पत्रकारिता किसी जमाने में मिशन थी लेकिन अब इसने कुंठित होकर व्यक्तिगत ईर्ष्या के चरम को पार कर लिया है।आज पत्रकारिता में अहंकार, जातिवाद व विद्वेष आ चुका है। पत्रकारिता तभी सफल हो सकती है, जब उसमें विनम्रता के साथ संवेदनशीलता हो।“पत्रकार को चाहिए कि समाचार के होने वाले प्रभावों को समझे।
“वैज्ञानिक बीस वर्षों में एक बार “न्यूक्लिअर बम” बनाते हैं, लेकिन पत्रकार हर दिन एक बम बनाते हैं…”
पत्रकारिता एक मिशन हुआ करता था लेकिन पत्रकारिता आज एक उद्योग बन चुका है। इसे मिशन के रूप में फिर से लाना होगा”। आज की पत्रकारिता व्यावसायिकता से भी अधिक आंदोलक पत्रकारिता बनी है।
“पत्रकारिता में अहंकार आया है इसलिए आज इससे जुड़े लोगों को विनम्र होकर सोचना चाहिए।मुख्य धारा के मीडिया से अधिक सोशल मीडिया की जिम्मेदारी है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन जीवन और स्वाभिमान का अधिकार सर्वोच्च है। मीडिया का अलोकतंत्रीकरण हुआ है और यह देश व समाज के लिए अच्छा नहीं है” मीडिया नम्र होकर देश व समाज के विकास में योगदान दे तो ठीक है, अन्यथा व्यक्ति व समाज के विरोध में जाने पर जनता उसे नहीं स्वीकारेगी।
भारतीय मीडिया के आराध्य तो “देवर्षी नारद” है उनके दर्शन के अनुसार तो मीडिया का मुख्य काम सकारात्मक “संवाद” करना है न कि समाज मे विद्रोह के भाव को पैदा करना लेकिन यह जन मानस है सब जानता है।
आप समझ तो रहे है न
“डॉ.शैलेश सिंह, प्राद्यापक, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर एवं स्वतंत्र स्तम्भकार”