बरेली/फतेहगंज पश्चिमी-जाऊ सौ वार मैं तुम पे वारी आज मेहंदी है क़ासिम तुम्हारी मोहर्रम की सात तारीख़ यानि कि मेहंदी का दिन यह गम का बह दिन था जिस दिन हज़रत क़ासिम की मेहंदी की रस्म होनी थी। इस्लाम के मुताबिक मेहंदी की रस्म इसलिए निभाई जाती है क्योंकि इसी दिन हजरत कासिम जंग में शहीद हो गये थे। जिस दिन यह जंग हुई थी उसी दिन हज़रत क़ासिम की मेहंदी थी। जंग में शहीद होने की वजह से हज़रत क़ासिम के हाथों में मेहंदी नहीं लग पाई थी मुहर्रम की इसी रात को मेहंदी की रात कहा जाता है और फातिहा पढ़ी जाती है। कस्वा एवं आसपास गाँवों में मेहंदी पर इमामवाड़ो पर भारी भीड़ रही जहाँ लोगों ने फातिहा लगवाई। इलाक़े के ग्राम अगरास में मेहंदी पर भारी भीड़ भाड़ एवं रात भर चहल पहल रहती है। मीरगंज सर्किल में अगरास की मेहंदी का नाम इलाक़े भर में है यहाँ मेहंदी मोहर्रम की सात तारीख़ को उठती है और अगले दिन अपने पूर्व निर्धारित समय पर वापिस पहुँचती है यहाँ व्यवस्था में प्रधान कफ़ील अहमद उर्फ़ छोटे अंसारी अपनी टीम के साथ लगे रहे।
– बरेली से सौरभ पाठक की रिपोर्ट