राजस्थान- बाड़मेर शहर की बदहाली को देखकर बहुत दुख होता है कि शान्तिप्रिय शहर की आबोहवा का बन्टाधार कैसे हो गया और इसका मुख्य कारण क्या है, कोई भी बाहर से बाड़मेर में नहीं आया है सब अपने ही वही लोग है जो अक्सर अपने और अपनों के आसपास मडराते हुए देखा जाता था, कार्यक्रम चाहे छोटा बड़ा हो या फिर ना लेकिन जमघट तो जरूर लगा रहे।
विश्व पटल पर धन कुबेरों की पहली पसंद बनने वाले बाड़मेर जिले में सैकड़ों प्रोजेक्ट होने के बावजूद भी मूलभूत समस्याओं का समाधान करने में बेबस और लाचार कहीं पर से ही देखिए वही नज़र आएगा जैसे कोई भूकंप आने के बाद उजड़े हुए क्षेत्रों की तरह ही …
बाड़मेर जिले के प्रवास पर आने वाले नेताओं को हमेशा हमे देखकर रेलगाड़ियों और हवाई सेवाएं ही याद आती है कारण साधारण परिवारों की जीवन शैली के मुताबिक सफर करने के लिए केन्द्र सरकार तो मुनाबााव तक लम्बी दूरी की आधुनिक युग वाली इलेक्ट्रिक रेलगाड़ियों की सौगात दे सकती है और दक्षिण भारतीय सेना के जवानों और प्रवासियों के लिए कन्याकुमारी से बाड़मेर वाया कोकेन रेल्वे साप्ताहिक रेलगाड़ी लेकिन वो आजकल ठप्प होने लगी है और हवाई सेवाएं उपलब्ध कराने के सपने दिखाने वाले नेताओं ने भी मन मारकर ही असमर्थता जता रहे हैं।
साफ़ सफाई और जलभराव के साथ ही जलमग्न बस्तियाँ, बिजली पानी के साथ ही कर्मचारियों की सबसे बड़ी सख्या बल देखते हुए जिला मुख्यालय पर खून के आसूं निकाल रहे मेडिकल कॉलेज के नाम पर हमेशा शर्मशार करते हुए सरकारी अस्पताल की दुर्दशा देख कर आने वाले मरीजों के मुहं से तो सिर्फ एक ही शब्द मुह से निकल रहा है…… है कलयुगी भगवान्
देश में लगातार तीसरी बार विजय हासिल करने के साथ ही प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी और हमारे जैसे साधारण परिवारों के ही दुख दर्द महसूस करने वाले राज्य के मुखिया भजन लाल शर्मा अपने सहयोगियों और राज्य के सभी छोटे बड़े अधिकारियों से जरूर कहते हैं कि धरातल पर आम आदमी को तुरंत राहत दीजिये लेकिन बडे़ बुजुर्गों द्वारा एक बड़ी मशहूर कहावत है कि पूत के पाव पालने में ही दिखाई देता है कि वो सजा ऐ कालापानी के नाम पर अन्य जिलों से फैके हुए सरकारी कर्मचारी कितनी सफलताएं अपने कार्यकाल में प्राप्त करेंगे और बाड़मेर जिले में आमआदमी की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने वाले सरकारी अधिकारी आजकल बेबस और लाचार क्यों नज़र आ रहैं है, कही चमचमाती हुईं सड़कों पर शानदार छोटे बड़े गड्ढे और वो भी हिचकोले खाकर चलते हुए वाहन सही सलामत घर पहुचे या फिर ना ये तो आपको ही ज्यादा मालूम है।
माना की बाड़मेर शहर के मास्टर प्लान 2031 में आबादी क्षेत्र घोषित हुआ है वहाँ की आबादी को छोड़कर शहरी सीमा के आसपास पेराफेरी बेल्ट के नजदीकी क्षेत्रों में कृषि भूमियों पर भूमाफिया से साठगांठ करते हुए अवैध कालोनियों की सख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है तो फिर इसका कारण क्या है जहाँ पर लाखों लोगों के परिवार सहित चार पाच दशकों से निवास करते है और मजबूत सरकार बनाने के दौरान समय समय पर अपने अमूल्य मताधिकार का प्रयोग करते हुए मजबूत सरकार बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया करते हैं।
सरकारी कार्यालयों में मूलभूत समस्याओं का समाधान करने की मांग के दौरान सरकारी कोष में रेवन्यू जमा करवाने के बावजूद भी आबादी क्षेत्रों की सड़कों किनारे विधुत पोलों पर अगर रोड़ लाइट्स लगी हुई है तो फिर जानबूझकर ये अन्धकार क्यों, कहीं कहीं पर सरकारी सिस्टम से अन्धकार पीड़ित गलियों में तो हालत बद से बदतर और रही सही कसर सड़क किनारे पर मौजूद बबूल की कटीली झाड़ियों भी आने जाने वाले लोगों और वाहनों पर अपना रौबदार निसान छोड़ रही है और सवाल सिर्फ एक ही सरकार हमारे क्षेत्र में बहुत ज्यादा अन्धकार होने के कारण नशेड़ियों का जगह जगह पर जमघट रहता है और पुलिस गस्त नहीं होने के साथ ही यहाँ पर रोड़ लाइटों को कब लगाएंगे कारण ऐसा कोई सरकारी अधिकारी और नेता बाड़मेर जिले में नहीं बचा है जिससे पब्लिक ने फरियाद ना की होगी।
– राजस्थान से राजूचारण