उत्तराखंड – चमाेली बद्रीनाथ धाम आने वाले तीर्थ यात्रियों को इस बार से हिमालयी ऊंट कहे जाने वाले याक की सवारी करने का रोमांचक अवसर मिलेगा। याक की सवारी कर यात्री हिमालय के नैसर्गिक सौंदर्य का दीदार कर सकेंगे। चमोली जिले में याक पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बदरीनाथ में ‘हिमालयी ऊंट’ की सवारी योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। इसके तहत
यात्राकाल में पहले एक याक उपलब्ध कराया जाएगा। योजना कारगर रहने पर बदरीनाथ धाम में याक की संख्या बढ़ाकर इसे स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ा जाएगा। चमोली के पशुपालन विभाग ने इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया है। विभाग की ओर से योजना के संचालन के लिए जोशीमठ क्षेत्र के गणेशनगर निवासी बृजमोहन को याक उपलब्ध कराया गया है। मुख्य पशुपालन अधिकारी डाक्टर लोकेश कुमार का कहना है कि यदि इस वर्ष बदरीनाथ में याक की सवारी योजना सफल रही तो याकों की संख्या बढ़ाकर इसे स्वरोजगार से जोड़ा जाएगा। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान तिब्बत की ओर से याक का एक समूह भारतीय सीमा क्षेत्र में पहुंच गया था। भारतीय सेना ने इन्हें जिला प्रशासन को सौंप दिया था। तब से चमोली जिले का पशुपालन विभाग इन याकों की देखरेख करता है। मौजूदा समय में जिले में 13 याक (5 नर व 8 मादा) हैं, जो शीतकाल में सुरांईथोटा और ग्रीष्मकाल में द्रोणागिरी गांव के उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहते हैं। उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी में 67 याक हैं। याक हिमालयी क्षेत्र में समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर पाया जाने वाला पशु है। 15 से 20 दिन तक याक बर्फ खाकर भी जीवित रह सकता है, इसलिए इसे हिमालय का ऊंट भी कहा जाता है।
-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट