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पोर्टल की मार से सहता करदाता

आयकर अधिनियम के अन्तर्गत दी गई व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक वर्ष व्यक्तिगत एवं एच.यू.एफ. के आयकर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि 31 जुलाई निर्धारित की गई है और प्रत्येक करदाता एवं टैक्स प्रोफेशनल्स इसके लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, लेकिन 2012-13 से एक प्रचलन चला, कारण कोई भी हो, कि अंतिम तिथि बढ़ायी जाने लगी। उधर कोरोना के चलते वर्ष 2020-21 10 जनवरी 21 तक एवं 2021-22 में यह अंतिम तिथि को 31 दिसम्बर 21 तक बढ़ा दी गई। यदि अध्ययन करें तो वर्ष इसी प्रकार वर्ष 2012-13 से वर्ष 2021-22 तक (वर्ष 2014-15 को छोड़कर) अंतिम तिथि बढ़ा जाती रही।

पहले आयकर रिटर्न करने की अंतिम तिथि भले ही 31 जुलाई तक होती हो लेकिन आयकरकरदाता अधिक चिंता नहीं करता था बल्कि 31 मार्च तक दाखिल कर दिया करता था, लेकिन इस लेटलतीफी के लिए अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार देर से आयकर का भुगतान करने के लिए ब्याज का भुगतान देय आयकर के साथ करना पड़ता था, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री (स्व0 अरुण जेटली) ने अपने कार्यकाल में प्रस्तुत बजट मंे एक नई धारा-234एफ का समावेश करते हुए यह व्यवस्था लागू एवं प्रभावी कर दी कि 31 जुलाई के बाद 31 दिसम्बर तक यदि आयकर रिटर्न दाखिल किया जाता है तो रुपये 1,000 तत्पश्चात 31 मार्च तक दाखिल करने पर रुपये 5,000 लेटफीस दाखिल करनी होगी।

अब बात करें अंतिम तिथि बढ़ाने की मांग की। जैसे-जैसे अंतिम तिथि 31 जुलाई नजदीक आने लगती तो करदाता और टैक्स प्रोफेशनल्स की मांग तेज होने लगी कि अंतिम तिथि को बढ़ाया जाये। उधर भारत सरकार के राजस्व सचिव तरुण बजाज ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया कि कोई अंतित तिथि नहीं बढ़ेगी। इस समाचार को पढ़ते ही टैक्स प्रोफेशनल्स पैनिक हो गये और सोशल मिडीया में लगातार इस निर्णय को विरोध होने लगा। लेकिन फिर भी टैक्स प्रोफेशनल्स इस प्रयास में लग गये कि सभी आयकर रिटर्न को समय से दाखिल कर दें ताकि उनके क्लाइंट पर रुपये 1000 लेटफीस का भार न पड़े।

अब मैं अपने कुछ विचार व्यक्त करना चाहता हूं। पहला यह कि राजस्व सचिव ने कह दिया कि कोई अंतिम तिथि नहीं बढ़ायी जाएगी, सरकार अपनी बात पर अडिग हो गई। लेकिन दुखःद स्थिति सामने आने लगी कि रिटर्न दाखिल करें तो कैसे करें क्योंकि पोर्टल देवता है कि रिटर्न तो दाखिल करने की आज्ञा ही नहीं दे रहे हैं क्योंकि रिटर्न दाखिल करने से पूर्व की प्रक्रियाओं, जैसे ए.आई.एस. एवं फाॅर्म-26ए.एस. को डाउनलोड करने होते हैं ताकि रिटर्न में आयकर की सही-सही गणना हो सके लेकिन पोर्टन देवता ऐसा नहीं करने दे रहे। ऐसी तमाम स्क्रीनशाॅट सोशल मिडीया पर शेयर किये जाने लगे, जिसमें पोर्टल पर दोनों फाॅर्म डाउनलोड नहीं हो रहे। इस बारे में जब मेरे द्वारा आयकर मुख्यालय एवं केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को ट्वीट किया तो जबाव मिला कि अपना पैन नंबर डी.एम. (डायरेक्ट मैंसेज) में बताये लेकिन मैंने स्पष्ट कहा कि यह समस्या कोई मेरी व्यक्तिगत नहीं है बल्कि आम करदाताओं की है और प्राप्त स्क्रीनशाॅट भी साथ में भेजी। इसके साथ लगभग एक या दो स्क्रीनशाॅट प्रतिदिन भेजते हुए बतौर नमूना भेज रहा हूं।

लेकिन एक बात समझ मंे आने लगी है कि सरकार के साथ उच्च पदों पर बैठे अधिकारी आम करदाताओं एवं टैक्स प्रोफेशनल्स से यह अपेक्षा करते हैं कि वह अपनी जिम्मेदार समय पर और ईमारदारी से पूरा करें लेकिन हमको आपकी परेशानी से कोई सरोकार नहीं। कष्ट तब होता है कि देश का वह करदाता एवं टैक्स प्रोफेशनल्स, जोकि सरकार को राजस्व देने में जी-जान से जुटा है उसको तकलीफ और परेशानी को सुनने को तैयार नहीं है। उच्चाधिकारियों की यह नीति उसी समान है कि अपने अधीनस्थ कार्यालयों के लिए राजस्व वसूली का लक्ष्य निर्धारित कर दिया जाता है लेकिन यह सुनने को तैयार नहीं होते कि उनके अधीनस्थों के पास उचित संसाधन है अथवा नहीं!!

कुछ व्यावहारिक दिक्कतें यह भी हैं कि जब से नया आयकर पोर्टल का निर्माण किया गया तब से कोई न कोई दिक्कतें सामने आ रही है लेकिन उच्चाधिकारी इस ओर ध्यान देने को राजी नहीं है। आप सब जानते ही हैं कि वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही के टी.डी.एस. रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि 15 मई थी, और आईटीआर की अंतिम तिथि 31 जुलाई। यह आवश्यक नहीं कि सभी करदाताओं ने, जिसमें प्रमुखरुप से सरकारी विभाग भी शामिल हैं, कि समय से यानि 15 मई तक टी.डी.एस. रिटर्न दाखिल कर दिया होगा, तब ऐसी परिस्थिति में करदाता का रिटर्न कैसे दाखिल किया जाये??

बजट में की गई नयी व्यवस्था के अनुसार करदाता के प्रत्येक लेन -देन की सूचना ए.आई.एस. में दर्ज हो जाती है, जोकि 5 पेज से कम का नहीं है, ए.आई.एस. के प्रत्येक एंट्री का मिलान करना पड़ रहा है, फिर फाॅर्म-26ए.एस. में दिख रहा टी.डी.एस. के अनुसार जमा होने वाले टैक्स से समायोजित करो तभी आयकर जमा हो पाएगा।

एक बात और भी संज्ञान में लाना चाहता हूं कि देरी से टी.डी.एस. जमा करने पर नियत तिथि के बाद जिम्मेदार अधिकारी को जमा होने वाले टी.डी.एस. के साथ लेटफीस जमा कराने का प्रावधान एक्ट में है और जब जिम्मेदार विभाग समय से टी.डी.एस. और रिटर्न जमा नहीं करवा पाता तो वह रिटर्न लम्बित हो जाता है, तो प्रश्न उठता है कि इस प्रकार की लापरवाही के चलते सम्बन्धित करदाता को आर्थिक भार का एवं दंड का भागीदार बनना पड़ता है तो केवल करदाता ही क्यों जिम्मेदार और क्यों केवल वही भार कार्यवाही का सामना करे? स्पष्ट है कि करदाता कैसे भी अपना रिटर्न दाखिल करें? यदि करें तो पूर्व में काटा गया टी.डी.एस. को भी जमा कराये अन्यथा अर्थदंड एवं अन्य दंडों का भागीदार बने!!

हमारा सरकार से मांग है कि ऐसी स्थिति का भी आंकलन होना चाहिए कि प्रत्येक जनपद में कितने विभागों के टी.डी.एस. के काटा गया समय से जमा नहीं हो पाया है और साथ ही रिटर्न भी, न्याय करदाता को मिलना चाहिए। लेकिन हमारे देश में कभी करदाता को न्याय नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यदि वह करदाता बनना चाहता है तो उसका केवल यह कत्र्तव्य है कि वह केवल ईमानदारी से टैक्स भरे। अतः हमेशा से हमारी यही मांग करते आ रहे हैं कि राजस्व प्राप्त करने के लिए करदाता को प्रताड़ना और अर्थदंड का भागीदार न बनाये बल्कि प्रोत्साहन एवं प्रेरणा की नियत और नीति बनाये।

साथ ही मांग है कि सरकार यदि अधिक राजस्व चाहती है कि तो सबसे पहले कानून नहीं बल्कि पोर्टल को सही करें ताकि अपेक्षा के अनुसार सरकार को समय से राजस्व मिले और रिटर्न भी दाखिल हो सके।
पराग सिंहल

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