बाड़मेर – सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारतवर्ष में पिछले महीनों वी. वी.आई.पी. लोगों के तारामंडल के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के पुनॢनर्माण का भूमिपूजन किया गया। इस ऐतिहासिक घटना ने भारतवर्ष के बहुल समुदाय के सबसे लम्बे समय से चले आ रहे सपने को एक दीर्घ कानूनी लड़ाई के बाद साकार किया है जोकि सुप्रीमकोर्ट के निर्णय द्वारा समाप्त हुआ और विवादास्पद भूमि को हिंदुओं को सौंपा गया। अयोध्या के निकट धामीपुर स्थल को मस्जिद के निर्माण के लिए दिया गया।
बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद में सबसे ज्यादा जाने गए वादियों में से एक हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी भी पांच अगस्त को भूमि पूजन के दौरान उपस्थित थे। मुझे इस बात का दुख है कि भाजपा के दोनों दिग्गज लाल कृष्ण अडवानी तथा मुरली मनोहर जोशी अनुपस्थित रहे थे। आज के भौतिकवादी विश्व में श्रीराम के आदर्श एक वैश्विक अपील रखते हैं। रामराज्य का सपना हिंदू मानसिकता में जगह बनाए बैठा है। इसकी शुरूआत पौराणिक कथा से संबंधित है जोकि इतिहास का सबसे सुनहरी पल था। इस सपने को सहारा देने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसका नवीकरण किया जो कि हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ रामायण में समाविष्ट है।
रामायण की पौराणिक कथा एक आदर्श राजा राम के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने ऊंचे आदर्शों के लिए जिए और धर्म के कानून से अपने राज्य के साम्राज्य को चलाया। इस राम राज्य में निष्पक्ष व्यवहार, उदारतावाद, समानता तथा धर्म शामिल थे। श्रीराम सभी गुणों का भंडार गृह हैं जो मानव जाति को उत्कृष्ट तथा दिव्य बनाते हैं।
त्रेता युग में अयोध्या में राम राज्य के दौरान कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो राज्य में राजा द्वारा नाखुश हो। प्रत्येक व्यक्ति अपने श्रम का फल भोग रहा था। न्याय किया जाता था। आज के वर्तमान समय में राम एक ऊंचे आदर्शों वाले, उदारवादी तथा दूसरों के लिए मिसाल कायम करने वाले व्यक्ति हो सकते हैं। वह अपने लोगों से खुले तौर पर बातचीत करते थे। उनके दुख-दर्द सुनते और उनका उपाय ढूंढते थे। हालांकि आज भी राम हमारे लोगों के दिल में बसते हैं। लोग उनकी तरफ इस तरह से देखते हैं कि वह उनका उत्थान करेंगे जो राजनीति के घेरे में घिरे हुए हैं।
भारतीय नेता लोगों को यह भरोसा दिलाते आए हैं कि वह रामराज्य के पुराने दिन फिर से लौटा पाएंगे। ऐसे नेताओं ने वास्तव में हिंदू मानसिकता को सामाजिक,राजनीतिक तथा धार्मिक तौर पर लूटा है। इसमें एक ही अपवाद महात्मा गांधी हैं। जब भारत साम्राज्यवाद के बंधन से मुक्त हुआ तो बापू ने भी राम राज्य को पाने की जरूरत पर बल दिया। राम राज्य का लक्ष्य पाने के लिए महात्मा गांधी ने सरपरस्ती की विचारधारा की व्याख्या की जिसके तहत सामाजिक लक्ष्यों को पाने के लिए पूंजीवादी ढांचे का इस्तेमाल किया जाना था। महात्मा गांधी की सरपरस्ती प्रणाली में वह सभी चीजें शामिल थीं जो गरीबी झेल रहे एक आम आदमी के कल्याण के लिए काफी फायदेमंद थीं।
महात्मा गांधी ने हमेशा कहा, ‘‘सरपरस्ती का मेरा सिद्धांत अस्थायी नहीं है। इसमें कोई भी छल-कपट नहीं है। मैं आश्वस्त हूं कि सभी अन्य सिद्धांत बने रहेंगे, इसको दर्शन शास्त्र तथा धर्म की मंजूरी है। ’’
सरपरस्ती का सिद्धांत निश्चित तौर पर बना रहा मगर यह केवल सरकारी कागजों पर ही रह गया। गांधी जी का मानना था कि सरपरस्ती प्रणाली राम राज्य को पाएगी जहां पर सभी लोग एक समान होंगे, न गरीब होगा न अमीर। राम राज्य भारतीयों के दिलों में बसता है। महात्मा गांधी ने चाहा था कि स्वतंत्र भारत के प्रशासक इसका अनुसरण करेंगे। हालांकि प्रशासकों की अपनी ही विचारधारा थी। वह वोट पाने के लिए ही केवल सुनहरे सपने देखते ओर दिखाते रहे। कोविड-19 भड़भड़ी को लेकर व्याप्त गरीबी के लिए राम राज्य एक सपने की तरह रहा है।
वास्तविक तौर पर के.जी. मशरूवाल ने बापू के राम राज्य की 10 प्रमुख विशेषताएं बताई हैं।जो (द पायनियर, लखनऊ 1 जनवरी 1950) में प्रकाशित हुआ था, यह विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
लोगों के बीच एक आम राष्ट्रीयता की सशक्त भावना हो।
हिंदुओं, मुसलमानों तथा अन्य समुदायों के बीच शांति तथा एक-दूसरे पर भरोसा हो।
श्रेणी, जात-पात तथा भाषा को लेकर भारतीयों के बीच द्वेष की भावना न हो।
अन्याय के प्रति अङ्क्षहसा की तकनीक के सिद्धांत को प्रोत्साहित किया जाए।
लोगों को अपने मामले सुलझाने के लिए विकेंद्रीयकरण पर बल दिया जाए।
हमारा लक्ष्य उस समाज के निर्माण का हो जो ऊंची तथा नीची जातियों, छूने वालों तथा अछूतों के बीच बंटा हुआ न हो।
प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ होकर फले-फूले।
बीमारी, भूख तथा बेरोजगारी की अनुपस्थिति को यकीनी बनाया जाए। हमारा राष्ट्रीय मार्च वैश्विक शिक्षा की ओर हो।
कनाडा के अर्थशास्त्र के प्रोफैसर के.जी. चाल्र्स ने अपनी राय दी है कि देश को गांधी जी की दृष्टि को गंभीरता से लेना चाहिए। इसे योग्यतापूर्व लागू किया जाए तथा इसे अपनाया जाए। यह न केवल लोगों के जीवन के रहने के तौर-तरीकों में सुधार ही नहीं करेगा बल्कि यह आर्थिक और सामाजिक प्रणाली का एक नया पैट्रन भी जारी करेगा।
कई भारतीय इन पंक्तियों को लेकर सोचते हैं मगर एक राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण वह सख्त विकल्प अपनाते हैं। भारतीय नेता हमेशा पश्चिम की हाईटेक प्रणाली को पकडऩे के लिए शॉर्टकट अपनाते हैं। इससे सपने, लक्ष्य तथा नीतियां अक्सर टूटती रहती हैं। आज हम जगह जगह पर देखते हैं कि लोगों को हमारी निष्पक्ष प्रणाली में विश्वास नहीं रहा। इसलिए रामराज्य का गांधी जी का सपना अभी भी चकनाचूर हो जाता है।
यह जरूरी नहीं कि हम 73 वर्षों से ज्यादा स्वतंत्रता के बाद भी कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक इन दर्द भरे समाधानों को पाने के लिए यात्रा करें। भारतीय नेता अपने शब्दों के प्रति सत्य रहते हैं और अपने आपको लेकर ईमानदार रहते हैं। वह अपनी पारम्परिक जड़ों को तलाशते रहते हैं तथा तत्वों के आधुनिक पग पर आगे बढ़ते हैं। आखिरी तौर पर मैं प्रधानमंत्री मोदी को लालकृष्ण अडवानी के सुनहरे शब्दों की याद दिलाना चाहूंगा जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘‘रामराज्य एक अच्छे प्रशासन का सार है।’’