उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- सब जगह भटकने के बाद और सबसे मिलने के बाद निकला यह निष्कर्ष कि पहाड़ के लोगों के लिए कोरे आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं है फिर कैसे रुके पलायन यह एक दक्ष प्रश्न है।
सतपाल जी महाराज से चार बार व अभय सिंह रावत सचिव मुख्यमंत्री से एक बार व मुख्य विकास अधिकारी पाैडी से मिलने के बाद भी मिला केवल आश्वासन।
परंतु शायद ये नेता पहाड़ काे खाली ही कराना चाहते हैं तभी तो केवल आश्वासन देते हैं ।इनके आश्वासन के कारण केवल दाैड भाग में ही लाख से अधिक खर्च हाे चुके हैं अब हिम्मत हार गये है
अब ताे केवल कच्ची शराब बनाने का काम रह गया है जिसमें किसी सरकार से कुछ मदद नही चाहिए
बल्कि दाे तीन लाेगाें काे राेजगार भी दे देंगें जब सरकार शराब काम तेजी से बढा रही है ताे फिर पहाड की जडी बुटियाें की शराब क्याें नही। और इसके लिए चाहते है
सरकार से इजाजत ।
पलायन कैसे रुकेगा, जब मौके ऐसे छीन लिए जाते है….
महिलाओं के लिए ही संजीदा नहीं सरकार। हर साल सरकार द्वारा कुछ नया करने की कवायद मात्र कागजों तक ही सिमट रही है। धरातल पर सब कुछ खाली हैl
ऐसा ही मामला उत्तराखंड जनपद पाैडी गढ़वाल के विकासखंड जयरीखाल ग्राम सभा कांडामला पाे० कांडाखाल पट्टी काैडिया तहसील सतपुली की मूल निवासी महिला श्रीमती प्रियंका देवी पत्नी इंद्र सिंह असवाल का है।
उत्तराखंड जनपद पाैडी गढ़वाल के विकासखंड जयरीखाल ग्राम सभा कांडामला पाे. कांडाखाल पट्टी काैडिया तहसील सतपुली की मूल निवासी महिला प्रियंका देवी पत्नी इंद्र सिंह असवाल विगत दिनों तक देहरादून के सेलाकुई में अपना व्यापार आईटी सेक्टर की सर्विस प्राेवाइडर थी, जिनकी फर्म ‘असवाल आईटी साेलयूशन’ के नाम से थी परंतु उत्तराखंड में नई सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने हर प्रकार से लाेगाें काे घर वापसी के लिए प्रेरित किया, जिससे प्रियंका देवी भी अपने गाँव में ‘आरगेनिक मसाला एवं फूड प्राेसेशिंग यूनिट’ स्थापित करने की साेची।
इस बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद मुख्यमंत्री काे पत्र लिखकर अपने गाँव में यूनिट स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की। मुख्यमंत्री कार्यालय से निर्देश दिए गए थे कि खादी उद्योग पाैड़ी से मिलें। खादी उद्योग से PMEGP याेजना फार्म भर कर इंटरव्यू दिया एंव बैंक से संपर्क किया।सबसे पहले उत्तराखंड ग्रामीण बैंक सतपुली में गये बैंक मैनेजर द्वारा जबाब मिला कि पहाड़ में काेई राेजगार नही चल सकते व पहाड़ी लाेन लेकर लाैटाते नही है इसलिए हम पहाड़ में पहाड़ियों पर जाेखिम नही ले सकते।फिर प्रियंका देवी भारतीय स्टेट बैंक अपने विकासखंड स्तर पर जयरीखाल गई। वहां के बैंक मैनेजर श्रीकांत नाैगांई ने प्रियंका देवी काे कहा कि डाकुमेंटस व काेटेशन दाे। प्रियंका देवी द्वारा बैंक काे पाँच साल की आईटीआर, जमीन की नकल, पूर्व के बिजनेस की बैंक डिटेल, पूर्व के व्यापार का रजिस्ट्रड प्र्रूफ के साथ वे लाेग जिन्होंने प्रियंका देवी के नये प्राेडक्ट के लिए मार्केटिंग व डिस्ट्रीब्यूशन करनी थी, उनकी स्वीकृति पत्र, साढे दस लाख की मशीनों की काेटेशन दी गई ।कुछ सामान एेसा भी था जाे लाेकल बाजार से आना था उसकी काेटेशन छाेटे व्यापारी न दे सके। उपरोक्त सभी प्रकार के कागजात बैंक काे दिये गये। बैंक द्वारा प्रियंका देवी व उनके पति की सिविल रिपोर्ट चैक की गई जाे कि इस प्रकार थी,- प्रियंका देवी- 786,इंद्र सिंह असवाल- 775
फिर बैंक मैनेजर द्वारा कहा गया कि आपके सभी दस्तावेज व सिविल सही हाेने की वजह से आपका लाेन पक्का हाे गया है। वह हमारी वह जगह देखने आयेंगे,जहां पर यूनिट स्थापित करनी है। दूसरे दिन फरवरी में मैनेजर जगह देखने आये।जगह कांडाखाल काैडिया तहसील सतपुली के सतपुली सिसलडी माेटर मार्ग पर स्थित है। दाे दुकाने बनी हुई हैं व उसके आसपास भी प्रियंका देवी की अपनी पैतृक भूमि है। मैनेजर ने कहा कि आप काम शुरू कर दाे, आपका लाेन पक्का हाे गया है।
लेकिन जब तीन दिन बाद फिर जब बैंक पहुँचे तो मैनेजर ने कहा कि फाइल पास हाेने जाेनल कार्यालय देहरादून गई है। प्रियंका देवी के पति उस समय देहरादून में थे। वह जाेनल कार्यालय में गये। वहां पूछा ताे पता चला कि फाइल जाेनल नही आती है। फिर मैनेजर से पूछा ताे उन्होंने कहा कि वह फाइल रिजेक्ट कर रहे हैं।
प्रियंका देवी ने इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि वे मशीनों के लिए पूरा पेमेंट देंगें परंतु बाकी का काम शुरू करने के लिए एक लाख रूपये ही दे सकते हैं। प्रियंका देवी की प्राेजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार ग्यारह लाख की मशीनें व चाैदह लाख का वर्किंग कैपिटल था।
चाैदह लाख में चालीस आईटम की पैकिंग मैटिरियल जाे कि छह लाख के लगभग था।
वह छह लाख के लगभग का राॅ मैटिरियल था व दाे लाख रूपये रूटीन कार्य के लिए था। अब आप बताइए कि क्या ग्यारह लाख की मशीनों व काम करने वालाें की सैलरी, बिजली का बिल, बैंक किस्त आदि एक लाख में कैसे चलेगा ! इस प्रकार से मैनेजर ने प्रियंका देवी की फाइल बंद कर दी।
प्रियंका देवी ने क्या काम करने थे
प्रियंका देवी के अनुसार उनके क्षेत्र में सभी गाँव की बंजर भूमि को युवाओं के साथ मिलकर आबाद करना था इसलिए उनके प्राेजेक्ट में खेती करने के यंत्र भी सम्मिलित थे। क्षेत्र के जंगलों में तिमला, बुरांस, तेजपत्ता निकवाल,कडी पता, पुदीना, माल्टा, आम आदि चीजें बाजार न मिलने के कारण हमेशा खराब हो जाती हैं। इन्ही चीजाें से यहां पर जूस, अचार, मुरब्बा, चटनी आदि बनाने का इरादा था।साथ ही पारंपरिक रूप से सभी प्रकार के मसाले, दालें आदि उगाने के साथ प्राेडक्ट बनाकर मार्केट में लाना था।
इस सबके लिए प्रियंका देवी व उनके पति के द्वारा क्षेत्रीय महिलाओं व युवाओं को एकजुट कर तैयार किया गया था।
जब प्रियंका देवी की फाइल बंद हो गई तो इस संबंध में जब उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री काे CM apps के माध्यम से तीन बार अवगत कराया। ताे बैंक ने ये कहकर पल्ला झाड़ दिया कि उन्हें आठ लाख की काेटेशन दी गई है, जिस कारण फाइल रिजेक्ट हुई।
इसी बारे में जब वे अपने विधायक व प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज जी से मिले ताे उन्होंने उनके पत्र काे वित्त मंत्री काे भेज दिया आैर कहा कि वे इस याेजना काे पर्यटन विभाग में लायेगें वहां से लाेन हाे जायेगा।
जब वे पर्यटन विभाग पाैड़ी गये ताे पता चला कि अभी वहां ऐसी काेई याेजना नही है। यह लोग फिर विधायक से मिलने गये। विधायक ताे नही मिल पाये, परंतु उनके एक सचिव ने पूरी कहानी सुनकर किसी बैंक मैनेजर से बात की। ताे फाेन पर मैनेजर का कहना था कि बैंक PMEGP याेजना के लाेन करने से कतरा रही है व किसी भी कारण से फाइल को रिजेक्ट कर रहे हैं।
फिर सतपाल महाराज के ओएसडी हरि सिंह से बात हुई ताे उनका कहना था कि यदि महाराज जी पर्यटन से प्राेजेक्ट देते हैं ताे वह पहले कैबिनेट में पास हाेगा व फिर विभाग काे जायेगा, जिसमें कि डेढ-दाे साल लग जायेंगे।
फिर उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए समय मांगा ताे तीन दिन तक भी समय नही मिल पाया। अब वहां फाेन भी नही उठा रहे हैं।
जब न्यूज पोर्टलाें पर यह समाचार चला जिसमें कि पर्वतजन .अंतिम विकल्प न्यूज.सत्यवाणी. हिंदुस्तान लाईव .ने प्रमुखता से मामले को उठाया ताे मुख्यमंत्री के ओएसडी अभय सिंह रावत ने सचिवालय में बुलाया और मुख्य विकास अधिकारी पाैडी काे निर्देश दिए कि वे प्रियंका देवी के उद्योग लगाने में सहायता करे ।
मुख्य विकास अधिकारी के कहने पर जिला सहकारी बैंक सतपुली के मैनेजर साहब से मिले उन्होंने कहा कि पहाड़ की भूमि की कीमत जीराे है. जबकि सरकारी रेट के अनुसार हमारी भूमि की कीमत बाईस लाख रुपये है फिर मैनेजर साहब ने साफ कहा कि यदि लाेन चाहिए ताे दाे सरकारी गारंटर लाआे जिनकी सेलरी उनके बैंक में आती हाे जिसके घर में सरकारी नाैकरी वाला न हाे ताे क्या उसे सरकारी याेजनाआें का लाभ नही मिलता। यानी फिर शुरू हुई टाल-मटोल।
ऐसे में कैसे रूकेगा पलायन, और कैसे होगा प्रदेश की बेटियों का भला।न जाने कितने प्रोजेक्ट ऐसे ही दम तोड़ रहे है,कमीशन खोरी का कोई इलाज नही है।महिलाओं को लोन के लिए इधर से उधर दौड़ाया जाता है। क्या यही है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ?
(पहाड़ क्षेत्र की दुर्दशा को व्यक्त करती इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट)