उत्तराखंड – भारत के सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड की सरकार परेशान है कि राज्य गठन के 17 सालों में कुल 16,793 गांवों में से 3 हजार गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तराखंड के पहाड़ों से बढ़ते पलायन को चिंताजनक करार दिया है। उत्तराखंड के गठन के 17 सालों में ही प्रदेश के कुल 16,793 गांवों में से 3 हजार गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। 2.5लाख से ज्यादा घरों में ताले लटके हुए हैं। 2013 में प्रदेश में आयी विनाशकारी प्राकृतिक आपदा के बाद यहां पलायन की गति में तेजी आयी। अल्मोड़ा जिले में 36,401, पौड़ी 35,654, टिहरी में 33,689 व पिथौरागढ़ में 22,936 घरों में ताले लटके हुए हैं। ये घर धीरे धीरे खंडहरों में तब्दील हो रहे हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में हो रही इस दुर्दशा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार और उनकी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। आयोग ने सरकारों पर यहां पर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मनुष्य की मूलभूत सेवाओं को उपलब्ध न कराने के लिए फटकार लगायी। सरकार को फटकार लगाते हुए आयोग ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ और विशेषज्ञ चिकित्सकों की जबर्दस्त कमी है। इससे आम लोगों को बुनियादी सुविधाएं और उचित इलाज तक नहीं मिल रहा है। उन्होंने इस दिशा में आवश्यक सुधार करने के निर्देश दिए। इसके अलावा उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में भी कोई प्रगति न होने पर भी निराशा व्यक्त की। देहरादून में संपन्न राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 2 दिवसीय समारोह के समापन अवसर पर आयोग के सदस्य और न्यायाधीश पी. सी. घोष, डी. मुरुगेशन और ज्योति कालरा ने अफसरों के साथ बैठक भी की। आयोग के सदस्यों ने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं न होने के कारण लोग यहां से पलायन करने के लिए मजबूर हुए। प्रदेश की वर्तमान सरकार ने इस पलायन के मूल राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय एक पलायन आयोग बना कर जख्मों को और कुदेरने का कृत्य किया जा रहा है।
साभार: डीपीएस रावत
गढ़वाल मंडल से
इंद्रजीत सिंह असवाल