Breaking News

शिवलिंग पर जल एवं दूध चढ़ाना: आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित

भारत की ज़्यादातर परम्पराओं और प्रथाओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य मौज़ूद है, जिस की वजह से ये परम्पराएँ एवं प्रथाएँ सदियों से चली आ रहीं हैं। शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भी ऐसे ही एक वैज्ञानिक कारण से जुड़ा हुआ है ख़ासतौर पर सावन (श्रावण) के महीने में मौसम बदलने के कारण बहुत सी बीमारियाँ होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, क्यों कि इस मौसम में वात-पित्त और कफ़ के सब से ज़्यादा असंतुलित होने का डर रहता है, ऐसे में दूध का सेवन करने से आप मौसमी और संक्रामक बीमारियों की चपेट में जल्दी आ सकते हैं।

सावन में दूध का कम से कम सेवन वात-पित्त और कफ़ की समस्या से बचने का सब से आसान उपाय है इस लिए पुराने समय में लोग सावन के महीने में दूध शिवलिंग पर चढ़ा देते थे।

साथ ही सावन के मौसम में बारिश के कारण जगह-जगह कई तरह की जंगली एवं ज़हरीली घास-फूस भी उग आती है, जिस का सेवन मवेशी कर लेते हैं जो उन के दूध को ज़हरीला भी बना सकती है। ऐसे में इस मौसम में दूध के इस अवगुण को भी हरने के लिए एक बार फिर भोलेनाथ, शिवलिंग के रूप में समाधान बन कर सामने आते हैं और दूध को शिवलिंग पर अर्पित कर के आम लोग मौसम की कई बीमारियों के साथ-साथ दूध के कई अवगुणों से ग्रसित होने से बच पाते हैं।

इन्हीं कारणों से सदियों से शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की प्रथा चली आ रही है। सतयुग में धरती पर जीवमात्र की रक्षा के लिए भगवान् शिव ने विषपान किया था, शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा के रूप में, दूध के विष बन जाने की सभी संभावनाओं पर विराम लगाते हुए आज भी भगवान् शिव मनुष्यों की सहायता कर रहे हैं।

इस लिए शिवलिंग पर जल एवं दूध चढ़ाना केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित है।

– साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *