नहीं रहा पत्रकारिता अब मिशन

हमारे देश में पत्रकार को समाज का चौथा स्तम्भ माना जाता है क्योंकि पत्रकार समाज की भलाई के लिए काम करता है। कभी-कभी तो सच्चाई उजागर करने के चक्कर मे पत्रकारों को बहुत सी यातनाएं झेलनी पड़ती है। आज से तीन-चार दशक पहले पत्रकारिता करना भी इतना आसान नहीं था क्योंकि पत्रकारिता को एक मिशन माना जाता था। जान जोखिम में डालकर भी पत्रकार अपना कृतव्य निभाता था। दूर-दराज के पत्रकारों को तो अपने समाचार पत्र के लिए डाक द्वारा समाचार भेजे जाते थे। जोकि तीन चार दिन तक तो कार्यालयों में पहुंचते थे उसके बाद संपादक महोदय देखते थे। अगर वह प्रकाशित होने के योग्य होते थे तो प्रकाशित हो जाते थे। जब समाचार प्रकाशित होकर पत्रकार के सामने समाचार पत्र होता था तो उसे बहुत तसल्ली मिलती थी। उस जमाने के पत्रकारों ने बहुत मेहनत की है लेकिन आज जमाना बदल गाया है न तो वह पत्रकार रहे न ही पत्रकारिता। क्योंकि पत्रकारिता को अब मिशन नहीं प्रोफेशन बना दिया है। पत्रकारिता की जगह अब चाटूकारिता ज्यादा होने लगी है। बहरहाल जिन लोगों ने तीन-चार दशक पहले अगर पत्रकारिता की है उनका अनुभव उनका कार्य सराहनीय रहा है। समाज की भलाई के लिए और सच्चाई उजागर करने के लिए पत्रकारों को कभी-कभी सरकार और प्रशासन से भी दो-दो हाथ करने पड़ जाते हैं लेकिन अपने कृतव्य में भी कभी पीछे नहीं हटते थे। कुछ पत्रकार का कीड़ा उनको भी काटता है क्योंकि पुराने दिन जब उनको याद आते हैं तो उन्हें कुछ सीखने को भी मिलता है।
– सुनील चौधरी, पत्रकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *