कल से नवरात्रि:ऐसे करें कलश की स्थापना

इस साल शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर 2018 से शुरू हो रहे हैं। हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही शुभ और पवित्र माना शजाता है। मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा अलग-अलग रूप में आपके घर में विराजमान रहती हैं। नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां भगवती के एक स्वरूप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कूष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम प्रतिपदा को प्रात: काल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके मां भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है

कलश/घट स्थापन विधि
घट स्थापना शुभ मुहूर्त
10 अक्टूबर 2018, प्रात: 6:21 से 7:25 के बीच

देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा अर्चना करते समय सर्वप्रथन कलश/घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आह्वान कर उसे कार्यरत करना। कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णु जी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।

सामग्री:
1. जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र
2. जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिट्टी
3. पात्र में बोने के लिए जौ
4. घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (कलश सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेदरहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है। वह मंगलकार्यों में मंगलकारी होता है)
5. कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल
6. मौली
7. इत्र
8. साबूत सुपारी
9. दूर्वा
10. कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
11. पंचरत्न
12. अशोक या आम के पत्ते
13. कलश ढकने के लिए ढक्कन
14. ढक्कन में रखने के लिए साबूत चावल
15. पानी वाला नारियल
16. नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा
17. फूल माला

विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बांध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ लिखें और स्वास्तिक का चिह्न बना दें। अब कलश में शुद्ध जल/गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबूत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोड़ा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के भी डाले दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में साबूत चावल भर दें। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पंचपल्लसंयुक्तं वेदमंत्रै: सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नै: समन्वितम्।।” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मंत्रों से भली भांति सुसंस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नमय होना चाहिए।

नारियल पर लाल कपड़ा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधिमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्मात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिर पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचों-बीच रख देंष अब कलश में सभी देवी देवताओं का आह्वान करें। “हे सभी देवी देवता और मां दुर्गा, आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।” अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।

कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुंदर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद मां भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमंत्रयुक्त यंत्र को स्थापित करें। मां दुर्गा को लाल चुनरी उढ़ानी चाहिए। मां दुर्गा से प्रार्थना करें, “हे मां दुर्गा! आप नौ दिनों के लिए इस चौकी में विराजिए।” उसके बाद सबसे पहले मां को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

1. नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि ऐसे करने से हर एक मनोकामना पूरी होती है और सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
2. नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे “चावल” रखने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
3. माता की पूजा “लाल रंग के कम्बल” के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है।
4. नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक जलाकर मां भगवती को मिष्ठान्न का भोग लगाना चाहिए । माता के पूजन हेतु सोने, चांदी, कांसे के दीपक का प्रयोग उत्तम होता है। मां भगवती को इत्र विशेष प्रिय है।
5. नवरात्रि के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गुग्गल, इलायची, किशमिश, कमलगट्टा ज़रूर अर्पित करना चाहिए।
6. यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यंत प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ है तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से पूजा अवश्य करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोड़ों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुईं थीं।
7. प्रतिदिन कुछ मंत्रों का पाठ भी करना चाहिए।

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

– साभार

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