बाड़मेर/राजस्थान – शहर में आजकल पत्रकारिता का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है. इस क्षेत्र में अब अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं ने भी छोटे-छोटे दैनिक अखबारों की एजेंसी लेने से हाकर ओर रिपोर्टर बनकर अखबारों में बाई नेम खबरें छपवाकर अपने गांव गली , पंचायत, तहसील स्तरीय पत्रकार बनें हुए है. हालांकि इनको लिखने व पढ़ने का ज्ञान होता नहीं होगा । इन नकलची पत्रकारों द्वारा न्युज पोर्टलों की खबरें चोरी कर अथवा दूसरे की लिखी खबरें फारवर्ड कर अपने अखबारों में छपवा देते है। इसके बाद पूरे दिन अवैध धंधेबाजों से हफ्ता वसूली व चाय टपरियों पर गप्पे मारते हुए अक्सर देखे जा सकते है।
आखिरकार दूसरों की खबरों को व्हाट्सअप ग्रुपों में फारवर्ड अथवा चोरी कर कब तक अपनी दुकानें चलाते रहेंगे? ऐसे लोगों को समाज में बेनकाब करना आज जरूरी है। किसी घटना या पत्रकार परिषद के समय शासन,जिला प्रशासन के अधिकारियों तथा राजनेताओं के सामने ऐसे धुरधर पत्रकार सबसे आगे के पंक्तियों में बैठे हुए देखे जाते है।
आश्चर्य की बात है व्हाट्सएप ग्रुप सहित यूट्यूब पर फर्जी न्युज चलाने वाले कुछ अनपढ़ व बेरोजगार युवाओं ने स्वयं को संपादक तक घोषित कर लिया है. तथा इसी तरह फर्जी यूट्यूब न्युज चैनलों के 50 से 60 अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं को पत्रकार बनाकर फर्जी प्रेस कार्ड जारी कर देते है। इसके आलावा दुबई बनने की अधी दौड़ में शामिल आपराधिक किस्म के लोगों से बकायदा पांच से दस हजार रुपये लेकर प्रेस कार्ड देने का गोरखधंधा इन पत्रकारों द्वारा किया जा रहा है। इन आपराधिक किस्म के लोग अपने अपने वाहनों पर प्रेस अथवा पत्रकार लिखवाकर शहर में गुटखा, देशी शराब, गाजा, डोडा पोस्त जैसे नशीली दवाओं, प्रतिबंधित सामानों की बिक्री या डिलीवरी करने का गोरखधंधा शुरू कर देते है. जिसके कारण शहर में क्राइम का दिनों-दिन ग्राफ बढ़ता जा रहा है। ट्रैफिक पुलिस ओर जिला मुख्यालय सहित जिले का पुलिस तत्र इन प्रेस लिखी गाड़ियों की कभी चेकिंग नहीं करती है। जिसके वजह से इनका मनोबल बढ़ता जा रहा है। नाकाबंदी के दरम्यान ऐसे फर्जी पत्रकार पुलिस कर्मीयों से हमेशा उलझते हुए भी देखे जा सकते है।
इन अनपढ़ पत्रकारों ने एक फारवर्ड गैंग बनाकर रखा हुआ है। जिसमें एक व्यक्ति न्युज छपवाने तथा लिखने का बाकायदा ठेका लेता है। तथा छोटे -छोटे दैनिक अखबारों में अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं को रिपोर्टर बनवाकर एक ही खबर को नकल कर छपवा दिया जाता है। यही नहीं कुछ दैनिक अखबारों ने वकायदे शहर में अपने एजेंट नियुक्त किया हैं। जो सिर्फ अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं को पत्रकार बनाकर उनसे सिर्फ वसूली करवाने का काम करता है। एक ही दैनिक अखबार के पांच से सात रिपोर्टर गांवों,शहर में देखे जा सकते है। ताज्जुब की बात है कि इन पांच से सात रिपोर्टरों को पढ़ने लिखने तक ज्ञान नहीं होता है। हिंदी के तो कुछ ऐसे पत्रकार हैं। जिनकी कई पीढ़ियां को हिंदी लिखना नहीं जानती। लेकिन ऐसे पत्रकार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बहाने सबसे आगे बैठे हुए हमेशा नजर आते है। इन फर्जी पत्रकारों की वजह से मीडिया का स्तर गिरता जा रहा है।
यूट्यूब पर न्युज चलाने वाले सोशल मीडिया के पत्रकारों ने जिले में हजारों लोगों को प्रेस कार्ड जारी कर रखा है। इसके साथ ही यूट्यूब पर बने फर्जी न्युज संपादको ने स्वयं प्रेस कार्ड बनाकर स्वयं हस्ताक्षर कर अपने आप को संपादक घोषित कर लिया है। इनकी जांच करना नितांत आवश्यकता है। नहीं तो एक दिन शहर का शांति व्यवस्था खराब होने से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे फर्जी पत्रकारों का बस एक ही काम होता है, लोगों से ठगी करना तथा आम लोगों व प्रशासन में पत्रकार के नाम पर अपनी हनक कायम करना।
समाचार पत्रों के सीनियर पत्रकारों कि तरह व्यवहार बनाकर सरकारी कर्मचारियों, प्राइवेट प्रतिष्ठानों के मालिकों व सीधी साधी आम जनता में प्रेस का रौब दिखाकर सिर्फ उनसे ठगी व उगाही कर मीडिया की छवि खराब और बदनाम करना होता है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ अपराधिक छवि वाले व्यक्तियों ने भी मीडिया को अपना रक्षा कवच बना रखा है और छोटे बड़े अपराध को बढ़ावा दे रहे है। छोटे छोटे अखबारों के संपादक सहित यूट्यूब पर बने संपादक व फर्जी तथा फारवर्ड गैंग के पत्रकारों ने राशन दुकानदारों, ओटो रिक्शा चालकों,मटका जुआरियों के अड्डे चलाने वाले लोगों को यहाँ तक शौचालय में पानी मारने वाले व्यक्तियों को भी प्रेस कार्ड बनाकर पत्रकार बना दिया है।अगर ऐसे पत्रकारों पर अंकुश नही लगाया गया तो पत्रकारिता के गिरते स्तर को नहीं बचाया जा सकता है।
– वरिष्ठ पत्रकार राजूचारण जी की कलम से