इतिहास के पन्नो से बाहर लाए गए राजा हिरदेशाह लोधी

*राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में याद की गई 1842 की क्रांति

मध्यप्रदेश /जबलपुर – अंग्रेजों के खिलाफ 1842 की क्रान्ति और उसमें बुंदेला शासक राजा हिरदेशाह लोधी के व्यक्तित्व और कृतित्व को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया गया। शहीद स्मारक प्रेक्षागृह में राजा हिरदेशाह लोधी के व्यक्तित्व औऱ कृतित्व को रेखांकित करती राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी एवं नाट्य मंचन आयोजित किया गया। भारत सरकार के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला न्यास द्वारा आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने इतिहास के पन्नों को इतनी खूबी और रोचकता के साथ पलटा कि समूचे सदन का वातावरण सन्नाटेदार हो गया। संगोष्ठी में बतौर वक्ता आमंत्रित राष्ट्रीय गैर अधिसूचित जनजाति आयोग के पूर्व उपसचिव एवं निदेशक बीके लोधी ने बताया कि राजा हिरदेशाह लोधी ने सन 1840 में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की योजना बनाई थी। यह क्रांति 1841 में प्रारम्भ हुई और 1843 तक चली। चूंकि इस क्रांति का बिगुल बुंदेला शासकों ने फूंका था इसलिए इसे बुंदेला क्रांति कहा गया। उन्होंने बताया कि 1842 से लेकर 1857 तक देश के स्वतंत्रता संग्राम में राजा हिरदेशाह लोधी के परिवार का अमर योगदान रहा है।

इसी क्रम में नरसिंहपुर के सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राजेन्द्र पटेल ने बताया कि राजा हिरदेशाह लोधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अनेक लेखकों ने किताबें लिखीं हैं। उन्होंने बताया कि राजा हिरदेशाह लोधी ने 1842 की क्रांति दशहरे के दिन से प्रारंभ करने का निर्णय लिया था। लिहाजा उन्होंने दशहरे के दिन आसपास के अनेक राजाओं को नरसिंहपुर आमंत्रित किया था।
इसके बाद राजा हृदय शाह ने बड़ी वीरता के साथ 18 माह तक गोरिल्ला तकनीक अपनाकर अंग्रेजों से लोहा लिया और यह लड़ाई नरसिंहपुर से सागर तक जारी रही।

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रोफेसर एडीएन बाजपेई ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि हम अपना डीएनए भूल गए हैं। हम यह भूल गए हैं कि हमारा डीएनए शहीदों से मिलता है और उस डीएनए की खोज करना आज आवश्यक है। प्रोफ़ेसर बाजपेई ने कहा की इतिहास और इतिहास में दर्ज शहीदों पर इस तरह की संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालयों को करना चाहिए लेकिन आज विश्वविद्यालय अपनी अस्मिता खो चुके हैं उन्होंने कहा कि इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता है।

बुंदेला क्रांति के महानायक अमर शहीद राजा हिरदेशाह लोधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित इस राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी एवं नाट्य मंचन कार्यक्रम में भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एवं जल शक्ति राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री पटेल ने कहा कि यह बेहद अफसोस और विचार का विषय है कि जिस राजा हिरदेशाह लोधी को हम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के माध्यम से याद कर रहे हैं, हममें से किसी को उनकी जन्मतिथि का भी पता नहीं है। यही वजह है कि उनकी पुण्यतिथि पर यह आयोजन हो रहा है। यह इतिहास में हुई हमारी एक बड़ी चूक है और हमें इस तरह की भूलों को सुधारने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि राजा हिरदेशाह के बलिदान के डेढ़ सौ बरस बाद उनके द्वारा पहली बार जबलपुर में उनकी याद और उनके नाम से कोई कार्यक्रम आयोजित हो सका है। इस अवसर पर उन्होंने घोषणा भी की कि राजा हिरदेशाह लोधी पर इस तरह का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाएगा।
इंद्रा गांघी राष्ट्रीय कला केंद्र के न्यासी आलोक जैन ने अतिथि सम्मान किया एवं रविन्द्र बाजपेई ने संचालन किया।

श्री जानकी बैंड ऑफ वूमेन की सुरमयी प्रस्तुति से शुभारम्भ
राजा हिरदेशाह लोधी को समर्पित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का शुभारंभ श्री जानकी बैंड ऑफ वूमेन की सुरमयी प्रस्तुति से हुआ। बैंड में शामिल महिला कलाकारों के दल ने लोकगायन शैली में नर्मदा पर आधारित बंबुलिया “नरबदा मैया ऐसी तो बहें रे” गाकर माहौल को भक्ति आनंद से सराबोर कर दिया। इसके बाद बड़े ही सधे अंदाज में देशभक्ति और अमर शहीदों का गुणगान करती रचनाओं की संगीतमयी प्रस्तुति से कलाकारों ने दर्शकों से खचाखच भरे शहीद स्मारक प्रेक्षाग्रह में खूब तालियां और वाहवाही अर्जित की।

नाट्य प्रस्तुति देख नम हुई आंखें

इस अवसर पर भोपाल से आये विख्यात नाट्य ग्रुप तनवीर अहमद के दल ने इतने रोचक और भावुक अंदाज़ में राजा हिरदेशाह लोधी के जीवन और बलिदान को मंच पर जीवन्त किया कि दर्शकों की आंखे नम हो गई। नाट्य प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा भरपूर तालियों का उपहार दिया।

इस भव्य आयोजन में राजा हिरदेशाह लोधी की 6 वीं पीढ़ी के वंशज कौशलेंद्र सिंह, मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री शरद जैन,नरसिंहपुर विधायक जालिम सिंह, नरसिंहपुर जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र सिंह, मणिपुर से पधारे प्रेमानंद शर्मा, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के न्यासी आलोक जैन सहित इतिहासविद, साहित्यकार, रंगकर्मी, कलाधर्मी जन बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

– अभिषेक रजक जबलपुर

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