जानें वेश्‍यालय की मिट्टी से क्‍यों बनती है मां दुर्गा की मूर्ति

ये आप सभी जानते हें कि दुर्गा पूजा में पूजी जाने वाली माँ दुर्गा की भव्‍य मूर्तियों का एक खास महत्व होता है। जहां तक हम जानते हैं कि आप ये शायद ही जानते होंगे कि उस मिट्टी का भी बेहद महत्‍व होता है जिनसे ये मूर्तियां तैयार की जाती हैं। ये मिट्टी कई विशिष्‍ठ स्‍थानों से ला कर तैयार की जाती है। जैसे पवित्र गंगा के किनारों से। फिर इसमें गोबर, गौमूत्र और थोड़ी सी मिट्टी निषिद्धो पाली से मंगाकर मिलायी जाती है। अब आप सोचेंगे कि निषिद्धो पाली क्या है तो ये वेशओं के रहने के स्‍थान जिसके बाहर से मिट्टी लायी जाती है। आइये जाने इसकी पूरी कहानी।

दुर्गा उत्‍सव और मूर्तियों की कहानी:-
दरसल दुर्गापूजा या दुर्गा उत्‍सव मूल रूप से पश्‍चिम बंगाल का त्‍योहार है, पर अब ये त्‍योहार पूरे भारत में समान उत्‍साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर मां दुर्गा की विशाल मूर्तियों से दुर्गा पूजा के पंडाल सजाये जाते हैं। पश्‍चिम बंगाल में मुख्‍य रूप से में दुर्गा मां की प्रतिमाओं का निर्माण उत्तरी कोलकत्ता के कुमरटली इलाके में होता है। मां लक्ष्मी, सरस्वती और पूजा में प्रयोग होने वाली अन्‍य मूर्तियों का निर्माण करने वाला ये इलाका अपने कारीगरों के लिए पूरे भारत में मशहूर है। साथ ही मशहूर है यहां के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया सोनागाछी से लायी गयी मिट्टी का मूर्तियां बनाने में प्रयोग करना। अब जब भारत के अन्‍य हिस्‍सों में भी मूर्तियों का र्निमाण होने लगा है तो वहां भी इस वेश्‍यालय के बाहर की मिट्टी बोरों में भरकर वहां बिकने जाने लगी है। वैसे कुछ लोग स्‍थानीय वेश्‍यालयों के बाहर की मिट्टी भी प्रयोग करने लगे हैं। क्‍यों होती है वेश्‍यालय के दरवाजे की मिट्टी इसकी भी कई कहानियां प्रचलित हैं।
मां के आर्शिवाद का परिणाम:-
कुछ जानकारों का कहना है कि प्राचीन काल में एक वेश्‍या मां दुर्गा की अन्‍नय भक्‍त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्‍वंय आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई।
समाज सुधार का प्रतीक
कोलकाता से ही कई सामाजिक सुधार के मूवमेंट भी चले हैं। इन्‍हीं में से एक महिलाओं के सम्‍मान के लिए भी था और इसी लिए ये मान्यता प्रचलित की गयी कि नारी शक्ति का ही एक स्वरूप है, ऐसे में अगर उससे कहीं गलती होती है तो उसके लिए समाज जिम्मेदार है, फिर चाहे वो वेश्‍या ही क्‍यों ना हो। वेश्‍या के घर के बाहर की मिट्टी के इस्तेमाल के पीछे उन्हें सम्मान देने का यही उद्देश्य है।

सांकेतिक मान्‍यता:-
इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि जब एक महिला या कोई अन्‍य व्‍यक्‍ति वेश्‍यालय के द्वार पर खड़ा होता है तो अंदर जाने से पहले अपनी सारी पवित्रता और अच्‍छाई को वहीं छोड़कर प्रवेश करता है, इसी कारण यहां की मिट्टी पवित्र मानी जाती है।

– साभार

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