आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को याद कर रहे हैं। इस गौरवशाली पर्व पर फतेहपुर की एक क्रांतिवीर माता तथा उनके दो देशभक्त पुत्रों का योगदान अतुल्य व अविस्मरणीय रहा है। श्री जगन्नाथ प्रसाद पाण्डेय की पत्नी श्रीमती पुजारिन पाण्डेय तथा उनके पुत्र श्री महावीर प्रसाद पाण्डेय और श्री गुरु प्रसाद पाण्डेय ने स्वतंत्रता के यज्ञ में अग्रणी आहुतियां डाली थीं।
कानपुर देहात के सरवन खेड़ा निवासी पाण्डेय परिवार ने अपनी गतिविधियों से अंग्रेज सरकार की नाक में ऐसा दम किया कि गांव से निष्कासित कर उनकी फसलों में आग लगा दी गई तथा घर गिरा दिया गया था।
सरकारी आदेश हुआ था कि इस परिवार को किसी भी प्रकार की सहायता देने वाले के साथ भी यही व्यवहार किया जाएगा। अपने संकल्प पर अटल यह क्रांतिवीर परिवार गांव छोड़कर पहले फतेहपुर के ग्राम सौंह फिर ग्राम पपरेन्दा और फिर ग्राम कलाना आया।ग्राम पपरेंदा में जगन वंशी राजाओं ने उनकी सहायता की। इन्होंने यहां भी स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियां जारी रखीं।
श्री गुरु प्रसाद पाण्डेय गांधी जी के सत्याग्रह को जन जन तक प्रसारित करते थे। इस कारण इन्हें लोग “मिनी गांधी” कहते थे ।नमक सत्याग्रह के दौरान इन्हें गिरफ्तार कर कैद में डाल दिया गया। कारावास में इन्होंने सरकारी अन्न और नमक खाने से मना कर दिया, जिसके कारण इन्हें यत्नपूर्वक अन्न खिलाए जाने का प्रयत्न किया गया। इसके बाद उन्होंने आजीवन अन्न नहीं ग्रहण किया। स्वतंत्र भारत में गुरु प्रसाद पाण्डेय जी पश्चिमी खजुहा क्षेत्र से कांग्रेस से 1952-1957 की प्रथम विधानसभा में विधायक रहकर अत्यंत सादगी के साथ जन सेवा हेतु समर्पित रहे।
उनके अनुज श्री महावीर प्रसाद पाण्डेय कॉमर्स से स्नातक थे। उनकी काबिलियत के कारण उन्हें पुलिस में अंग्रेज सरकार ने उच्च पद देना चाहा जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। ब्रिटिश सरकार को धोखा देने के लिए उन्होंने मुरली प्रसाद नाम से क्रांतिकारी गतिविधियों में योगदान दिया। इसके बाद उनका चयन मजिस्ट्रेट खागा फतेहपुर के पद हेतु हुआ जिसे उन्होंने क्रांतिकारी साथियों की सहायता के उद्देश्य से स्वीकार कर लिया, परंतु जब उन्हें क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का आदेश मिला तो उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। इसे अंग्रेज सरकार ने राजद्रोह करार दिया तथा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
17 फरवरी 1941 को उन्हें तत्कालीन मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास त्रिवेणी प्रसाद दुबे के आदेश दिनांक 17.02.1941 के द्वारा छह माह कालकोठरी (यातना सहित) तथा ₹50 जुर्माना जिसे न दे पाने पर अतिरिक्त 6 हफ्ते की कैद की सजा सुनाई गई। काल कोठरी की दीवारों पर कीले गड़े हुए थे। कैद में उन्हें बैठने की अनुमति नहीं थी और सारा समय खड़े रहना पड़ता था, तथा उसी कोठरी में मल मूत्र त्याग करना होता था। ऐसी भीषण यातना में छह माह की काल कोठरी की सजा में वे मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए तथा उन्हें मृत मानकर उनके परिवार को शव देने के उद्देश्य से नैनी (वर्तमान प्रयागराज) कारावास बुलाया गया और लहूलुहान शरीर स्वजनों को सौंप दिया गया।
ईश्वर के चमत्कार से उनकी सांस धीमी होकर भी चल रही थी। भालों के चुभने से हुए घावों से उनके शरीर से बहुत रक्त बह चुका था। इस अवस्था में उनकी मां उन्हें घर ले आई और उनमें नए प्राण फूंके।
इसके बाद उन्होंने दोगुने उत्साह से अंग्रेजी सरकार से आजादी की जंग जारी रखी। ऐसे अटूट साहस और अद्वितीय इच्छाशक्ति वाले अमर बलिदानियों को कोटिशः नमन है । आज भी समस्त परिजन आपकी प्रेरणा से आप के बताए गए रास्ते पर चलते हुए विभिन्न क्षेत्रों में समाज एवं देशहित में अपना योगदान दे रहे हैं।
डॉ० क्षमा पाण्डेय ( प्रपौत्री स्वतंत्रता सेनानी स्व.महावीर प्रसाद पाण्डेय उर्फ मुरली प्रसाद)
एसोसिएट प्रोफेसर
महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली