कविता आओ दीया जलाएं

आओ एक दीया मैं जलाऊँ एक दीया तुम जलाना
संकट के साये में शुभ-संकल्पों की अलख जगाना

आशा के हैं दीप बुझे छाया है घनघोर अंधेरा
काल कोरोना डाल चुका है अपना डेरा
बिखरे मोती माला के फिर से आज पिरोने होंगे
कौंधी-कतराई आँखों में सपने आज संजोने होंगे
कुंठित मन के चेहरों को होगा फिर से हर्षाना

आओ एक दीया मैं जलाऊँ एक दीया तुम जलाना
संकट के साये में शुभ-संकल्पों की अलख जगाना

प्रेमघृत के दीप जलाकर अंधियारे को हरना होगा
भारत की सन्तानों को कदम मिलाके चलना होगा
अरुणमी मन की आभा और नयनो में नया सवेरा
छंट जायेगा धुंध धरा से कुछ दिन का है ये फेरा
घट-घट में हो उजियारा ऐंसा हमको दीया जलाना

आओ एक दीया मैं जलाऊँ एक दीया तुम जलाना
संकट के साये में शुभ-संकल्पों की अलख जगाना

आओ मिलकर कर दे हम भारत का रुप नया
हर मानव में प्रेम जगे और हर मानव मे दया
कोरोना से कर संघर्ष जो देते जीवनदान नया
देश के प्यारो भूल न जाना आज उन्हें
एक दीया उनके भी नाम जलाना

आओ एक दीया मैं जलाऊँ एक दीया तुम जलाना
संकट के साये में शुभ-संकल्पों की अलख जगाना

प्रसिद्ध महाकवि जगदीश गढ़वाली डिम्पल रौतेला की कविता आओ दीया जलाएं

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