गोरखपुरः गोरखपुर के बांसगांव कस्बे में एक ऐसा देवी का मंदिर, जहां हर साल नवरात्रि की नवमी को हजारों क्षत्रिय अपने शरीर का रक्त मां को चढ़ाते हैं। रक्त का यह चढ़ावा एक दिन के नवजात बच्चे से लेकर 100 साल तक के बुजुर्गों तक के शरीर को पांच जगहों से काटकर दिया जाता है। कटने पर शरीर के कई जगहों से रक्त निकलने से मासूम बच्चे रोते बिलखते हैं पर आस्था के नाम पर उनके घाव पर किसी दवा को नहीं बल्कि भभूत मल दी जाती है। वहीं गांव वालों का मानना हैं कि इससे बच्चों को आज तक कोई बीमारी नहीं हुई है।
गोरखपुर शहर से 40 किमी दूर बांसगांव इलाके के इस दुर्गा मंदिर में यूं तो हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है पर शारदीय नवरात्र के नवमी तिथि को यहां पर पूरे इलाके के हजारों क्षत्रियों लोगों का जमावड़ा होता है और शुभ मुहुर्त के बाद हर व्यक्ति के शरीर से काट कर रक्त निकाला जाता है और मां को चढ़ाया जाता है। चाहे एक दिन का नवजात बच्चा हो या फिर 100 साल का बुजुर्ग सभी अपने खून का दान मां को चढ़ाते है।
रक्तबलि यहां हर साल देना अनिवार्य माना जाता है। वहीं इस गांव से जुड़े देश-विदेश में रहने वाले श्रीनेत वंश के लोग शारदीय नवरात्र के नवमी के दिन यहां पर आते हैं और मां दुर्गा के चरणों में रक्त अर्पित करते हैं। करीब सौ साल से चली आ रही इस परंपरा में इस क्षेत्र के हर परिवार के पुरुष को रक्त का चढ़ावा अनिवार्य माना जाता है। इस इलाके के रहने वाले बड़कू सिंह ने बताया कि जिस लड़के की शादी नहीं होती है उसके एक अंग से खून चढ़ाया जाता है। वहीं शादीशुदा पुरुषों को शरीर के 9 जगहों पर काटा जाता है और रक्त को बेलपत्र के जरिये माता दुर्गा की मूर्ति पर चढ़ाया जाता है।
कई दशकों पहले इस मंदिर पर जानवरों की बलि प्रथा काफी प्रचलित थी पर पिछले पचास सालों से यहां के क्षत्रियों ने मंदिर में बलिप्रथा बंद करवा दिया और अब यहां पर उनके खून से मां का अभिषेक होता है। एक ही उस्तरे से सबके शरीर से खून निकालने के कारण हेपेटाइटस बी और एड्स जैसी कई खतरनाक बीमारियां भी होने की संभावना बनी रहती है और जिस भभूत को इलाज मानकर कटे जगह पर मला जाता है वह भी घाव को बढ़ाता है लेकिन अंधविश्वास में अंधे लोगो के कुछ भी नहीं सूझता।
यहां के लोग मानते हैं कि रक्त चढ़ाने से मां खुश होती हैं और उनका परिवार निरोग और खुशहाल रहता है। सैकड़ों सालों से बांसगाव में इस परंपरा का निर्वाह आज की युवा पी़ढ़ी भी उसी श्रद्धा से करती है जैसे उनके पुरखे किया करते थे। सभी का मानना है कि क्षत्रियों का लहू चढ़ाने से मां दुर्गा की कृपा उन पर बनी रहती है। यहां पर रक्त बलि देने वालों में कई ऐसे भी लोग हैं, जो डॉक्टर हैं, प्रशासनिक अधिकारी हैं, लेकिन परंपरा का निर्वहन वह हर साल यहां पर आकर करते हैं और अपने शरीर की रक्तबलि देकर मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं।
नौ जगह से चढ़ाते हैं खून
बांसगांव के इंद्रजीत सिंह प्रधान ने बताया कि श्रीनेत वंश के अविवाहित युवक एक जगह से और विवाहित युवक अपने शरीर के नौ हिस्सों से खून निकालकर मां के चरणों में चढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि इस परंपरा में किसी बच्चे का निष्क्रमण संस्कार होने के बाद उसका रक्त मातारानी को जरूर चढ़ाया जाता है। विवाहित युवक शरीर में नौ हिस्सों से खून चढ़ाते हैं जिसमें सर, दोनों बाजू, दोनों जांघ का रक्त जरूरी है।
वैसे तो पूरे साल मंदिर में भक्तों का तांता लगता है, लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां खून चढ़ाने की विशेष परंपरा है. -श्रवण कुमार पांडेय, पुजारी, दुर्गा मंदिर बांसगांव
सांसद कमलेश पासवान करते हैं यह ऐतिहासिक पर्व है और हमारे लिए गर्व का विषय है ऐसा पवित्र मंदिर हमारे क्षेत्र में है और यहां हम लोग भी हर साल आते है दर्शन करने।