आखिर पत्रकारों को क्यों नजरअंदाज करतीं हैं सरकारें

अभी हाल ही में केन्द्र सरकार ने अपना बजट जारी किया उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना बजट जारी किया उसके बाद उत्तराखंड सरकार ने अपना बजट जारी किया किन्तु किसी के भी बजट मे पत्रकारो के लिए कोई घोषणा न होने से पत्रकारों को निराशा ही हाथ लगी ।
जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंड़िया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने कहा कि सरकार के बजट में दिहाड़ी मजदूर तक के लिए योजनाएं है किन्तु पत्रकार के लिए कोई नहीं क्यों ,कारण है कि सरकार को पता ही नहीं कि देश में आखिर हैं कितने पत्रकार? सरकार चाहें भी तो केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों का आंकडा जुटा सकती है और अधिक से अधिक श्रमजीवी पत्रकारों का। क्या सरकार के पास ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े पत्रकारों का आंकडा है डिजिटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों का आंकडा है या स्वतंत्र पत्रकारों का आंकडा है यदि सरकार को पता ही नहीं तो योजनाएं कहां से आयेंगी। आखिर सरकारें पत्रकारों को क्यों नजरअंदाज करती है।
जब आम आदमी के लिए सरकार योजनाएं ला सकती है तो पत्रकारों के लिए क्यों नहीं? इसके लिए जरूरी है कि सरकार मीडिया कर्मियो को सूचीबद्ध करे क्योंकि सूचीबद्ध होने के बाद सरकार को पता चलेगा कि आखिर देश में है कितने पत्रकार ।
पत्रकारों की एक बैठक के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि नेशनल रजिस्टर बनाने की मांग पत्रकार काफी समय से कर रहें है किन्तु पत्रकारों की समस्याओ को सरकारें गंभीरता से नहीं लेती।पत्रकार ही है जो समाज को हर पल की खबर से अवगत कराता है।सरकार की बात को समाज तक और समाज की समस्याओ को सरकार तक पहुंचाने के काम को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अंजाम देता है किन्तु आज सरकारें उसी पत्रकार को नजरअंदाज कर रहीं है।

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