ओ यूँ ना लम्हा लम्हा मेरी याद में
होके तन्हा तन्हा मेरे बाद में
नैना अश्क़ ना हो
माना कल से होंगे हम दूर
नैना अश्क़ ना हो
नैना अश्क़ ना हो
दिल्ली – 28 फरवरी की शाम को निगम बोध घाट, दिल्ली पर बड़ा गमगीन माहौल था, जब उत्तराखंड समाज द्वारा सामूहिक तौर पर दिलबर नेगी का अंतिम संस्कार किया गया। दिलबर नेगी 24 फरवरी की रात को पूर्वी दिल्ली में भड़के हिसंक दंगों में जान गँवा बैठे।
लगभग 19 वर्षीयदिलबर नेगी पौड़ी गढ़वाल जिले के थैलीसैंण ब्लॉक, तहसील चकिसैंण के अंतर्गत आने वाले रोखड़ा गांव के निवासी थे। दिलबर के पिता का नाम गोविन्द सिंह नेगी है। दिलबर के अलावा परिवार में दो भाई एक बड़ा और एक छोटा और तीन बहनें हैं जिनमें से दो बहनों की शादी हो गयी है।
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पिता जी का स्वास्थ्य भी ख़राब रहता है। इसी के चलते बड़ा भाई देवेंद्र सिंह नेगी बहुत पहले से ही गाजियाबाद में निजी क्षेत्र में काम करने लगा। लगभग सात माह पूर्व दिलबर और उसका छोटा भाई भी बाहरवीं की परीक्षा उपरांत रोजी रोटी कमाने दिल्ली आ गए।
यहाँ दिलबर नेगी करावल नगर में शिव विहार तिराहा के पास अनिल स्वीट शॉप में काम कर रहा था। दिलबर मालिक की ही पास में बनाई बिल्डिंग में रहता था। 24 फरवरी को शाम तीन बजे के बाद क्षेत्र में हिसंक दंगे भड़क गए। जानकारी के मुताबिक जिस बिल्डिंग में दिलबर रहता था उसमें दंगाइयों ने आग लगा दी जिसमें दिलबर चल बसा।
क्षेत्र में हालत इतने तनावपूर्ण थे कि दो दिनों तक दिलबर की कोई खोज खबर नहीं मिली। 26 फरवरी को जब मालिक पुलिस की मदद से बिल्डिंग में पहुंचा तक घटना का पता चला। उसके बाद दिलबर की लाश को गुरुतेगबहादुर अस्पताल में मोर्चरी में पहुँचाया गया। दिलबर के साथ रहने वाले गांव के ही किसी परिचित ने परिजनों को सुचना दी। सुचना मिलते ही गांव से दिलबर के चाचा जगत सिंह नेगी और गाजियाबाद से भाई देवेंद्र और अन्य सम्बन्धी अस्पताल पहुंचे।
जैसे जैसे दिलबर की मौत की सुचना दिल्ली में फैली यहाँ रहने वाला उत्तराखंडी समाज से जुड़े प्रबुद्धजन, समाजसेवी भी दिलबर की खोज खबर लेने अस्पताल पहुंचे। घटना से स्तबध उत्तराखंड समाज ने दिवंगत के परिजनों की अस्पताल की औपचारिकताओं से लेकर निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार में हर प्रकार की सामाजिक आर्थिक मदद की।
परिजनों ने बताया की दिलबर हसमुख स्वाभाव का था और फौज में भर्ती होना चाहता था। परिवार पर आर्थिक बोझ ना हो इसलिए दिलबर दिल्ली में नौकरी कर अपना सपना साकार करना चाहता था। पर किसी को नहीं पता था देश की सुरक्षा का सपना पाले उत्तराखंड का ये जवान दंगों में शहीद हो जायेगा।
ओ माई मेरी, क्या फिक्र तुझे, क्यूं आंख से दरिया बहता है?
तू कहती थी, तेरा चांद हूं मैं, और चांद हमेशा रहता है।
तेरी मिट्टी में मिल जांवां
ग़ुल बन के मैं खिल जांवां
इतनी सी, है दिल की आरज़ू!
तेरी नदियों में बह जांवां
तेरी फ़सलों में लहरावां
इतनी सी, है दिल की आरज़ू!
जहाँ दिलबर के चले जाने से इनके परिवार को कभी ना भरपाई होने वाली क्षति पहुंची है वहीँ देवभूमि के इस जवान की मौत से उनके गांव जिले में माहौल गमगीन है। दिल्ली में रहने वाला उत्तराखंडी समाज भी निशब्द और आक्रोशित है। घटना से आहत निगम बोध घाट पर जुटे उत्तराखंड समाज के लोगों ने दिलबर के परिवार को उत्तराखंड, दिल्ली और केंद्र सरकार से न्याय एवं आर्थिक सहयोग दिलाने का संकल्प लेकर अपने एकता अखंडता और भाईचारे का परिचय दिया। साथ में तय किया की परिवार के सदस्य को को सरकारी नौकरी की मांग भी पुरजोर तौर पर उठाएगी।
वास्तव में हम दिलबर की कमी कभी पूरी नहीं कर सकते पर के परिवार को इंसाफ दिलाने में अपना एकजुट प्रयास जरूर कर सकते हैं। प्रदेश में बसे उत्तराखंडी समाज के सामने यह भी चुनौती है कि फिर से हमारा निर्दोष भाई सामाजिक अपराधों, दंगों की भेंट न चढ़े।
– समाजिक कार्यकर्ता भीमसिंह रावत और बलबीर जैन्तवाल