उत्तराखंड- उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी आपसे गिला नहीं, शिकायत तो पिछले 17 सालों की हुकूमतों से भी है,पर आपसे उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं। हुज़ूर..क्या ड्यूल इंजिन की अश्वशक्ति भी “उत्तराखंड” को इन उतुंग पहाड़ों का आरोहण नहीं करा सकेगी..? पहाड़ के नाम पर बने इस “ऊत्तराखण्ड” को अभी भी दून, हरद्वार, हल्द्वानी से ऊपर नहीं चढ़ा पाएगी,, फिर तो इस कॉम्बो इंजिन की ताकत पर सवाल उठेंगे ही। आपके-हमारे अभियान पलायन एक चिंतन की सतत यात्रा के इस चरण में अभियान के संयोजक रतन सिंह असवाल , इस अभियान के सूत्रधार गणेश काला , राज्यसभा टीवी के दीपक डोवाल व ऑक्सफ़ोर्ड प्रेस के हिंदी अनुभाग(भारत) के मुखिया डॉ चंद्रिका ने उत्तरकाशी के सीमांत रेक्चा, फेताड़ी, मोताड़, बनाऊ, बनुगाड आदि गांवों का पैदल भ्रमण कर स्याह हक़ीक़तों से साक्षात्कार किया। प्रतीत होता है कि यह गांव किसी विकासशील मुल्क के हिस्से न होकर किसी असंगठित मुल्क के कुनबे हों,, इंसान के समक्ष इतनी दुश्वारियां कि शायद महज़ डेढ़ दो सौ मील दूर देहरादून में इसकी कल्पना भी मुमकिन न हो… गनीमत है कि यहां के वाशिंदे अभी अपनी माटी के स्नेह से बंधे हैं, बाहरी हवाओं के असर से दूर, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक दिन इन गांवों का हश्र भी पौड़ी और अल्मोड़ा के गांवों की मानिंद न हो.. इन वाशिंदों के गांवों से निकलने से पहले ही कुछ कीजिये,, वरना बहुत देर हो जाएगी, एक मर्तबा ग्रामीणों ने गांव की दहलीज लांघ दी तो आप बिजली सड़क पानी कुछ भी पहुंचा दें, वे वापस कदापि न लौटेंगे।
रिपोर्ट-इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल