वरुणा ने जो बटोरा उसे सहेज न सके हम:दाह संस्कार में हो रही परेशानी तिलांजलि देने वालो में आक्रोश

*वरुणा सूखने से पशु-पक्षी सहित तटवर्ती क्षेत्र के किसानों का हाल बेहाल

वाराणसी/सेवापुरी -पंचकोशी परिक्रमा के तृतीय पड़ाव रामेश्वर वरुणा तट स्थित श्मशान घाट पर इस समय दाह संस्कार करने आ रहे लोगो के बीच वरुणा में पानी ना होना एक बहुत बड़ी कमी नजर आ रही है।वरुणा तट पर एकत्रित दूषित जल से शुद्दीकरण करके शव का अंतिम संस्कार करने को मजबूर है लोग।वही श्मशान घाट पर रह रहे राजकुमार चौधरी का कहना है कि वरुणा में पानी छोड़ने की गुहार काफी दिनों से जिला प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक लगाई जा चुकी है लेकिन इस समस्या का समाधान करना आला अधिकारी मुनासिब नही समझते जिससे दाह संस्कार करने वालो को व पशु पक्षियों सहित श्रद्धालुओं को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।वही वर्षा की एक-एक बूंद की कीमत का अहसास हमें बीते पांच वर्षो में अच्छी तरह रहा लेकिन प्रकृति के इस कोप से हम सबक नहीं ले पाए।इस दौरान कोई बड़ा इंतजाम नहीं कर सके जिससे वर्षा के जल को सहेजा जा सके।इस बार अच्छी वर्षा का नतीजा रहा कि वरुणा में पर्याप्त पानी दिखने लगा। इससे उम्मीद जगी कि कम से कम वरुणा के किनारे बसे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र का जलस्तर वर्ष के अन्य महीनों में भी ठीक रहेगा। इससे पेयजल और सिंचाई का संकट नहीं गहराने पाएगा।

यहां हालात इसके उलट है।अभी वर्षा कालीन मौसम खत्म भी नहीं हुआ कि वरुणा का पानी तेजी से घटकर तलहटी से चिपककर रह गया।नदी की गहराई भी पटाव के कारण कम हो जाने से पानी तेजी से घटा।वरुणा का पानी गंगा में वापस चला गया।इसे रोकने का कोई इंतजाम वरुणा नदी पर नहीं किया गया।

‘AV News की कोशिश:-

‘AV News’ ने इस दिशा में कई बार ध्यान आकृष्ट कराया कि जनपद सीमा के भीतर बहनेवाली वरुणा सहित अन्य छोटी नदियों व नालों के पानी संचयन की दिशा में प्रयास किए जाए।अफसोस अब तक कोई कार्य योजना वरुणा के लिए नहीं बनाई जा सकी।इस नदी को गहरा कर कुछ स्थानों पर डैम बनाने की बात थी ताकि नदी में बराबर पानी बना रहे। इससे वाराणसी के शहरी और देहाती क्षेत्र के भूजल का प्राकृतिक शोधन होता। इसके बारे में कई बार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने भी राय दी कि वाराणसी में भूजल को शोधित करने की प्राकृतिक व्यवस्था है, इससे छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए।इसमें शहर के एक तरफ से गंगा निकलती है तो उसके दो तरफ से वरुणा और असी।आज वरुणा का ही अस्तित्व बचा है।असी को तो पाट दिया गया।उसके जल ग्रहण क्षेत्र तक में मकान बन गए।इस समय वरुणा के साथ भी इसी तरह का कृत्य चल रहा।अब तक प्रशासन की प्राथमिकता में वरुणा नहीं आ सकी।इसके आस पास मनमानी जारी है।कहीं कूड़ा फेंका जा रहा तो कहीं मकान बन रहे।

किसी समय केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जगमोहन इसी वरुणा नदी को गहरा कराकर जल परिवहन की संभावना पर कार्य कर रहे थे।उनके मंत्री पद से हटते ही वह प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में चला गया। यदि इस नदी की हिफाजत हो जाए तो क्षेत्र में होने वाले नित्य जाम की समस्या का काफी हद तक निदान निकल सकता है। यही नहीं इसी नदी के किनारे स्थित पंचतारा होटलों में ठहरने वाले पर्यटकों के लिए भी जल परिवहन की अच्छी संभावना हो सकती है। फिलहाल नदी को अपने बचाव की लड़ाई लड़नी है।
इस मामले को भी ‘AV News’ने प्रकाशित कर प्रशासनिक मशीनरी का ध्यान आकृष्ट कराया था लेकिन जूं तक नहीं रेंगी। फिलहाल दूरगामी इंतजाम की कमी का नतीजा रहा कि वरुणा का पानी निथर कर गंगा में वापस हो गया।हम हाथ मलते अगली बरसात का इंतजार कर रहे।

*रिपोर्ट:-एस के श्रीवास्तव विकास जंसा*

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