बरेली। अलीगढ़ में सरकारी ठेको पर बिकने वाली अवैध देशी शराब पीने से सौ से ज्यादा लोग जान गंवा चुके है। शराब माफिया को पकडने के लिए एक लाख रुपये का इनाम घोषित करना पड़ा था। तब कहीं जाकर उसे पकड़ा जा सका। लेकिन बरेली मे तो आबकारी विभाग और पुलिस की सांठगांठ से देशी व अंग्रेजी शराब की अवैध मंडियां भी लगने लगी है। जिसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अलीगढ़ जैसा कांड कभी भी बरेली में भी हो सकता है। शराब की यह अवैध मंडिया जिले में कुकुरमुत्तों की तरह उग रही हैं। शराब की दुकानों की बंदी के दौरान इन मंडियों के संचालक सक्रिय हो जाते हैं। ओवर रेट में शराब बेचने के लिए खुलेआम माफियाओं के गुर्गे सड़कों पर खड़े रहते हैं। जो वहां रुकने वाले शख्स से खुल्लमखुल्ला पूछते है। देसी चाहिए या अंग्रेजी। डिमांड के हिसाब से शराब मुहैया कराई जाती है। जिसके एवज मे शराब के दामों से ज्यादा रकम वसूली जाती है। पुलिस के खौफ का ढ़ोग भी रचा जाता है। खरीदार को तुरंत ही पुलिस का डर दिखाकर चलता कर दिया जाता है। ऐसे खरीदार शराब की गुणवत्ता भी नही जांच पाता है। ऐसे मे इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि मिलावटी और अवैध शराब भी खपाई जा रही है। यही नही तमाम परचूनी की दुकाने भी शराब का ठेका बन गई हैं। जहां खुल्लमखुल्ला समय बेसमय शराब बेची जा रही है। शराब की दुकानों के खुलने का समय सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक का निर्धारित किया गया है। शाम के साढ़े छह बजे के बाद से दुकानों पर भीड़ जुट जाती है। इस अवधि में शराब प्रिंट रेट पर ही बेचनी होती है। मगर शराब के सैल्समैन इसी समय से शराब को ओवररेट में बेचने की प्लानिंग शुरू कर देते हैं। दिन भर की हुई बिक्री की रकम गिनने में लग जाते हैं। ग्राहकों को शराब नहीं बेचते हैं। पौने सात बजे दुकान का शटर गिरा देते हैं और ग्राहकों को दुकान के आसपास शराब बेचने वालों के पास भेज देते हैं। जहां से ओवर रेट पर शराब खरीदना मजबूरी हो जाता है। थाना प्रेमनगर थानान्तर्गत लल्ला मार्केट के पास अंग्रेजी, देशी शराब के अलावा बियर की भी दुकानें हैं। ये दुकानें पौने सात बजे तक बंद हो जाती हैं। इसके बाद माफिया शराब को सड़क किनारे से बेचना शुरू कर देते हैं। व्यक्ति के रुकते ही पूछा जाता है, क्या शराब चाहिए? कौन सी देशी या अंग्रेजी? उसके बाद ग्राहक से मनमाने रुपये वसूल कर शराब थमा दी जाती है। शीशी के विवरण को जानने का मौका नहीं दिया जाता। जिससे ग्राहक उसकी मूल कीमत और निर्माण सम्बंधी जानकारी नहंी जुटा पाता है। उससे पहले ही पुलिस के डर का ढोंग रचकर उसे भगा दिया जाता है। शराब की दुकानों की बंदी के बाद चलने वाली शराब की अवैध मंडियां पुलिस की ही शह पर चल रही हैं। मगर इस मंडी के विक्रेता ग्राहक को शराब बेचते वक्त पुलिस के डर का पूरा ढोंग रचते हैं। जबकि एक ग्राहक को शराब बेचने के बाद भी देर रात तक शराब बेचते रहते हैं। मुख्य सड़कों पर चलने वाले कारोबार को पुलिस भी काला चश्मा लगाकर देखती रहती है। शराब की अवैध मंडियां सड़कों के किनारे चल रही हैं। वही गली मोहल्लों में परचून की दुकानों पर शराब बेची जा रही है। इन दुकानों पर कई बार पुलिस की धरपकड़ के बाद भी धंधा जारी रहता है। पकडने के बाद पुलिस छोडऩे के नाम पर पैसे तो वसूलती ही है। बाद में महीना तय करके शराब की अवैध बिक्री की छूट दे दी जाती है।।
बरेली से कपिल यादव