सहारनपुर- हाल ही में दारूल उलूम देवबंद में आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार पहुंचे और उन्होंने वहां के मोहतमिम समेत कई उलेमा से मुलाकात की ,और कहा कि वो अमन का पैगाम लेकर आए हैं ।और देश कटटरपंथ से नही बल्कि प्रेम से चलेगा।आरएसएस के इंदे्रश कुमार वही नेता हैं कि जिनको आरएसएस ने मुस्लिम मंच बनाकर उसमें मुसलमानों को जोडने की जिम्मेंदारी सौंपी है। और इंदे्रष इस कार्य को पूरी लगन और जोशो खरोश के साथ अंजाम भी दे रहे हैं ।वो देश के अलग अलग स्थानों से काफी मुसलमानों को अपने साथ जोडने और उनको शायद ये समझाने में काफी हद कामयाब भी रहे हैं कि आरएसएस मुसलमानों का दुष्मन नही है बल्कि वो तो मुसलमानों को देश की मुख्यधारा से जोडने,दीनी तालीम हासिल करने के साथ साथ दुनियावी तालीम हासिल कराने के लिए प्रयासरत है।इंदे्रष कुमार रमजान में कई बार रोजा अफतार कार्यक्रम भी आयोजित करते रहे हैं । हालांकि ये भी एक हकीकत है कि उसमें कुछ चंद मुसलमान ही पहुंचते हैं।अब इंदे्रश कुमार ने देवबंद दारूल उलूम का रूख किया और वहां पर इस्लामियां डिग्री कालेज मे इन्सानियत पैगामे मोहब्बत कान्फ्रेंस मेअमनो अमान और मुसलमानों को साथ लेकर चलने की बात कही उन्होंने यहां मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि आप और हमें आपस में मिलकर देश को दँगा मुक्त भारत, दँगा मुक्त समाज बनाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।दारूल उलूम में जाने पर जहां मोहतमिम और वहां मौजूद कई अन्य उलेमा ने उनका गर्मजोशी से इस्तकबाल किया वहीं सोशल मीडिया पर इस मुलाकात का विरोध करने वालों की भी कोई कमी नही थी, जो इस बात पर ऐतराज जता रहे थे कि जब आरएसएस मुसलमानों के खिलाफ काम करता रहा है और संघ का नजरिया पूरी तरह से हमेशा से मुस्लिम विरोधी रहा है, तो फिर आरएसएस नेता का दारूल उलूम में इस तरह गर्मजोशी के साथ स्वागत नही किया जाना चाहिए था।सोशल मीडिया पर किसी ने तो उलेमा का ही विरोध करना आरंभ कर दिया।कहा गया कि सत्ता की तब्दीली के साथ उलेमा का नजरिया भी तब्दील होता नजर आ रहा है।जहां तक संघ नेता इंदे्रश कुमार के दारूल उलूम पहुंचने की बात है तो ऐसा करने के पीछे आरएसएस का क्या मकसद रहा ये तो वो ही जाने लेकिन जहां तक दारूल उलूम के जिम्मेंदारान का आरएसएस नेता का स्वागत करने की बात है तो इसमें किसी तरह भी कुछ गलत नही है क्योकि इस्लाम का पैगाम ही अमनो अमान और आपसी भाईचारे का रहा है और इसी भाईचारे और अमनो अमान और मेहमाननवाजी को देखकर ना जाने कितने ऐसे पत्थर दिल भी मोम हो गए कि जो इस्लाम का विरोध करने का मौका तलाश करते थे।आज के समय में ये कहना किसी तरह से भी गलत नही होगा कि कुछ लोगों के कारण इस्लाम का सही पैगाम सही शिक्षा लोगों तक नही पहुंच पा रही है। जिसका बहुत जबरदस्त नुकसान मुसलमानों एवं कौम को किसी ना किसी तौर पर उठाना पड रहा है।इस्लाम की वास्तिविक शिक्षा से दूर होना भी मुसलमानों की बदहाली की एक बडी वजह है।जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी से मुस्लिम उलेमा का प्रतिनिधिमंडल समय समय पर मुसलमानों की समस्याओं को लेकर मुलाकात करता रहा है वो एक काबिले तारीफ प्रयास है,और उसका नतीजा भी सामने आया है कि मोदीजी ने पांच करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति मुस्लिम समुदाय के छात्र छात्राओं के लिए सिविल र्सविस,मेडिकल, इन्जीनियरिग आदि के लिए घोषणा की है।और ऐसा होता रहना चाहिए।मुलाकातों के दरवाजे बंद नही होने चाहिएं इसी तरह से दारूल उलूम पहुंचने वाले लोगों से भी गर्मजोशी के साथ मुलाकात कर उनको इस्लामी शिक्षा से परिचित किया जाना चाहिए।इसके आने वाले समय में काफी बेहतर नतीजें निकलकर सामने आने की पूरी उम्मीद है।
– सुनील चौधरी सहारनपुर