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भगवान श्रीकृष्ण: हमारी मान्यताएं और उनके जीवन से शिक्षा

इस बार किशन कन्हैया जी कब आयेंगे इसमें मतानुसार विवाद है, एक ओर इस बार जनमाष्टमी 2 सितंबर और 3 सितंबर को है । पहले दिन ब्राह्मण समाज यों कहे तो मंदिरों में मनाई जायेगी तथा दुसरे दिर 3 सितम्बर को वैष्णव सम्प्रदाय के द्वारा आराधना की जायेगी । जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगों के लिए और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों के लिए होती है । इस बार श्रीकृष्णी की 5245वीं जयंती है । भगवान श्रीकृष्णत का जन्म भाद्रपद यानी कि भादव माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। जो लोग जन्माष्टमी का व्रत करते हैं वह इसके एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद, भक्त पूरे दिन उपवास रखकर अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद व्रत कर पारण का संकल्प लेते हैं।
श्रीकृष्ण जन्मा ष्ट मी का सम्पूर्ण भारत वर्ष में विशेष महत्वर है क्योंकि यह हिन्दुत धर्म के विशेष त्यो‍हारों में से एक है। ग्रंथो के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णुज ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था ।देश के सभी भागो में इसे मानाने का तरीका भी अलग अलग है, जहाँ इन विविधताओ में एक बात सामान होती है श्रीकृष्णी जन्माष्टमी का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं का दौर चलता है।
श्रीकृष्णी जी का आवाह्न मन्त्र निम्न प्रकार से है
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्।
स-भूमिं विश्वुतो वृत्वास अत्य्तिष्ठद्यशाङ्गुलम्।।
आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव।।
ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।।
जन्माष्टमी के दिन का अंतिम निर्धारण निशिता काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन के आधार पर किया जाता है। स्मार्त नियमों के अनुसार हिंदू कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है।
वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग उदया तिथि को प्राथमिकता देते हैं। उदया तिथि में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिंदू कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि को ही पड़ता है।

भगवान श्री कृष्णा के जीवन से कुछ महत्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त किया जा सकता है :
माता पिता को अपने जीवन में सम्मानित स्थान देना चाहिए ये बातें कृष्णा के जीवन में झलकता है क्योंकि जन्म देने वाले माता देवकी और पिता वासुदेव जी थे तथापि लालन-पालन यशोदा और नन्द जी ने किया। इन सभी बातो से परे अपने जीवन में देनो माताओ को उचित स्थान दिए। इन सभी के बाबजूद भगवान श्री कृष्णा ने दोनों माता पितो के प्रति अपने कर्तव्य को बखूबी निभाया। इस प्रकार हमें अपने जीवन में माता-पिता को उचित स्थान देना चाहिए।

दोस्ती सीखनी हो तो भगवान श्री कृष्णा के जीवन से सिखा जा सकता है। उन्होंने दोस्ती को सबसे उपर रखा, इनमे ना तो गरीबी दिखने चाहिए, न तो छोटे बड़े दिखनी चाहिए। दोस्तों के लिए कुछ कर गुजरने का जब्बा इन्ही से सीखा जा सकता है। सुदामा और भगवान की दोस्ती को कौन नहीं जनता, शायद ही कोई इससे अपरिचित हो।
प्रेम करना हो तो इनके जीवन से बहुत बातें सीख्री जा सकती है । प्रेम में समर्पण होना चाहिए। वृन्दावन में अनेक गोपी थी जो भगवान से प्रेम करती थी जिसमें से राधा का नाम सबसे उपर आता है। वर्तमान समय में प्रेमियों को श्री कृष्ण के प्यार और प्रेमिकाओं के प्रति सम्मान से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है।
जीवन में अगर संघर्ष हो तो उसे भी जीने का पर्याय बना लेना चाहिए। भगवान के बाल्यकाल से ही उनके जीवन में बाधाएँ आती रही पर उन्होंने सब का सामना बखूबी किया। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में बाधाये आती है उसका सामना करना चाहिए। कर्तव्य पथ पर बढ़ना चाहिए ना की जीवन के संघर्ष हार मन लेना चाहिए।
अपने शिक्षक या गुरुजनों की सदैव आदर करना चाहिए ये बाते भी भगवान के जीवन में देखने को मिलता है।
भगवान श्री कृष्णा ने गीता में अनेक ऐसी बातो को रखा है जिनके जीवन में उतारते ही मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है। ये रिपोर्ट सेवा निवृत शिक्षक अमर नाथ प्रसाद के बात-चीत पर आधारित है।

अजय कुमार प्रसाद, कटिहार, बिहार से

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