चन्दौली- दीपावली दीपों का पर्व है। दीपावली मैं मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।लेकिन बदलते दौर में मिट्टी के दीपक की जगह चाइनीज झालरों ने ले ली है।जो सस्ता होने के साथ-साथ सुविधाजनक भी है। लेकिन निकट भविष्य में इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। जिनको लोग दरकिनार कर धड़ल्ले से चाइनीज झालरों का उपयोग कर रहे हैं। महंगाई की मार झेल रहे कुम्हार को लागत के अनुसार मुनाफा भी नहीं मिल पा रहा है इसके वजह से अब ज्यादातर कुम्हार इस पुश्तैनी धंधे से विरत होते जा रहे हैं। चंद लोग ही अब इस पुश्तैनी धंधे को जीवित रहने रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।कुम्हारों को न मिट्टी सुलभ है और ना ही सस्ते दरों में रंग रोगन व पकाने के लिए कोयला ही सुलभ है। समाज के हर तबके के लिए सरकार के पास कोई न कोई योजना है।लेकिन किसी सरकार ने कुम्हार जाति के पुश्तैनी रोजगार को जीवित रखने के लिए मिट्टी कला जैसे उद्योग को बढ़ावा देने का कार्य ठीक से नहीं किया। वरना आज कुम्हार बेहाल न होता।
रंधा सिंह चन्दौली