भारतीय युवा : वैश्विक उम्मीद की एक स्वर्णिम लालिमा

राष्ट्रनिर्माण या राष्ट्रविकास में युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। क्योंकि युवा ही किसी राष्ट्र का भविष्य निर्धारित करते हैं। बात चाहे लोकतंत्र की हो अथवा अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी या चिकित्सा विज्ञान में आमूलचूल परिवर्तन की हो, इन सभी क्षेत्रों में युवाओं की भूमिका निःसंदेह महनीय है आज हमारे समाज में गरीबी, बेरोजगारी, ग्लोबल वार्मिंग और कई प्रकार के प्रदूषण जैसी समस्याएं हैं, जिनका सामना आज दुनिया कर रही है। उनका समाधान भी आज के युवा ही दे सकते हैं। ब्रिटेन में राजनीतिक परिवर्तन इसका ताजा उदाहरण है।
जब हम इस देश के युवाओं की बात करते हैं, तो उस संदर्भ में देश के लिए कुछ कर गुजरने की, बदलाव लाने की, आने वाले समय में देश का बोझ उठाने की, ये सभी विशेषण युवाओं के लिए पूरी तरह उपयुक्त बैठते हैं। युवाओं ने आधुनिक भारत में काफी बदलाव लाया है। यथामति और गति के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने की सकारात्मक जिम्मेदारी भी यही युवा अपने कन्धों पर उठाने हेतु प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं।
युवा किसी भी देश में आबादी का सबसे गतिशील और महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि जिन विकासशील देशों में युवाओं की अत्यधिक जनसंख्या और सहभागिता है, उस देश के सभी राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में समृद्धि देखी जा सकती है, किन्तु उसके लिए उस देश के द्वारा युवाओं की शिक्षा व स्वास्थ्य में निवेश, उनके अधिकारों की रक्षा व विकास अवश्यम्भावी है, क्योंकि युवा समस्याओं का समाधान करने वाले होते हैं और समूचे राष्ट्र पर सकारात्मक प्रभाव फैलाते हैं।
ध्यातव्य है कि चन्द्रमा पर मानव मिशन में 80% से अधिक युवाओं की भागीदारी थी, जिन्होंने उस मिशन की योजना बनाने और उसका सफल कार्यान्वयन करने में सलाहकार की भूमिका निभाई थी।
हाल ही में, वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के नवीनतम अनुमानों के अनुसार भारत के 1.417 बिलियन लोगों ने चीन की जनसंख्या को पार कर लिया है। यह समाचार चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स की घोषणा के बाद आया है।
भारत की विशाल आबादी के पीछे सबसे बड़ा कारक यहाँ के युवा हैं। लगभग 650 मिलियन भारतीय, अर्थात् देश की लगभग आधी आबादी, 25 वर्ष से कम आयु की है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत 2065 तक अपनी आबादी के शिखर पर नहीं पहुंचेगा, जिसका अर्थ है कि भले ही युवा जनसांख्यिकीय प्रति जोड़े केवल एक या दो बच्चे पैदा करता है, लेकिन आबादी का आकार स्थिर होने से पहले समय के साथ बढ़ता रहेगा।
भारत अपनी उपलब्धि और वैश्विक सामाजिक-आर्थिक एजेंडे में अपने बढ़ते प्रभाव से सभी को चकित कर रहा है। पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में स्वयं को स्थान देना हो या पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्थाओं की ओर बढ़ना हो, G-20 का नेतृत्व संभालना हो, भारत की भूमिका निश्चित रूप से विश्व स्तर पर अधिक दिखाई देती है। दुनिया ने देखा है कि एक नया भारत कैसे विकसित, वितरित और प्रभावी ढंग से समाहित हुआ है। वैश्विक संदर्भ में भारत की विश्वगुरु की भूमिका स्पष्ट रूप से देदीप्यमान है और यह संदेश “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” के माध्यम से सर्वत्र दिया भी जा रहा है। सम्प्रति जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत ने वैश्विक कुटुम्ब की भावना और उस कुटुम्ब के रक्षण का चिन्तन सकल विश्व को दिया है।
भारत को अपनी सर्वाधिक युवा शिक्षित जनसांख्यिकी का निश्चित ही बड़ा लाभ होने वाला है, क्योंकि ऐसे परिदृश्य में, भारत विभिन्न श्रमगहन क्षेत्र, जैसे – आईटी क्षेत्र, स्वास्थ्य, सेवा, फार्मास्यूटिकल्स, उन्नत कृषि आदि क्षेत्रों में विविध सेवाओं को देते हुए निर्यातक रूप में भी उभरकर सामने आया है। आज रक्षा क्षेत्र का उदाहरण हम देख सकते हैं।
भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश अवसर दुनिया में सबसे लंबा है, जो 2005 से 2055 तक 5 दशकों तक सुलभ है। पैटर्न और जनसांख्यिकी में बदलाव के कारण, भारत को दुनिया की सबसे बड़ी उपभोक्ता अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरने की उम्मीद है। युवा, कामकाजी आबादी में वृद्धि आर्थिक विकास, सामाजिक गतिशीलता और यहां तक कि अधिक समावेशी और विविध सांस्कृतिक महत्त्व के संदर्भ में भारत के भविष्य के लिए कई अनूठी और दिलचस्प संभावनाएं प्रस्तुत करती है।
विश्व के निवेशक पहले से ही भारत को अपने कौशल, श्रम व ईमानदारी के दम पर एक निवेश केंद्र के रूप में मान रहे हैं और “मेक इन इंडिया” जैसी पहल भारत में इस संदर्भ में विनिर्माण निवेश को और प्रोत्साहित करती है। अनेक वैश्विक ब्रांड इस देश में एक श्रम पूल और एक प्रमुख बाजार, दोनों के लाभ देखते हैं और इसी उद्देश्य से उन्होंने भारत में अपने कारखाने स्थापित किए हैं। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे सफल कार्यक्रम ने वैश्विक संदर्भ में भारत को एक आयातक राष्ट्र की जगह निर्यातक राष्ट्र होने का तमगा प्रदान किया है।
इनके अतिरिक्त, भारत द्वारा एक महान् क्रांति की शुरुआत की जा रही है, जिसका केन्द्रबिन्दु जीवाश्म आधारित कच्चे तेल को हाइड्रोजन में परिवर्तन की क्षमता वाले वैकल्पिक ईंधन के रूप में हरित हाइड्रोजन मिशन है। हरित हाइड्रोजन मिशन और इसके बाद के प्रयासों ने भारत को विश्व हरित ईंधन दिग्गज अर्थात् भारत को ग्रीन एनर्जी सेक्टर में एक नवोदित नेतृत्व का संकेत दिया है। यह संभव है कि भावी दशकों में भारत वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अनेक देशों को ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यातक राष्ट्र होगा।
ध्यातव्य है कि विश्व में प्रतिष्ठित फॉर्च्यून 500 कंपनियों के अनेक सीईओ भारतीय प्रवासी हैं। वर्तमान में तो ब्रिटेन और आयरलैंड के प्रधानमंत्री व अनेक महत्त्वपूर्ण वैश्विक नेतृत्व भारतीय मूल का है।
सपेरों के देश से कंप्यूटर के माउस से संसार को प्रौद्योगिकी क्रांति के माध्यम से जनजागरण व उन्नत प्रौद्योगिकी को लोककल्याणकारी नीतियों में समन्वित करने वालों में भारतीय अपना डंका बजा रहे हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि संप्रति भारत सर्वाधिक स्टार्ट-अप के मामले में फिलहाल दुनिया में तीसरे स्थान पर है। जुलाई 2022 तक, भारत 338.50 बिलियन डॉलर के कुल मूल्यांकन के साथ 105 यूनिकॉर्न का घर था। यूनिकॉर्न वे स्टार्ट-अप हैं, जिनका मूल्य $1 बिलियन से अधिक है। इससे ज्ञात होता है कि भारत किस तरह से आर्थिक रूप से सकारात्मक दिशा में गतिशील है। स्टार्ट-अप, ई-कॉमर्स, सिनेमा, संगीत, नृत्य, वास्तुकला, स्थापत्यकला, वैज्ञानिक नवोन्मेषिता आदि से संबंधित परिकलित जोखिम युवाओं में उद्यमशीलता की भावना को बढ़ा रहे हैं। साधारण और कभी-कभी असाधारण आय का एक स्रोत खोजने का जोखिम देश की अर्थव्यवस्था को चलाने में बहुत मददगार साबित हो रहा है।

लेखक – आदर्श कुमार झा (रूसी भाषा अध्ययन केन्द्र, जेएनयू, दिल्ली)

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