पर्वतीय युवा संगठन! “ढपाेसलां “युवाओं को कुछ नहीं मिला वजट में

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड की भोली जनता को लगा की प्रदेश की तस्वीर बदलेगी और उत्तराखंड के इतिहास के रिकॉर्ड मतो से विजयी बनाकर इनके माथे ताज पहनाया।और इस सरकार ने यहाँ के वासियो विशेषकर युवा वर्ग के अरमानो व मनोबल को कुचल कर रख दिया।और आलम यह रहा की स्थिति पूर्ववर्ती सरकार से भी बदतर व जर्जरपूर्ण होती गयी।
पर्वतीय युवा संगठन के संचालक संदीप आर्य का कहना है कि
मैं इस प्रदेश का हर युवा से पूछना चाहता है कि ऐसी भ्रम की राजनीति क्यों करते हो?कब तक युवाओ की आशाओ और उम्मीदों से खिलवाड़ करते रहोगे?
“जीरो टालरेंस” व ” विकास” इन दो शब्दों से यहाँ की जनता ऊब सी गयी है जो एक निर्रथक प्रयास लगता है।पूर्व की सरकार से खिन्न होकर यहाँ की जनता ने आपको मौका दिया पर आपने इस मौके को भुनाने की वजाय तानाशाही पैदा कर दी।

मैं किसी भी पार्टी का समर्थक या आलोचक नही हूँ परन्तु स्वतंत्र भारत का नागरिक होने के नाते जो यह भयावह स्थिति पैदा हो रही है उस पर लिखने पर मजबूर कर दिया। जिसमे ” भ्रष्टाचार की स्थिति पूर्व की तरह”, ” बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर”, और किसी भी कार्यालय की स्थिति जस की तस।
अखबार में पड़ने को मिला मुख्यमंत्री जी बोल रहे थे ” स्वरोजगार ” को बढ़ावा दे, स्वरोजगार अपनाये।आप शायद यह भूल गए कि स्वरोजगार के लिए भी पूँजी की आवश्यकता होती है यहाँ की जनता आप या अमित शाह जैसे नेताओ की तरह धनाढ़्य नही है। गरीब तबके या मध्यम वर्गीय युवा पूरी मेहनत से तैयारी करते है और यहाँ के नेता उनकी इसी मेहनत को ‘ डकार’ जाते है।
पिछले दिनों आप सब ने उत्तराखंड के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल का कथन सुना होगा क्या यह राजनेता होने के गुणो को दर्शाता है?उनका युवाओ से वक्तव्य था कि-“जो करना है कर लो मैं नही निकालता नौकरी,तुमने नही बनाया मुझे मंत्री” यह अपने आप में बहुत शर्मनाक व् दुखद लगता है।
आप पूरी जनता विशेषकर युवाओ से यह अनुरोध है कि आगामी सरकार जो भी आये परंतु इस मंत्री को दिखा देना की वह जनता की वजह से ही इस मंत्री पद पर आसीन हुआ है।
आज का युवा अपनी पारिवारिक स्थिति को दरकिनार रकते हुए बड़ी उम्मीदों के साथ सरकारी नौकरी की तैयारी करता है। और बदले में उसको क्या मिलता है सिर्फ और सिर्फ ” छलावा”।यह कब तक चलेगा मान्यवर?क्या ऐसे ही मेरा देश, मेरा प्रदेश तरक्की करेगा?।

“जुगाड़” यह शब्द हर किसी की जुबां पर आम हो चला है।आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आ रही है क़ि इस शब्द का उच्चारण करने को लोग विवश हो जा रहे है? रिक्त पदों की भर्तियां आने से पूर्व ही उन पदों का मूल्य निर्धारित हो जा रहा है।युवाओ का मनोबल इस प्रारम्भिक अवस्था में ही तोड़ दिया जा रहा है।तभी सोचता हूँ क्या मेरा देश सच में आगे बढ़ रहा है? प्रदेशो में धांधली आम बात हो चली है।क्या मेधावी छात्रो के होसलों के”पर” इसी तरह कटते रहेंगे? यह बड़ा ही दुःखद व् सोचनीय विषय है।कृपया इस पर अमल करे और युवाओ की उम्मीदों को ढेस न पहुचाये।
अभी भी यह तानाशाही सरकार कुछ समझ ले और बेरोजगार युवाओ के हित में कोई कठोर कदम उठाये तो ठीक वर्ना ” परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है” जितना उचाई में जाने में समय लगता है उससे तेज़ी से नीचे आने मे।
-इन्द्रजीत सिंह असवाल ,पौड़ी गढ़वाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *