हमारे देश में बहुत ही दुखःद स्थिति है कि देश की आजादी के प्रारम्भ से देश का व्यापारी हमेशा ‘संदेह के घेरे में’ में रहता आ रहा है। क्योंकि देश के व्यापारी, जो राजस्व के रुप में देश को टैक्स का संग्रह करते हुए सरकारी कोष में जमा कराने में सहयोग दे रहा है परन्तु उसके भाग्य में केवल Punishment & Harassment ही आता है लेकिन कभी भी उसको कोई Prootion and Protection नहीं मिलता। हमको ध्यान आ है पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह जी का वह कथन जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार ‘अल्पयंख्यकों’ का है लेकिन इस सरकार में इस कथन में परिवर्तन आ गया है और अब यह कथन हो गया है कि ‘देश के संसाधनों के साथ सभी लाभों एवं राहतों पर अधिकार केवल उनका है जो कि किसी भी प्रकार का टैक्स का भुगतान नहीं कर रहे हैं बल्कि राहत और मुआवजा के लाभ प्राप्त कर रहे हैं।’
क्या कभी देश के नीति निर्माताओं ने इस तथ्य पर विचार किया है कि जो देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा हो, और उस देश की जनसंख्या 136 करोड़ का पार करने के लिए आतुर हो और वह देश विश्व की 5वीं बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के ललायित हो, लेकिन उस देश में आयकर का भुगतान करने वाले कुछ लाखों में हैं, और अप्रत्यक्ष प्रणाली जीएसटी में मात्र 1.50 करोड़ पंजीकृत व्यापारी हैं। एक बात और कि कभी इन नीति निर्माताओं ने विचार किया है कि देश के साधारण व्यक्ति हमेशा से टैक्स विभागांे में जाने से क्यों बचता है। आम आदमी की ऐसी मानसिकता क्यों बनती जा रही है कि ‘शांतिपूर्ण जीदंगी जीनी है तो सभी टैक्स विभागों से दूर ही रहो!!’
जैसाकि मैंने ऊपर लिखा है कि व्यापारी करदाता केवल Punishment & Harassment का ही भागीदार है लेकिन कभी भी उसको कोई Promotion and Protection नहीं, के विषय में कहना चाहता हूं कि जब देश में जीएसटी प्रणाली लागू हुई थी तब देश करदाता व्यापारी बहुत ही उत्साहित था लेकिन धीरे-धीरे समय बीता विरोध के स्वर उठने लगे क्योंकि जीएसटी कर प्रणाली में केवल Punishment & Harassment शुरु हो गया कहीं भी Promotion and Protrection की व्यवस्था नहीं दिखी। जीएसटी एक्ट का जो निर्माण किया गया उस एक्ट में धारा-165 एवं धारा-166 को चुपके से जोड़ दिया गया। इन दोनों धाराओं में जीएसटी परिषद का यह अधिकार प्रदान करते हुए जीएसटी परिषद को इतना मजबूत बना दिया गया कि राजस्वहित को दिखाकर कोई भी दिया Punishment & Harassment प्रावधानों को जोड़ दिया गया। क्योंकि किसी भी स्तर की संस्था को (विधायिका को छोड़कर) किसी भी अधिनियम में संशोधन नहीं कर सकती अतः सरकार ने इन दोनों धाराओं में यह अधिकार प्रदान कर दिया कि माल एवं सेवाकर नियमावली में चाहे जैसे निर्णय लेकर केन्द्र सरकार को संस्तुति कर दो लागू हो जाएगा। इन निर्णयों के एक नहीं बल्कि अनेक उदाहरण मिल सकते हैं।
इन्हीं दोनों धाराओं के अन्तर्गत प्राप्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए जूते एवं गारमेंटस् पर जीएसटी टैक्स 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया। सोशल मीडिया में देखने और पढ़ने को मिल रहा है कि इस वृ(ि के कारण व्यापारियों में भारी रोष है। लेकिन इन व्यापारी नेताओं ने इस वृ(ि के विरोध में कोई ठोस कार्य योजना बनाई?
Punishment & Harassment प्रावधान इतने अधिक जोड़ दिये गये हैं कि जीएसटी के अन्तर्गत पंजीकृत डीलर जैब से टैक्स जमा नहीं करवा रहा है बल्कि सरकार के नाम पर उपभोक्ताओं से टैक्स वसूल करते हुए सरकारी कोष में जमा करवा रहा है, लेकिन जीएसटी परिषद ने नया नियम 86ए बनादिया। यदि यह कहा जाये कि इस नये नियम को बनाकर परिषद ने जीएसटी प्रावधान की मूल भावना पंजीकृत करदाता को प्राप्त होने वाली ‘आईटीसी को ब्लाॅक’ करने का अधिकार प्राप्त कर लिया।
ब्लाॅक कर दिया वहां तक तो ठीक है लेकिन उस आईटीसी को ब्लाॅक करने के अतिरिक्त पंजीकृत करदाता पेनल्टी, ब्याज और लेटफीस का भागीदार बनता जा रहा है। और दंड का अर्थदंड का भागीदार भी बना रहे हैं।
मैंने अपनी Youtube जो कि ांkarjankari के नाम से देखी जा सकती है हमेशा इस बात को उठाया है कि अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में पंजीकृत करदाता डीलर उपभोक्ता से सरकार के लिए टैक्स वसूल कर जमा कराता है, जिसके लिए सरकार कोई मेहनताना, इनसेन्टिव या कमीशन आदि का तो लाभ दे नहीं रही है बल्कि आदि Punishment & Harassment करने में चूक भी नहीं रही है।
बात व्यापारिक संगठनों से और व्यापारी नेताओं से अपील
मैं अनेक व्यापारिक संगठनों से जुड़ा हुआ हूं अनेक बैठकों में भी भाग लिया। व्यापार की समस्याओं तो बहुत सी रखी जाती है फिर नारा लगता है ‘व्यापारी एकता जिन्दावाद’ लेकिन बैठक समाप्त होने के बाद परिणाम के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता। अभी आपने देखा कि केन्द्र सरकार द्वारा गत वर्ष लागू 3 कृषि बिल के विरोध में पंजाब एवं हरियाणा के किसान व आढ़तीयों द्वारा लगभग एक साल दिल्ली के रास्ता रोक कर पड़े रहे पािणाम यह आया कि 19 नवम्बर को प्रधानमंत्री द्वारा तीनों कृषि बिल वापस लेने की घोषणा कर दी। मैं यह नहीं कह रहा कि वह बिल गलत थे अथवा सही थे लेकिन इतना अवश्य की सकता हूं कि मुझे व्यक्तिगततौर पर बहुत नुकसान हुआ। मैं यह आशा नहीं करता है कि देशभर का व्यापारी रास्ता रोक कर सड़कों को जाम कर दें लेकिन इतना अवश्य ही अपील करना चाहता हूं कि देश के व्यापारी को सरकार के इन प्रकार के निर्णयों को विरोध शालीनता से करना पड़ेगा। इसके 5 स्वरुप हो सकते हैं-
- टैक्स वृ(ि के विरोध में कम से कम 5 लाख पोस्ट कार्ड प्रधानमंत्री को भेज कर विरोध व्यक्त करना चाहिए। कुछ व्यापारी साथियों ने स्वीकार अवश्य किया लेकिन फिर चुप्पी छा गई।
2.यदि आप वास्तव जीएसटी के अविवेकपूर्ण निर्णयों का और प्रावधानों का विरोध करना चाहते हैं तो सड़क न उतरे लेकिन मात्र दो दिन के लिए आडटवर्ड बिल एवं ई-वे बिल जनरेट करना बंद करते हुए विरोध व्यक्त करें
3.माह की 19 व 20 तारीख को जमा होने वाला टैक्स जमा न कराये, भले ही दो दिन बाद ब्याज सहित टैक्स जमा कराना पड़े।
4.देश के सभी ट्रांसपोर्ट कम्पनियां यदि पेट्रोलियम पदार्थो जैसे डीजल को जीएसटी में शामिल कराने के लिए दवाब बनाने के लिए 19 व 20 तारीख को ई-वे बिल जनरेट न करें, साथ ही ट्रकों का चक्का जाम भी कर सकते हैं।
5.इसी प्रकार पूरे देश के अधिवक्ता संगठन भी 19 व 20 तारीख को कोई रिटर्न दाखिल न करें। क्योंकि जितना शोषण और तनाव अधिवक्ताओं को मिल रहा है, वह कभी नहीं मिला।
आप शालीनता से विरोध की नीति अपनाकर तो देखें सरकार आपको वार्ता के लिए बुलाती भी और आपकी समस्याओं का निदान करने में गंभीर हो जाएगी।
इतना अवश्य है कि विरोध तो करना होगा केवल सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि ठोस नीति बनाकर करना होगा। अभी नहीं तो बहुत जल्दी यह भी विचार तो करना ही पड़ेगा।
–पराग सिंहल