श्री रमेश काल्पनिक नाम एक ऐसा नाम जो दिन रात खेतों में मेहनत करने वाला ब्यक्ति अपने लाडली बेटी की शादी आज के अठारह साल पहले बड़े धूमधाम से किया उसे दो बच्चे भी हो गये 25जून2018को उसके पैरों के तले की जमीन खिसक गयी जब खबर आई आपकी लड़की सुबह चार बजे गायब हो गई।
परेशान पिता थाने गया तो गुमसुदगी की कापी थानेदार द्वारा दे दिया गया जो लड़की के पति के द्वारा दर्ज कराया गया था।
हतास पिता दर दर की ठोकरें खाते रहा तभी उसका मुलाकात जिला कचहरी के वकील तिवारी जी ने हाईकोर्ट के अधिवक्ता मिश्रा जी से मुलाकात करवाई। लाचार पिता ने अपनी आपबीती मिश्रा जी को सुनाई मिश्रा जी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
न्यायालय ने थानेदार से जबाब मांगा।
अब समस्या एक तरफ दामाद की धमकी तो दूसरी तरफ थानेदार की धमकी पिता को अन्दर से तोड़ दिया उम्मीद सिर्फ न्ययालय व वकील साहब से बची ।
याचिका दाखिल हुए तीन महीने बीत गए कोई ख़बर नहीं मिला।
न्ययालय सिर्फ प्रगति रिपोर्ट भी मांगती रही। जब कोर्ट ने सख्ती दिखाई तो पुलिस ने बताया महिला जीवित है पिता के हृदय में अपार खुशी हुई । लेकिन महिला का कोई सही पता नहीं लग रहा था। सायंकाल का समय गेहूं की कटाई चल रही थी तभी फोन बजा फोन उठाते ही अपने लड़की की आवाज़ सुनाई पड़ी मानो खुशियों का संसार आ गया हो। बस इंतजार था दूसरे दिन न्यायालय जाने की ,रात 12 बजेही बस पकड़ कर सुबह 8बजे ही न्ययालय पहुंचा ,मन में एक बिचार आई घर ले चलेंगे समझा ये गे इत्यादि। इसी बीच बकील साहब ने कोर्ट में जाने का पास भी बनवाया कोर्ट में पहुंचे ही आंखें लड़की को तलाश रही थी, कोर्ट में इस पिता के तरह कयी पिता परेशान थे, वह तो सिर्फ अपने बेटी को ढूंढ रहा था।
12बजते ही जज साहब उढ गये मन में हतासा होने लगी ,मन दुखी था तभी वकील साहब ने बताया जज साहब आ रहे हैं, फिर आशा की किरणें दिखाई देने लगी।
इन्तजार के पल भी अजीब से होते समय बिताने का नाम ही नहीं लेते , ऐसे तैसे समय बिताते हुए 3बज गये। जैसे ही 3बजे हमारे वकील साहब के नाम पुकारा गया , मेरी लड़की को पुलिस वाले लेकर आते मन बहुत ही खुश था ,सब गलती माफ करने की विचार आ जा रही थी। तभी न्ययालय ने लड़की से पूछा पति के साथ रहना है। लड़की बोली नहीं। न्यायालय पिता के साथ रहना है,मन यही कह रहा था हां कहेगी तो डाटूगा फिर माफ करके साथ ले जाउंगा।
अफसोस लड़की ने कहा नहीं। पिता के सब सपने धरे के धरे रह गये
ना उम्मीद बचा न आशा सिर्फ अन्धकार ही अन्धकार मर्यादा का भी खयाल नही रखा उसके बच्चे किसको मा कहेगे।
पिता रोने लगा वकील साहब समझाते हुए लाचार पिता को न्यायालय से बाहर ले आये।
क्या ये प्रेम सही जिसमे बच्चो के ममत्व माता पिता का प्यार सबकी बली चढ़ जाये।मेरा समाज कहा जा रहा।
– आशीष कुमार मिश्र एडवोकेट हाईकोर्ट