अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की आधुनिक परिभाषा के साथ योगमय जीवन
यूँ तो योग आज के जीवन में पर्याय बन चुका है, परंतु आज भी हम आधुनिकता भरी इस जिंदगी में योग को केवल एक दिवसीय उत्सव तक सीमित कर रहे हैं। योग कोई प्रदर्शन नहीं, यह आत्मा से आत्मा तक की यात्रा है। 21 जून को 10वाँ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं ज़ोर-शोर से योग दिवस मनाएंगी। बड़े उत्साह के साथ लोग मैदानों एवं पार्कों में लग रहे योग शिविरों में एकत्र होंगे, योग करेंगे और फोटो खिंचवाकर सोशल मीडिया पर साझा करेंगे। उसके बाद फिर एक साल बाद, अगले योग दिवस पर यही उत्सव फिर से दोहराया जाएगा। ऐसा प्रतीत होता है कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस एक दिन या एक सप्ताह का ट्रेंड बनकर रह गया है।
लेकिन एक बहुत ही ज़रूरी प्रश्न खड़ा होता है—क्या योग केवल एक दिन या सप्ताह का उत्सव है, या यह जीवन को रूपांतरित करने वाली एक अनुशासित साधना है ? योग कोई प्रदर्शन नहीं है, यह आत्मा से आत्मा तक की यात्रा है। योग दिवस मनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन योग को हर दिन अपनाना और जीना उससे कहीं अधिक आवश्यक है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब अधिकांश लोग योग के लाभों से परिचित हैं, तो फिर वे इसे अपने जीवन का हिस्सा क्यों नहीं बनाते? इसका एक प्रमुख कारण है — यह युग जानकारी का युग बन चुका है। लोगों को योग के फ़ायदों की जानकारी तो है, लेकिन उन्होंने योग से मिलने वाली भीतर की शांति, ऊर्जा और स्थिरता का अनुभव नहीं किया है। जब तक अनुभव नहीं होगा, तब तक भीतर से प्रेरणा नहीं जागेगी। यही कारण है कि योग को नियमित रूप से करना लोगों की आदत में नहीं आ पाता।योग का प्रभाव एक दिन या एक सप्ताह के अभ्यास से नहीं आता। इसका वास्तविक लाभ निरंतर और समर्पित अभ्यास से प्राप्त होता है। बहुत से लोग उत्साह में आकर योग की शुरुआत तो करते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में नियमितता टूट जाती है। इसका एक और कारण यह है कि हम अक्सर उन कार्यों को प्राथमिकता देते हैं जो “तत्काल” करने जरूरी लगते हैं — जैसे डॉक्टर के पास जाना, बिल जमा करना, या कोई डेडलाइन पूरी करना। वहीं दूसरी ओर योग, ध्यान, आत्मचिंतन जैसे कार्य जो हमारे जीवन के दीर्घकालिक विकास और संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं, उन्हें हम टालते रहते हैं, क्योंकि वे तात्कालिक दबाव नहीं बनाते।
दरअसल, जो आज महत्वपूर्ण है, यदि उसे बार-बार टाला जाए, तो वह भविष्य में समस्या बन जाता है। यही सोच हमें बदलनी होगी।
योग को जीवन का हिस्सा न बना पाने का एक और प्रमुख कारण है — सही मार्गदर्शन और सकारात्मक माहौल का अभाव। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है। यह मन, प्राण और चेतना का संतुलन है। जब तक कोई मार्गदर्शक या गुरु नहीं होता, योग केवल एक शारीरिक क्रिया बनकर रह जाता है — वह आत्मिक अनुभव में परिवर्तित नहीं हो पाता। इसलिए केवल 21 जून को योग दिवस मनाइए — इसमें कोई दो राय नहीं — लेकिन इसके बाद हर दिन योग को अपने जीवन में उतारिए। सिर्फ़ 15 से 30 मिनट प्रतिदिन का योग, प्राणायाम और ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है। इससे न केवल शरीर और मन स्वस्थ रहेंगे, बल्कि आपके जीवन में स्पष्टता, संतुलन और आत्मिक शक्ति भी आएगी। योग से शांति मिलेगी, शक्ति भी। योग से शरीर जागेगा, आत्मा भी।