राजस्थान/बाड़मेर – देश में आज-कल सैकड़ों टीवी चैनलों पर डिबेट के नाम पर अलग-अलग नामों से कई कार्यक्रम जैसे मारवाड़ी में कहावत है बातों रो ब्यालू इस तरह से दंगल, प्राइम टाइम, परिचर्चा ऐसे कई उदाहरणार्थ नाम आप हमेशा देखते हैं। कई टीवी चैनल पर प्रतिदिन अमूमन कुछ खास प्रवक्ताओं के साथ अलग-अलग विषयों पे चर्चाएं होती रहती है । कभी कभार मौजूदा हालात को देखते हुए विवादास्पद बयान पर बखेड़ा खड़ा हो जाता है और कभी कभार तो थापा मुक्केबाजी तक का हालात…. ओर फिर सब देश वासियों से माफी मांगने की बात
लेकिन आजकल चर्चा का सार व अंत कैसे समझें नीचे दिए गए व्यंग्य से—
टीवी एंकर व चार प्रवक्ताओं के साथ में
एक विषय रात इतनी घनी अंधेरी और स्याह क्यों पर चर्चा आरम्भ —
टीवी एंकर प्रवक्ता एक से वहीं सवाल जो चर्चा का विषय
उत्तर प्रवक्ता एक का–हम कहते दिन में बहुत उजाला होता है, एंकर सर सवाल से भटक रहे चर्चा को आप दुसरी दिशा में ले जा रहे। प्रवक्ता,आपमें यही प्राब्लम है आप सुनना ही नहीं चाहते या चाहती हों, इसमें हमारे हिस्से के पांच मिनट चले जाते हैं आप सुनिये हम कहना क्या चाहते हैं, देखिये हमने साठ सित्तर सालों में दिन बनाया आप इसे रात क्यौ बनाना चाहते पूछिए इनसे , दिन ही रहेगा तो रात आयेगी ही नहीं। फिर तो आपका प्रश्न ही अनुचित है एंकर आपका समय सीमा खत्म….
एंकर दूसरे प्रवक्ता से वहीं सवाल
दूसरे प्रवक्ता का जबाव– हम बार-बार कह रहे हमे पूरे अधिकार को दो तो यह होगा ही नहीं जो हमारे अधिकार क्षेत्र में है, हमने उस पर पूरा काम किया जैसे लोगों को घरों से निकालकर बस अड्डे तक पहुंचाना, लोगों को घरो से निकालकर रोड पर बिठाना ।
अब उनको आगे पहुंचाना या उठाना यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं तो उसका जबाव हम कैसे दे सकते हैं, एंकर आप बात को गोल गोल घूमा रहे ठीक नहीं कर रहे है आपकी समय सीमा समाप्त
एंकर तीसरे प्रवक्ता से वहीं सवाल
तीसरे प्रवक्ता का जबाव — हमने तो केवल चांद तक ले जाने का एक घंटा समय लिया बाकी 10-11 घंटों के लिए हम जिम्मेदार थोड़े ही है , बेकार में आप हमें बदनाम करने का कोई बहाना नहीं छोड़ते हैं। एंकर सर आप बात को कहां घुमा रहे है,हमने इसके लिए क्या क्या नहीं किया,आप लोग ही पूरे दोषी हो, लेकिन जो है वो तो है ही, एंकर सर आपका समय सीमा समाप्त….
एंकर चोथे प्रवक्ता से वहीं सवाल
चोथे प्रवक्ता का जबाव– बात ऐसी है कि अगर वो एक घंटे रात को काली नहीं करते तो यह रात आगे बढती ही नहीं तो फिर काली घनी व स्याह भी नहीं होती, इसलिए इसमें हमारा तो कोई दोष ही नहीं हम तो इस रात को खत्म करने में लगे हैं। लेकिन बाकी लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं इस तरह एंकर कहती आज की इस चर्चा का समय यही समाप्त फटाफट अंतिम कामेंट और चारों प्रवक्ता एक साथ शुरू कुछ सुनाई नहीं देता है जैसे कोई आंधी तूफान से अपना बचाव करने के लिए हमेशा की तरह सबकी अपनी अपनी डफली और फिर अपना अपना राग
ओर चर्चा का सार शून्य
इस चर्चा को घर में देख रहे नन्हे से बालक ने घर के बड़े बुजुर्गो से सवाल किया यह लोग इतने पढ़ें लिखेे दिखाई नहीं देता है,या फिर उनको इस प्रश्न का सही उत्तर नहीं मालूम अब कोई उसको कैसे बताये यह सब काबिल तो बहुत है। वह तो अपने धर्म व पार्टी के नेताजी को अपनी बात चमकानी है और टीवी व एंकरों को सिर्फ और सिर्फ अपनी टी आर पी….. बाकी पब्लिक जाएं भाड़ में
– राजस्थान से राजू चारण