बरेली। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रणनीति के साथ उतर रही है। मान्यता प्राप्त दलों के सिंबल पर पंचायत चुनाव नहीं होने की वजह से पार्टियां अभी सीधे तौर पर तो मैदान मे भले ही नहीं आई है, लेकिन संभावित उम्मीदवार को जिताने के लिए सियासी बिसात बिछ गई है। बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने के साथ राजनीतिक पार्टियों के मुद्दे भी तय हो गए है। इस बार त्रिस्तरीय चुनाव में बेरोजगारी और महंगाई के अलावा तीन कृषि कानून को लेकर लंबे समय से चल रहा किसान आंदोलन हो गया है। विपक्षी इन मुद्दों के सहारे ही अपनी नैय्या पार लगाने में लगे है। पिछले दिनो जिला पंचायत अध्यक्ष पद का आरक्षण तय हो गया है। अन्य पदों के लिए भी आरक्षण की प्रक्रिया अंतिम चरणों में है। मतलब, चुनावी शंखदान में अब कुछ दिन ही शेष है, ऐसे में सियासी दलों ने तैयारियां तेज कर दी हैं। भाजपा तो हर पद के लिए उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुकी है।बसपा ने भी संभावित उम्मीदवार उतराने की घोषणा की है। किसानों के मुद्दे को लेकर सपा की ओर से योजनाबद्ध तरीके से जागरूकता अभियान और आंदोलन की रणनीति बनी है। इसी के तहत कार्य किया जा रहा है। गांव-गांव पार्टी की नीतियों से ग्रामीणों को अवगत कराकर जागरूक किया जा रहा है। कृषि कानून को किसान विरोधी बताकर आगामी चुनाव में सरकार को सबक सिखाने की बात कही जा रही है। सपा जिलाध्यक्ष अगम मौर्य का कहना है कि इस बार मुद्दा तो सरकार ने खुद ही दे दिया है। किसान आंदोलन, बेरोजगार, महिलाओं की सुरक्षा चुनाव के मुख्य मुद्दे होगे। कांग्रेस ने भी किसानों के मुद्दे पर ब्लॉकवार चौपालों की घोषणा की है। इसको लेकर गांवों में चौपाल भी लगाई जा रही है। मीरगंज में एक दिन पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने जहां भाजपा पर निशाना साधा था तो वहीं, महानगर अध्यक्ष अजय शुक्ला का भी साफ कहना है उक्त तीनों मुद्दे पर पंचायत चुनाव में सीधी भागीदारी की रणनीति बनाई जा रही है। सरकार आने वाले समय का इंतजार करें। इधर, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी गांव-गांव पदयात्रा निकाल खूबियां गिनाने में लगी है, ताकि किसी भी तरीके से सरकार की घेराबंदी की जा सके।।
बरेली से कपिल यादव