बाड़मेर/राजस्थान – प्रदेश में बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल में अब पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का पेंच फंस गया है, एक ओर जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मंत्रिमंडल विस्तार किए जाने के पक्ष में है तो वहीं सचिन पायलट अब मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल को लेकर अड़े हुए हैं और 2 साल के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा नए चेहरों को मंत्रिमंडल में मौका दिए जाने के पक्ष में हैं।
वहीं अब प्रदेश में मंत्रिमंडल फेरबदल होगा या विस्तार इसका फैसला अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर छोड़ा गया है। बताया जाता है कि प्रदेश प्रभारी अजय माकन और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल की गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात होनी है जिसमें मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा होगी।
सूत्रों की माने तो मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल की तारीखों में अब भी लगातार पेंच फंसता नजर आ रहा है, बताया जाता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 17 दिसंबर के बाद मंत्रिमंडल विस्तार के पक्ष में हैं तो वहीं पार्टी के शीर्ष नेता इसी माह मंत्रिमंडल विस्तार किए जाने का दबाव बनाए हुए हैं।
मौजूदा हालात को देखते हुए सबसे बड़ी बात तो यह है कि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की भूमिका अब क्या रहने वाली है? इसे लेकर भी अजय माकन और केसी वेणुगोपाल सोनिया गांधी से चर्चा करेंगे। सचिन पायलट को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा या फिर उन्हें संगठन में क्या भूमिका दी जाएगी। इस पर भी चर्चा होनी है। बुधवार को दिल्ली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, अजय माकन और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच हुई बैठक में भी सचिन पायलट की भूमिका पर चर्चा हुई है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुरुवार दोपहर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगे। हालांकि मुलाकात को लेकर अभी आधिकारिक समय निर्धारित नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि दोपहर 1बजे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच मुलाकात होनी है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल किए जाने वाले चेहरों को लेकर सोनिया गांधी से से चर्चा करेंगे। सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली से जयपुर लौट जाएंगे।
गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल तीन मंत्रियों की अब मंत्रिमंडल से छुट्टी होना तय है इन मंत्रियों में चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा, राजस्व मंत्री हरीश चौधरी और शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा है। पहले माना जा रहा था कि शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा मंत्री के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस के मुखिया की दोहरी जिम्मेदारी निभाएंगे, लेकिन अब बदली हुई रणनीति के तहत एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत के चलते उन्हें भी मंत्रिमंडल से बाहर किया जाएगा।
इस तरह अब गहलोत मंत्रिमंडल में 12 पद रिक्त हो जाएंगे, जिनमें से माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल में 9 पद भरे जाएंगे और 3 पद खाली रखे जाएंगे जिन्हें बाद में भरा जा सकता है। बताया जाता है कि मंत्रिमंडल विस्तार में 9 नए चेहरों को मौका मिल सकता है।
जो शीशा चटक गया, वह पुनः जुड़ जाएगा, इसकी दूर दूर दूर तक कोइ संभावनाएं नही है । तात्कालिक रूप से एक बार फिर से अशोक गहलोत और सचिन पायलट गले मिलने का स्वांग जरूर कर सकते है । लेकिन आगामी विधानसभा चुनावो तक दोनों के बीच उठा-पटक जारी रहेगा, यह सोचना भी बेमानी होगा । मनमुटाव और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ थमने के कोई आसार मौजूदा परिस्थितियों में नजर नही आ रहे है ।
दरअसल गहलोत मंत्रीमण्डल विस्तार या पुनर्गठन के कतई पक्ष में नही है । वे भलीभांति जानते है कि राज्य में मंत्रीमण्डल विस्तार के बाद सैलाब थमने वाला नही है । बल्कि यह सैलाब पहले से ही ज्यादा विकराल रूप ग्रहण करेगा । मंत्रीमंडल विस्तार में सचिन गुट के लोगो को ही एडजस्ट नही करना है । इसके अलावा गहलोत सरकार
के वफादार विधायकों, बीएसपी और निर्दलीयों को भी उचित मान सम्मान देना होगा ।
मुख्य बात यह है कि सचिन समर्थकों को एडजस्ट करने के चक्कर मे गहलोत के वफादारों की बलि चढ़ना लाजिमी है । यही वजह है कि पिछले एक साल से वे मंत्रीमण्डल का विस्तार लगातार टालते आ रहे है । अब भी कोई सर्वमान्य हल निकलेगा, सम्भव नही लगता है । देखते है कि आलाकमान क्या फार्मूला सुझाता है । कहीं ऐसा नही हो कि सचिन के चक्कर मे कांग्रेस में असंतोष की ज्वालामुखी फूट पड़े ।
गहलोत भलीभांति जानते है कि आलाकमान से मिलने का मतलब है सचिन के समर्थको को मंत्रिमंडल या अन्य महत्वपूर्ण पदों पर एडजस्ट करना । जबकि पिछली परिस्थितियों को देखते हुए सचिन के किसी समर्थक को कुर्सी सौपने के पक्ष में नही है । चूँकि सचिन द्वारा पिछले एक साल से लगातार दिल्ली चक्कर लगाने के कारण आलाकमान ने गहलोत को दिल्ली तलब किया है ।
आलाकमान की मंशा है कि सचिन के चार समर्थको को मंत्रिमंडल में जगह दी जाए । इसके अतिरिक्त निगम, बोर्ड, प्राधिकरण तथा आयोगों में यथोचित स्थान मिले । लेकिन गहलोत इस पर सहमत होंगे, इसकी संभावना बहुत कम नजर आती है । हो सकता है कि मुख्यमंत्री मंत्रीमंडल का विस्तार या पुनर्गठन को फिलहाल कुछ समय के लिए टाल दे ।
गहलोत बखूबी जानते है अगर सभी वर्ग, जात, क्षेत्र और उनके विश्वस्तों को समुचित प्रतिनिधत्व नही मिला तो बगावत की लहर मंत्रिमण्डल विस्तार होने के साथ ही प्रारम्भ हो सकती है । इस संक्रमण की चपेट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा खुद कांग्रेस आलाकमान भी इसका शिकार हो सकता है । इसलिए गहलोत बहुत दिनों से चुप्पी साधे बैठे हैं । वैसे तो मंत्रिमण्डल विस्तार पिछले तीन साल से टलता आ रहा है । गहलोत की दिल्ली यात्रा के बाद विधायकों को पूरी उम्मीद है कि इस बार विस्तार होकर ही रहेगा ।
मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की खबर दर्जनों बार अखबारों में छप चुकी है । प्रभारी अजय माकन भी अनेक बार राजधानी में घोषणा कर चुके है कि यह प्रक्रिया जल्द पूरी होने वाली है । हर बार उनकी घोषणा झूठी साबित हुई । जब जब माकन राजस्थान आए, उम्मीद बंधी कि इस दफा विधायको को तोहफा अवश्य मिलेगा । इसी तरह केसी वेणुगोपाल की पिछली जयपुर यात्रा के दौरान भी इसी तरह के कयास लगाए गए । लेकिन गहलोत की दिल्ली यात्रा से अब फिर से उम्मीद बंधी है कि अब मंत्रिमण्डल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया शीघ्र प्रारम्भ होने वाली है ।
असली पेच यह फंसा हुआ है कि अधिकांश विधायक मंत्री बनने की आस लगाए बैठे है । उधर विधायको के अलावा कांग्रेस के पराजित तथा वरिष्ठ नेताओं की लंबी चौड़ी कतार लगी हुई है जो राजनीतिक नियुक्तियों के तलबगार है । हकीकत यह भी है कि बहुत सारी और महत्वपूर्ण नियुक्तियां सेवानिवृत अधिकारियों के जरिये लगभग पूरी की जा चुकी है । दूध से मलाई तो निकाल ली गई है अब केवल सप्रेटा बचा है ।
राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर पूर्व डीजीपी भूपेंद्रसिंह यादव, सदस्य के रूप में जसवंत राठी, मंजू शर्मा, संगीता आर्य, कर्मचारी चयन आयोग में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हरिप्रसाद शर्मा, सूचना आयोग में पूर्व आईएएस डीबी गुप्ता, नारायण बारेठ, श्वेता धनखड़, गंगानगर शुगर मिल में एलडी शर्मा, बाल संरक्षण आयोग में बेनीवाल, रीको में सीताराम अग्रवाल, प्रद्युम्नसिंह को वित्त आयोग मे नियुक्त किया जा चुका है । अब कुछ ही महत्वपूर्ण पद बचे है जिनको हथियाने के लिए जोधपुर सम्भाग के छोटे बड़े राजनेता इंतजार में बैठे है ।
मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल में कुल 21 सदस्य है । अधिकतम 30 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है । यानी 9 विधायकों के लिए मंत्रिमण्डल में जगह बची हुई है । जबकि प्रबल दावेदारों में हेमाराम चौधरी, विश्वेन्द्र सिंह, इन्द्रराज गुर्जर, मुरारीलाल मीणा, दीपेंद्र सिंह, हरीश मीणा, वेदप्रकाश सोलंकी, रमेश मीणा, महादेवसिंह खण्डेला, परसराम मोरदिया, राजकुमार शर्मा, राजेन्द्र पारीक, नरेंद्र बुडानिया, डॉ जितेंद्र सिंह, पंडित भंवरलाल शर्मा, शकुंतला रावत, बाबूलाल बैरवा, जौहरीलाल मीणा, बाबूलाल नागर, संयम लोढा, राजन्द्रे गुढा, दीपचंद खैरिया, बलजीत यादव, भरतसिंह, अमीन खान, रमिला खड़िया, रामकेश मीणा और बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन आदि शामिल है । ये ऐसे नाम है जिनकी अनदेखी करना गहलोत के लिए घातक साबित हो सकता है । अब तो प्रीति शक्तावत भी मंत्री बनने के सपने देखने लगी है ।
उधर बसपा की ओर से एक केबिनेट, एक राज्य मंत्री तथा एक विधायक के लिए आयोग के अध्यक्ष का पद मांगा जा रहा है । निर्दलीयों की भी मांग है कि उनके कोटे से न्यूनतम पांच विधायकों को मंत्री बनाया जाए । संयम लोढा, बाबूलाल नागर का नाम तय माना जा रहा है । इसके अलावा एक अन्य विधायक को मंत्री बनाया जा सकता है । सुरेश टांक का सूची में सबसे ऊपर नाम है ।
अगर बसपा के तीन और निर्दलीयों में से चार मंत्री बना लिए गए तो मंत्रिमंडल में केवल दो विधायको को जगह मिलेगी । नंगा क्या तो नहाए और क्यो निचोड़े ? सचिन पायलट उम्मीद लगाए बैठे है कि उनके समर्थित छह व्यक्तियों को मंत्रिमण्डल में जगह दी जाए । अगर सचिन की बात मान ली जाती है तो मंत्रिमण्डल में केवल तीन व्यक्तियों के लिए जगह बचती है । इस थ्री बीएचके में बीएसपी, निर्दलीय और कांग्रेसी विधायको को कैसे समायोजित किया जाएगा, इसका फार्मूला कांग्रेस आलाकमान को भी समझ नही आ रहा है ।
पायलट केवल एक ही धुन बजा रहे है कि मेरे छह मंत्रियों को जगह दो । अगर ऐसा है तो गहलोत को चाहिए कि वे अपने समर्थक विधायकों को कमण्डल लेकर हरिद्वार भेज दे । कोई भी व्यक्ति राजनीति में प्याऊ पर पानी पिलाने के लिए नही आता है । हर विधायक को चाहिए मंत्री पद । खुद पायलट ने भी मुख्यमंत्री बनने के लिए कई दिन तक उधम मचाया था ।
अगर गहलोत ने सही संतुलन नही बनाया तो बगावत होना सुनिश्चित है । जो लोग मंत्री बनने या निगम का अध्यक्ष नियुक्त होने के लिए खामोश बैठे है, जब इनका किसी सूची में नाम नही आएगा, तब यही “वफादार” बेवफाई पर उतरते हुए गहलोत के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाने लगेंगे ।
यह भी सब जानते है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नही होता है । जो आज पायलट की जय जय कर रहे है । मंत्री बनते ही पायलट मुर्दाबाद और गहलोत जिंदाबाद के नारे लगाने लगेंगे । यह बात गहलोत भी बखूबी जानते है । वे इस बात से पूर्णतया वाकिफ है कि जब तक यही वजह है कि गहलोत पिछले काफी दिनों से मंत्रिमण्डल विस्तार को टालते आ रहे है । वे यह भी जानते है कि एक बार मंत्री बनाने और राजनीतिक नियुक्तियों का फ्लड गेट खुल गया तो स्थिति संभालना कठिन नही, नामुमकिन हो जाएगा ।
आलाकमान ने जो फार्मूला पंजाब में अपनाया, वह कतई व्यवहारिक नही थोपा हुआ निर्णय है । इस फार्मूले से कांग्रेस के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता बुरी तरह जख्मी हुए है । फार्मूले ने जाहिर कर दिया है कि बगावत करने वाले पार्टी पर काबिज है । जबकि वर्षो से पार्टी के प्रति समर्पित लोग आज हासिये पर चले गए है । यह फैसला इसलिए भी व्यवहारिक नही है क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में तनिक भी आस्था नही है । कुर्सी ही उनके लिए सबसे बड़ी आस्था है । अपने स्वार्थ के लिए जो व्यक्ति बीजेपी को अपनी माँ बताने वाला, समय आने पर कांग्रेस को भी लात मार सकता है । लिहाजा आलाकमान को एकतरफा फैसला नही लेते हुए ऐसा व्यवहारिक हल खोजना चाहिए जिसमें में बगावत की संभावना कम हो ।