बरेली – न्यूज़ पोर्टलों पर चलने बाले समाचारों से जहां मीडिया जगत में हलचल पैदा कर दी है वही इनके अस्तित्व को लेकर सरकार ही निर्णय नहीं ले पा रही है कि यह वैध है या अवैध जिसको लेकर सोशल मीडिया पर आये दिन भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है ।जिसके पीछे उन लोगों का हाथ है जो मीडिया को मैनेज करने में महारध हासिल रखते है।अब यह पोर्टल इनके मैनेज से बाहर है और किसी भी समाचार को चाहें वह छोटा हो या बडा प्रकाशित होने से जनता के सामने आ जाता है।
इस भ्रम को लेकर आये दिन अधिकारियों से ब्यान दिलवा दिये जाते है कि पोर्टल वैध नहीं है और इनके पत्रकारों पर कार्यवाही होगी ।जिसको लेकर भ्रम की स्थिति बन जाती है।केंद्र सरकार द्वारा ऑन लाइन मीडिया के लिए 4 अप्रेल को एक कमेटी गठित की गयी लेकिन यह कमेटी भी अभी तक कुछ नहीं कर पायी लिहाजा भ्रम की स्थिति जस की तस है।
अब सबाल यह है कि राज्य सरकारों ने वेव मीडिया पर सरकारी विज्ञापन जारी करने की नीति तो बना दी है लेकिन इनके अस्तित्व को लेकर कोई नीति नहीं बनाई ।
सूत्रों के मुताबिक मध्यप्रदेश सरकार ने तो वेव मीडिया के पत्रकारों को मान्यता देने और स्वास्थ्य बीमा देने की भी पहल की ।उत्तराखंड सरकार हो या उत्तर प्रदेश सरकार इन्होंने भी विज्ञापन नीति तो बनाई दी लेकिन इनके अस्तित्व को लेकर कोई नीति नहीं बनाई है ।
अंतिम विकल्प न्यूज़ पोर्टल ने पोर्टलों के अस्तित्व को लेकर पहल शुरू की जिसके तहत उत्तर प्रदेश सरकार के जन सुनवाई पोर्टल पर इनके अस्तित्व को लेकर शिकायत की जिस पर सरकार के सचिव सूचना ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि शिकायत का हमारे विभाग से संबंध नहीं है अब अगर इसका संबंध सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से नहीं है तो कौन से विभाग से है इसके बाद उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी को इस संदर्भ में पत्र लिखकर पोर्टलो के अस्तित्व को लेकर स्थति स्पष्ट करने का आग्रह किया गया ।जिस पर मुख्यमंत्री के विशेष सचिव अमित सिंह जी ने पत्र का संज्ञान लेकर सचिव सूचना को स्थति को स्पष्ट करने के लिए आदेशित किया ।अब देखना यह है सरकार क्या कहती है।जरूरत पडी तो प्रकरण को न्यायालय के संज्ञान में भी लाया जायेगा ।