सबसे ज्यादा प्रदूषण आपके आस-पास गाहे-बगाहे जरूर देखा करें : राजू चारण

*आंखें मूंदकर नहीं समझने वाले भाइयों को सात – सलाम

बाड़मेर /राजस्थान – बाड़मेर जिला आजकल दुबई बनने के चक्कर में प्रदूषण फैलाने के नाम पर विश्व विख्यात जरूर हो गया है कारण हमारे से ज्यादा आप सभी को मालूम होगा,नागणा क्रूड ऑयल तेल प्रोजेक्ट, पचपदरा रिफाइनरी प्रोजेक्ट, गुड़ामालानी धोरीमन्ना सांचौर बेल्ट, भादरेश बिजली संयंत्र, कपूरडी ओर सोनडी लिग्नाइट समूह,भारत माला प्रोजेक्ट में टांग खिंचाई करने वाले अधिकारियों और स्थानीय ओर पंखों ओर सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाकर सुनहरे भविष्य के सपने दिखाकर लूटने वाले के नाम पर लोगों को भ्रमित करने वाले ओर अन्य औद्योगिक विकास कार्यों को करने वाली पर्यावरण संरक्षण करने के नाम पर गला जरूर घोट रहीं हैं। जहां जहां पर आपकी नजर जाती है वहां पर आप भी जबरदस्ती से आंख मूंदकर वापस भागने लगते हैं। हमारे खबरनवीसी करने वाले महानुभावों को छोटा मोटा सा चमकदार पैकिंग युक्त गिफ्ट, अखबारों और चैनलों के लिए हल्का फुल्का तारीफ़ शुदा विज्ञापन, दान दक्षिणा युक्त लिफाफा या फिर खोटा सिक्का बराबर समय-समय पर तीज त्यौहार आने पर त्यौहारों से पहले ही मिल जाता है ताकि सरकारी आंकड़ों ओर कागजों में प्रदुषण मुक्त बाड़मेर जिला जरूर होना चाहिए‌।

आमजन की खबरें राज्य सरकार ओर केन्द्र सरकार के पास नहीं पहुंचेगी बाकी सब विकास चाहने वाले छुटभैय्ए नेताओं और झंडा ऊंचा उठाने वाले ठेकेदारों और नजदीकी इलाकों में बसे हुए मजदूरों की आवाज उठाने वाले महानुभावों को छोटा मोटा सा कामकाज पकड़ाकर जैसे नसबंदी कराने वाले शिविर लगाकर नसबंदी की जाती है वैसा ही प्रदूषण की भी नसबंदी आपके सामने होगा।

आपने आजकल नहीं समझने की नई परंपरा क़ायम कर दी है। पटाखों से होने वाले प्रदूषण के ख़िलाफ़ जिन-जिन लोगों ने समझाने की कोशिश की है, उन-उन लोगों से नहीं समझ कर आपने श्रेष्ठ कार्य किया है। आपके ही नहीं समझने का सुंदर परिणाम है कि बाहर कुछ भी सुंदर नहीं दिख रहा है। चारों ओर धुआं ही धुआँ है और उसके आगे भी धुआँ है। हवा साँस लेने लायक़ नहीं है। आपके आस-पास की हवाएं भी ज़हर हो गई है। क्या दिवाली से पहले हवा में ज़हर नहीं था ? बिल्कुल था। आपके दिमाग़ में भी ज़हर भरा हुआ था। जब आपने दिमाग़ का नहीं सोचा तो फेफड़े के बारे में क्यों सोचना।

जिन लोगों ने अपने घरों की साफ़ सफ़ाई की, सजाया कि घर दूर से ही रौशन दिखेगा, मेहमान आएँगे तो क़रीब से भी सुंदर दिखेगा लेकिन आपने धुआँ धुआँ कर नहीं समझने का जो परिचय दिया है वो बहुत ही शानदार है। पटाखे नहीं छोड़ने की बात हिन्दू परंपरा पर हमला है। जब आपने हिन्दू होने के नाम पर नेता की किसी नाकामी को नहीं समझा, तो पटाखों से हानि को भी नहीं समझ कर राष्ट्रीय निरंतरता का परिचय दिया है। बल्कि निरतंरता का राष्ट्रीयकरण किया है। इससे पता चलता है कि एक तरह से नहीं समझने वाले लोगों की भरमार हो गई है। हिन्दू राष्ट्र में 110 रुपया लीटर पेट्रोल हो सकता है, तो फिर बाड़मेर जिले में प्रदूषण क्यों नहीं हो सकता ?

जिन लोगों ने भी समझाया है उन्हें बक़रीद के समय नालियों की तस्वीरें खींच कर बताना कि अब प्रदूषण नहीं हो रहा है ? इस वक्त ही प्रदूषण हो रहा है जो सभी लोग हुआं हुआं कर रहे हैं? जिन स्कूलों में पटाखों के न छोड़ने की सीख दी जाती है उन्हें बंद कराने की ज़रूरत है। ऐसे तो प्रदूषण ही ख़त्म हो जाएगा। आपने दिवाली के नाम पर हर हाल में प्रदूषण को बचाने का काम किया है। आगे भी कीजिए। कोई कुछ भी कहें जानबूझकर नहीं समझा कीजिए।

पर्यावरण संकट पर हमेशा सम्मेलन होते रहेंगे। वहाँ मंचों पर बड़ी बड़ी बातें कही जाती रहेंगी। मन की बात में तरह तरह के नैतिक संदेश देने वाले प्रधानमंत्री ने पटाखे न छोड़ने का कोई नैतिक संदेश न देकर बहुत ही शानदार काम किया। उन्हें पता है इतनी मुश्किल से नहीं समझने वाले तैयार हुए हैं, कहीं समझ गए तो पर्यावरण से ज़्यादा राजनीति का हमारे नुक़सान हो जाएगा। नहीं समझने वाला यह जन आंदोलन कमज़ोर पड़ जाएगा। इसलिए मैंने भी अपने मित्रों को पटाखे न छोड़ने की कोई अपील नहीं की।

मुझे उम्मीद है कि नहीं समझने वाले आप सभी लोग मिलकर एक प्रदूषणमुक्त पर्व जरूर कागजों में मनाएँगे। उस दिन केवल हवा ही नहीं पानी भी प्रदूषित कीजिए ताकि बाड़मेर जिले में जनता का जीना मुश्किल हो जाए। नहीं समझने के राष्ट्रीय आंदोलन का एक मक़सद तो यह भी है कि आमजन का जीना आसान न हो। जिनके फेफड़े ख़राब होते हैं और होते रहें।

मैं तो काफ़ी ख़ुश हूँ कि दिवाली के अगले और तीसरे दिन भी पटाखे छूटने की आवाज़ें लगातार आ रही है। आप नहीं समझने वाले नहीं होते तो प्रदूषण कम जरूर हो जाता और यह अच्छा नहीं होता। जानबूझकर
नहीं समझने वालों के दिमाग़ और फेफड़े नहीं होते वे इसके बिना भी होते हैं। वे आपके आस-पास फैलने वालें विनाशकारी प्रदूषण को ही पर्वों में ही बदल देते हैं

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