थानों ,अस्पतालों और कल कारखाने जनसंख्या के अनुपात में बहुत ही कम है। पिछली जनगणना के मुताबिक ,भारत में तीस लाख से अधिक मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे और चर्च है। लेकिन स्कूल कॉलेज इक्कीस लाख है। हॉस्पिटल्स, चिकित्सा डिस्पेंसरी की तादाद छ लाख तियासी हजार है। इसके मुताबिक कारखाने और वर्कशॉप की संख्या चौबीस लाख है। चार सौ लोगो पर एक हमारी आस्था का स्थल है।

वो एक दशक 2001 -2011 के आकड़ों के अनुसार आस्था स्थलों के उदय में उछाला लेकर आया और छब्बीस प्रतिशत की रफ्तार से बढ़े। मगर हॉस्पिटल और कारखानों के विकास गति सिर्फ 13 -13 प्रतिशत रही।इस दौरान मंदिर ,मस्जिद ,चर्च गुरुद्वारा जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी खासी बढ़ोतरी हुई। इसमें ग्रामीण भारत सबसे आगे रहा। वहां पूजा स्थलों की संख्या शहरी भारत से कहीं अधिक है। ग्रामीण क्षेत्र में चौबीस लाख से ऊपर जबकि शहरी भारत में यह पाच लाख तेरानवै हजार है। देश में होटलों और लॉज की संख्या 7 लाख 20 हजार थी।

राज्यों के हिसाब से यूपी सबसे ऊपरऊपर है इसके बाद महाराष्ट्र और बंगाल है। जनगणना के अनुसार यूपी में 3 लाख 54 आस्था स्थल है। स्कूल और कॉलेज 2 लाख 56 हजार और अस्पताल व स्पेंसरी 80 हजार से ऊपर। आबादी के हिसाब से सबसे बड़े सूबे में फैक्ट्री और वर्कशॉप की संख्या 2 लाख से अधिक थी। देश के पूजा स्थलों में से 11 प्रतिशत अकेले यूपी में थे। वर्ष 2001 में राजस्थान में 1 लाख 66 हजार आस्था स्थल थे। लेकिन एक दशक में जब जनगणना हुई तो पता चला इनकी संख्या 2 लाख 24 हजार हो गई है।राज्य में जितनी इमारत है ,उसमे से 01.04 पूजा स्थलों के नाम है जबकि अस्पताल और डिस्पेंसरी के लिए महज 0 . 2 फीसद भवन थे। शिक्षण संस्थानों के लिए 0 . 8 प्रतिशत भवन थे।

सेण्टर फॉर द स्टडीज ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटी का अध्ययन है। इसके मुताबिक युवा पीढ़ी में धर्म-आस्था के प्रति रुझान काफी बढ़ा है। 78 प्रतिशत अक्सर प्रार्थना में भाग लेते है। 68 फीसद ने कहा वे आस्था स्थल में नियमित जाते है। 49 प्रतिशत टीवी चैनल्स पर धार्मिक कार्यक्रम देखते है। इससे कुछ कम प्रतिशत धार्मिक पुस्तके पढ़ते रहते है। इंडिया टाइम्स की एक स्टोरी के मुताबिक हर 1 हजार इमारत में 9 आस्था स्थल ,6 स्कूल व कॉलेज और सिर्फ 2 हॉस्पिटल या फिर दवाखाना के लिए होती है।

आस्था बढ़ी है तो फिर अपराधों का ग्राफ दिनोदिन क्यों बढ़ रहे है। पांच साल के आंकड़े बताते है हर दिन दहेज के नाम पर 20 महिलाओ की जान ले लेते है।इस दौरान दहेजप्रथा के नाम पर 35 हजार 493 बेटियों को मौत की नींद सुला दिया। सामाजिक बुराई महगाई से भी ज्यादा क्यों बढ़ रही है।

स्वामी विवेकानंद कहते थे ‘ जिस क्षण मुझे अहसास हुआ कि इंसान का जिस्म तो एक मंदिर है और ईश्वर उसमे विराजित है , मेरा सर हर इंसान के सामने श्रद्धा से झुक जाता है। मुझे हर इंसान में भगवान नजर आता है।इसके बाद मैं सभी बंधनो से मुक्त हो गया। नौशाद कहते है न मंदिर में सनम होते है ,न मस्जिद में खुदा, और कबीर दास जी भी कहते है ईश्वर तो इंसानों के दिल में रहता है और आजकल ऐसे इन्सान लाऊँ कहा से।

– राजस्थान से राजूचारण

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