बाड़मेर/राजस्थान- मौजूदा हालात बेहद गंभीर बनें हुए हैं देशभर में कोरोना काल की दूसरी लहर के चलते जहां आम नागरिकों की मौत से उनके रिश्तेदारों से पत्रकार सबसे ज्यादा आहत हुए हैं, वहीं खुद मौजूदा सरकार से लेकर आम ग्रामीणों की खबरों के लिए जी जान देकर अपनी कर्तव्य का निर्वहन करने वाले पत्रकारों के आए दिन शहादत पर शोक संवेदनाओं व श्रद्धांजलियां से हमारे हाथ कांपने लगे हैं और इन हादसों से आहत व माहौल गमगीन हैं । लोग अब सोचने को मजबूर हैं कि आखिर यह कौन सा चौथा स्तम्भ का मजबूत पिलर हैं। जिसमें ना कोई सीमेंट, कंक्रीट है और ना ही कोई मजबूत सरिया लगा हुआ है।
या विपत्तियां आने पर भरभरा कर धाराशाही हो रहा है। कौन से इंजीनियरों द्वारा इस चौथे स्तम्भ का निर्माण किया गया था। बात करें यदि तीन और स्तम्भ की तो उसमें सीमेंट,कंक्रीट व सरिया का मजबूत स्तम्भ तो देखने को मिलता है,और आज भी मजबूत पिलर के रूप में दिखाई दे रही है। परन्तु विडंबना है कि आज चौथे स्तम्भ के पिलर में हर जगह पर खतरा हीं खतरा नजर आ रहा है। आखिर इसका जिम्मेवार कौन खुद पत्रकार है या फिर कोई और ?
इधर बात करें पत्रकारों की तो पत्रकारों में अलग अलग गुटबाजी बनाकर व समूहों में बिखरे हुए जहां तहां पर नजर आ रहे हैं।वहीं कुछ पत्रकारों के संगठन आज़ भी मौजूद हैं जो दिनरात पत्रकार हितों के लिए सरकार से लेकर अन्य पदाधिकारियों तक पत्रकार हित के लिए मांग पर मांग कर रहे हैं ।यहां तक कभी कभार सड़को पर भी आ गये थे या इस कोरोना हड़बड़ी में बाबा महाकाल के गाल में समाए पत्रकार साथियों के बच्चों व उनके परिजनों के लिए राज्य सरकारों से मुआवजा व खुद को कोरोना वारियर्स में शामिल तथा पचास-साठ लाख रुपए का बीमा योजना में शामिल करने की मांग पर जी जान लगाए हुए हैं।
लेकिन कुछ और असंगठित पत्रकार संगठन है जो इस पर आज तक चुप्पी साधे बैठा है। वहीं छोटे पत्रकारों को छोड़कर बड़े बड़े पत्रकारों को इस पर कोई सुध नहीं है।ऐसा लगता है कि वे सारे लोग आज-कल प्रणायाम ओर आसनों पर चुप्पी साधे बैठे हैं। जिस पत्रकारिता करने वाले महानुभावों की लेखनी व उनके साहस भरा काम से लोग जहां लोहा मानते थे वहीं बड़े बड़े माईल स्टोन आज-कल धराशाई हो गए हैं ।वहीं आज पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के साथ खड़ा होने से अपने पांव पीछे खींच लिए है।
दुसरी ओर चौथे स्तम्भ के बिना बाकी के तीनों स्तम्भ अधूरा सा लगता है कहते हुए थकते नहीं हैं लोग। लेकिन आज कोरोना के महाकाल में पत्रकार साथियों की शहादत पर सरकार से लेकर उन नेताओं तक श्रद्धांजलि व शोक संवेदनाओं को जताने से जरूर कतरा रहे हैं। कहाँ पर गयी मानवता और कहाँ गया आपका वो मजबूत चौथा स्तम्भ । और तो और जिस अखबार के लिए कोरोना के बढ़ते कहर होने के बावजूद भी पत्रकार अपनी जान की शहादत दे दिया है वो आज अपने हीं पत्रकार के शहादत पर अपने अखबारों में शोक संदेश की जगह तक नहीं दिला पाया और ना ही इस तरह की खबरें अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जा रहा है।
आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा पूछता है पत्रकारिता करने वाले उन लोगों से जो आप ही की तरह बेदाग पत्रकारिता इस जहां में करते थे। कोराना भड़भड़ी के दौरान वो तो इस दुनिया से जरूर चले गए लेकिन बाकी रहा तो सिर्फ और सिर्फ ख़बरनवीस शहीदों के नन्हे मुन्ने बच्चे ओर उनका बिलखता हुआ परिवार।
– राजस्थान से राजू चारण