इतनी बड़ी घटना के बाद भी प्रसाशन नही चेत रहा है

जलालपुर चौराहे पर रविवार की सुबह इतनी बड़ी सड़क दुर्घटना के बाद भी प्रशासन नहीं चेत रहा है।
रोज की तरह सोमवार की सुबह जलालपुर चौराहे के समीप सवारी वाहनों के जमावड़े लग गए।
कई बड़ी सड़क दुर्घटना होने के बाद भी प्रशासन इन सवारी वाहनों के अट्ठे को हटाने में हमेशा नाकाम रहती है।चौराहे के अगल बगल की पटरियो पर वाहने खड़ी रहती है। जिससे आए दिन दुर्घटना होती रहती हैं।
क्या पता था,रस्सी बन जायेगी काल
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क्षेत्र के नेवादा गांव के निवासी व इंडियन पब्लिक स्कूल के प्रबंधक अजय सिंह रविवार को विद्यालय बंद होने के बाद भी सुबह वाराणसी-लखनऊ नेशनल हाईवे स्थित दरवेशपुर गांव के पास विद्यालय पहुंचे ।वहाँ दूसरी मंजिल पर बन रहे कमरों मे पाइट बांधने के लिये रस्सी की जरुरत थी। इसके बाद वे जलालपुर बाजार गये और रस्सी लेकर वापस विद्यालय लौट रहे थे तभी अनियन्त्रित ट्रेलर की चपेट मे आ गये और मौका स्थल पर ही मौत हो गयी।

पत्नी पूजा और तीन बच्चों को छोड़ गये प्रबंधक
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दुर्घटना मे पति अजय की मौत की सूचना पाते ही पत्नी पूजा दहाड़ मारकर चीख पड़ी।कहा कि यह झूठी खबर है,अभी तो वह घर से निकले है ,अपना विद्यालय बनवा रहे है।पूजा इसके बाद बेहोश हो गयी।पूरे गांव मे मातमी सन्नाटा पसर गया।हर किसी के काम मे मदद करने वाले लोकप्रिय इस युवा समाजसेवी के दरवाजा पर सैकड़ों शोकसंतप्त गांव वासियों की भीड़ जुट गयी थी।मृतक अजय सिंह का नेवादा और प्रधानपुर मे विद्यालय है।इसके अलावा वह एनजीओ के माध्यम से जौनपुर, वनारस समेत अन्य स्थानों पर काम करवाते थे।प्रबन्धक सोम्या (4 ) पुत्री अर्पित (3)और तीन माह का दूध मुहा बच्चा की कच्ची गृहस्थी को छोड़कर चले गये।

रात मे मित्र के साथ ढ़ाबा पर खाना खाया
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गांव मे अजय और प्रदीप की मित्रता पुरजोर चर्चा मे थी,आखिरी रात भी यह दोनों मित्र साथ मे ही रहे और साथ मे दरवेशपुर गांव स्थित उजाला ढ़ाबा पर भी खाना भी खाया।तमाम जगह साथ रहने वाले प्रदीप को क्या पता था कि मित्र के साथ यह समय बिताने का यह मौका है।इसके पूर्व इसी दिन अजय अपने बड़े पिता जी और अम्मा को मारुति बैन से प्रदीप और पड़ोसी मित्र संजीव के साथ तारापुर, जौनपुर छोड़कर वापस लौटे थे।ढ़ाबा से करीब 500 मीटर पहले संजीव गाड़ी से उतर कर गांव नेवादा चले ।इसके प्रदीप और अजय ढ़ाबा पर खाना खाने चले गये।

महाविद्यालय बनाने का सपना रह गया अधूरा
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मृतक अजय सिंह दो विद्यालय के प्रबंधक थे।वे हमेशा विद्यालय के विकास मे लगे रहते थे।उनका सपना था कि एक दिन यह विद्यालय महाविद्यालय का रुप लेगा।
परिवार मे महज उनके बड़े भाई अरविंद है।जो वाराणसी मे अपनी गाड़ी चलवाते है।अब सवाल है कि इनका दोनों विद्यालय कौन देखेगा।विद्यालय को महाविद्यालय बनाने का उनका सपना अधूरा रह गया।

पापा गये है,बाजार

मृतक अजय सिंह के मकान के पास जहाँ एक तरफ शोक संत्पत लोगों की भीड़ जुटी थी,वहीं अजय के दोनों बच्चों ईट-पत्थर से खेल रहे थे।पूछने पर बच्चो ने कहा कि पापा बाजार गये है,उनको कहाँ यह पता कि पापा अब कभी लौटकर नही आयेगे।

रिपोर्टर-:आनन्द यादव जौनपुर

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